मेडिकल रिपोर्ट के बावजूद बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति को क़ानूनन मानसिक रूप से पागल माना [निर्णय पढ़े]
Live Law Hindi
13 Feb 2019 6:06 PM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल में एक व्यक्ति को क़ानूनी रूप से पागल बताया जबकि यरवदा मानसिक अस्पताल ने उसे पागल क़रार नहीं दिया था।
यह आदेश न्यायमूर्ति एसएस शिंदे और न्यायमूर्ति आरजी अवचट की पीठ ने सुनाया। आरोपी को अक्टूबर 2013 में हत्या का दोषी पाते हुए आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई थी जिसके ख़िलाफ़ उसने अपील की।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपी ने 2012 में एक दुकानदार को पत्थरों से कुचलकर मार दिया था क्योंकि दुकानदार ने उसे मुफ़्त का पेप्सी देने से मना कर दिया था। वह उस समय शांत हुआ जब उसका भाई वहाँ पहुँचा और उसने उसके हाथ और पाँव बाँध दिए। गाँव वालों ने इस घटना की रिकॉर्डिंग भी की थी।
निचली अदालत में अपीलकर्ता ने ख़ुद को पागल बताते हुए निर्दोष बताया और कहा कि दुकानदार को एक कौवे ने मार दिया। पर इस घटना के कई गवाह थे जिन्होंने अदालत में यह गवाही दी कि इस व्यक्ति ने दुकानदार को पत्थरों से कुचलकर मार दिया।इसलिए कोर्ट ने उसे हत्या का दोषी माना।
हाईकोर्ट हालाँकि निचली अदालत से सहमत नहीं हुआ और परिस्थिति कोई देखते हुए उसको क़ानूनी रूप से पागल बताया। कोर्ट ने कहा कि आरोपी ने मृत व्यक्ति के साथ एक मामूली बात पर झगड़ा किया और बाद में उसके हाथ और पाँव बाँधने पड़े। कोर्ट ने यह भी कहा कि मामले की सुनवाई के दौरान आरोपी के साथ उसके समर्थन में उसके परिवार का कोई भी व्यक्ति खड़ा नहीं हुआ।
"ये तथ्य इस बात की तस्दीक़ करते हैं कि पेप्सी जिसकी क़ीमत उस समय एक रुपया था, नहीं देने पर अपीलकर्ता जब मृतक से उलझा तब वह अपने होश में नहीं था। उसका मानसिक रोग का इलाज चल रहा था। चूँकि वह होशोहवाश में नहीं था इसलिए उसको यह पता नहीं चल पाया कि जो वह जो कर रहा है उसे हत्या माने जाएगी। इसलिए यह कहा जाता है कि अपीलकर्ता ने मृत व्यक्ति की हत्या की। पर यह आईपीसी की धारा के तहत हत्या या कोई और अपराध नहीं माना जाता।"
इसलिए उक्त आदेश को निरस्त कर दिया गया। पर आरोपी को पुणे स्थित यरवदा मानसिक अस्पताल में रखे जाने का आदेश दिया गया ताकि उसका ज़रूरी इलाज हो सके।