क़ानूनी फ़ीस धनी और ग़रीब के बीच खाई पैदा ना करे : राष्ट्रपति कोविंद
Live Law Hindi
10 Feb 2019 2:24 PM IST
देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शुक्रवार को कहा कि क़ानूनी फ़ीस को धनी और ग़रीब के बीच खाई पैदा नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कई बार सिर्फ़ मामले को लंबा खींचने के लिए मामले की सुनवाई को स्थगित करने की अपील की जाती है जो कि असुविधा उत्पन्न करता है और यह ग़रीब और कम पैसे वाले मुक़दमादारों के लिए 'न्याय कर' की तरह है।
कोविंद ने एक पुस्तक "Law, Justice and Judicial Power Justice PN Bhagwati's Approach' पुस्तक के अनावरण के मौक़े पर यह बात कही। उन्होंने 8 फ़रवरी को दिल्ली में हुए एक कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के हाथों इस पुस्तक की पहली प्रति प्राप्त की। इस पुस्तक में पूर्व मुख्य न्यायाधीश पीएन भगवती के जीवन और उनके कार्य से सम्बंधित आलेखों का संग्रह है।
इस मौक़े पर मौजूद लोगों को अपने संबोधन में कोविंद ने न्यायमूर्ति भगवती के बारे में बताया और कहा कि वे सिर्फ़ न्यायाधीश ही नहीं थे - वे एक विद्वान और अपने आप में एक संस्था थे। न्यायपालिका को उनके योगदानों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, "
"न्यायमूर्ति भगवती ने न्याय की अवधारणा को विस्तारित किया और आम लोगों के लिए न्याय को सुलभ बनाया। उनका यह मानवीय रूख क़ानून और न्याय की सर्वाधिक उत्कृष्ट परंपरा का हिस्सा था। वे उन नामचीन न्यायविदों की परंपरा के थे जिन्होंने भारत जैसे विकासशील लोकतंत्र में न्यायपालिका की भूमिका की पुनर्कल्पना और उसकी पुनः-अवधारणा की।
वह एक ऐसा समय था जब न्यायपालिका ने इस बात को माना कि न्यायपालिका की भूमिका टेकनोक्रेटिक फ़ैसले की सीमा से बाहर जाना है और ख़ुद को ग़रीब और उत्पीड़ित लोगों के मददगार के रूप में देखना है।"
कोविंद ने न्यायमूर्ति भगवती को देश में जनहित याचिका का जनक बताया। यह बताते हुए कि जनहित याचिकाओं का दुरुपयोग भी हो सकता है, कोविंद ने कहा कि जब हम इस मसले पर विस्तार से ग़ौर करते हैं तो उनके प्रति कृतज्ञ हुए बिना नहीं रह सकते।
उन्होंने कहा कि जनहित याचिका (पीआईएल) की परिकल्पना ग़रीबों के लिए एक औज़ार के रूप में हुआ जो लंबी अवधि तक चलने वाली न्यायिक प्रक्रिया का ख़र्च उठाने में असमर्थ था। इसके बाद उन्होंने कहा, "क़ानूनी फ़ीस ऐसी नहीं होनी चाहिए कि यह ग़रीब और अमीर मुक़दमादारों और ऐसे मुक़दमादारों के बीच खाई पैदा करे जो भारी फ़ीस दे सकते हैं और वो जो नहीं दे सकते हैं। बेंच के लिए यह एक बहुत ही ज्वलंत मुद्दा है और उन्हें इसका समाधान ढूँढना चाहिए।"
इसी तरह उन्होंने क्षेत्रीय भाषाओं में कोर्ट के फ़ैसले की प्रमाणित को उपलब्ध कराने के महत्त्व की भी चर्चा की। उन्होंने इस बारे में विभिन्न हाइकोर्टों द्वारा उठाए गए क़दमों की प्रशंसा की।
उन्होंने न्यायपालिके के निचले स्तर पर क्षमता बढ़ाने की बात पर ज़ोर दिया और कहा, "ये सारी बातें न्यायमूर्ति भगवती और उनकी पीढ़ी और उनके समकालीनों के कार्यों और दर्शनों को आगे ले जाएगा और यह हमारी स्वतंत्र न्यायपालिका जिस पर हरेक भारतीय को नाज़ है, उसकी ठोस परंपरा कीर्तिगायन होगा।"