मौत की सज़ा तभी जब अन्य सभी विकल्पों का रास्ता निर्विवाद रूप से बंद हो जाए : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

Rashid MA

28 Jan 2019 4:42 PM GMT

  • मौत की सज़ा तभी जब अन्य सभी विकल्पों का रास्ता निर्विवाद रूप से बंद हो जाए : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट ने नौ साल की एक लड़की के साथ बलात्कार कर उसकी हत्या करने का दोषी पाए गए व्यक्ति की मौत की सज़ा को बदल दिया और उसे इसके बदले 30 साल की कारावास की सज़ा सुनाई।

    न्यायमूर्ति एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ एन कहा कि हत्या बहुत ही असाधारण क्रूरता है और बहुत ही निर्दयतापूर्वक इस अपराध को अंजाम दिया गया पर मौत की सज़ा तभी दी जानी चाहिए जब अन्यसारे विकल्प के रास्ते निर्विवाद रूप से बंद वह गए हों।

    राजू जगदीश पासवान को निचली अदालत ने नौ साल की एक लड़की से बलात्कार और बाद में उसे नज़दीक के कुँए में धकेल कर मार देने का दोषी पाने के कारण मौत की सज़ा दी थी। डॉक्टरों ने कोर्ट को बताया थाकि मृतक को प्राकृतिक-अप्राकृतिक यौन उत्पीड़न का शिकार बनाया गया था और उसकी मौत डूब जाने से हुई। हाईकोर्ट ने इस आरोपी की सज़ा को बरक़रार रखा। पर सुप्रीम कोर्ट ने इस सज़ा के ख़िलाफ़ अपीलकिए जाने पर इस फ़ैसले के औचित्य पर विचार करने पर सहमत हुई।

    सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि आरोपी को मौत की सज़ा नहीं मिलनी चाहिए और अपराध विरलों में विरल नहीं है। कोर्ट ने कहा -

    • इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि हत्या पूर्व नियोजित तरीक़े से हुई।
    • अपराध के समय आरोपी युवक की उम्र 22 साल थी।
    • इस बात के सबूत नहीं पेश किए गए कि आरोपी भविष्य में इस तरह के और अपराध कर सकता है और इस तरह वह समाज के लिए ख़तरा बना रहेगा।
    • इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि अपीलकर्ता में सुधार नहीं हो सकता है या उसका पुनर्वास नहीं हो सकता है।

    न्यायमूर्ति राव ने इस फ़ैसले के क्रम में अमरीकी सुप्रीम कोर्ट के एक फ़ैसले का भी ज़िक्र किया है। उन्होंने कहा कि यद्यपि किसी अपराधी को उसके अपराध के अनुपात में सज़ा मिलनी चाहिए, पर एक क्रूर सज़ा सभ्यन्याय व्यवस्था के लिए अभिशाप की तरह है।

    कोर्ट ने मौत की सज़ा को आजीवन कारावास में बदलते हुए कहा, "अपीलकर्ता ने नौ साल की एक लड़की की जिस निर्ममता से हत्या की है उसने हमें यह सोचने को मजबूर किया है कि उसको 14 साल के कारावास केबाद जेल से रिहा करना समाज के हित में नहीं होगा। अपराध की गंभीरता और इसे जिस तरह अंजाम दिया गया उसको समझते हुए हमारा मानना है कि अपीलकर्ता 30 साल की सज़ा मिलनी चाहिए"।


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