किसी पर बलात्कार का झूठा आरोप लगाना आरोपी को उत्पीड़ित और अपमानित करने के बराबर : बॉम्बे हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]

Rashid MA

30 Jan 2019 4:00 AM GMT

  • किसी पर बलात्कार का झूठा आरोप लगाना आरोपी को उत्पीड़ित और अपमानित करने के बराबर : बॉम्बे हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में 45 साल के एक व्यक्ति को बलात्कार के आरोपों से मुक्त कर दिया।

    न्यायमूर्ति एएम बादर ने बलात्कार के झूठे आरोपों के बारे में कहा, "…अगर महिला अभियोजक वयस्क है और सारी बातों को समझती है, तो अदालत को यह समझन की ज़रूरत है कि साक्ष्य विश्वसनीय हैं कि नहीं। बलात्कार के मामले में, अपराध के हर पक्ष के बारे में आरोपी का अपराध साबित करने की ज़िम्मेदारी अभियोजक की है।यह ज़िम्मेदारी कभी भी आरोपी के मत्थे नहीं मढ़ा जा सकता। इस स्थिति में, यह आरोपी का दायित्व नहीं है कि उसे कैसे और किस तरह से मामले में झूठा फँसाया गया है।

    बलात्कार का अपराध पीडिता को उत्पीड़ित और उसको अपमानित करता है और इसी तरह बलात्कार का झूठा आरोप इसी तरह से आरोपी को उत्पीड़ित और अपमानित करता है।"

    सतारा के एक व्यक्ति ने आईपीसी की धारा 376 और 506 के तहत सज़ा दिए जाने को चुनौती दी थी। अपीलकर्ता पर अगस्त 2008 में यह मामला उस समय चला जब मार्केटिंग पेशे की एक महिला ने उसके ख़िलाफ़ पुलिस में शिकायत की थी।

    अपनी शिकायत में महिला ने कहा था कि घर लौटे हुए आरोपी ने उसे अपने बाइक पर लिफ़्ट देने का प्रस्ताव दिया जिसे उसने स्वीकार कर लिया। बाद में इस व्यक्ति ने उसे चाक़ू की नोक पर एक सुनसान इलाक़े में ले जाकर उसके साथ कई बार रेप किया।

    सुनवाई के दौरान अपीलकर्ता ने सभी आओपों से इंकार किया और कहा कि उसे झूठा फँसाया गया है और शिकायतकर्ता ने उससे और उसके परिवार से पैसे ऐंठने के लिए ऐसा किया है। हालाँकि, निचली अदालत ने उसके ख़िलाफ़ फ़ैसला दिया और उसे सात साल की सश्रम कारावास की सज़ा दी।

    इस फ़ैसले को दी गई चुनौती पर ग़ौर करते हुए हाईकोर्ट ने इस फ़ैसले में बहुत सारी कमियाँ पाई।

    उदाहरण के लिए "महिला अभियोजक के पास इस बात के पर्याप्त मौक़े थे कि वह मोटरसाइकिल से कूद सकती थी और लोगों से मदद माँग सकती थी। वह दूसरे वाहनों को रोककर लोगों से अपनी बातें कह सकती थी। वह आने जाने वालों से यह कह सकती थी कि उसे आरोपी अगवा करके ले जा रहा है।"

    इसके बाद कोर्ट ने उस रिकॉर्डिंग का ज़िक्र किया जिसके अनुसार, शिकायतकर्ता के पिता ने आरोपी को बरी करवाने के लिए उसके बेटे से 7 लाख रुपए की माँग की थी।

    कोर्ट ने निचली अदालत के फ़ैसले को दी गई इस चुनौती की याचिका स्वीकार कर ली और आरोपी को बरी किए जाने का आदेश दिया।


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