आपराधिक मामलों में बरी होना जज बनने के लिए उम्मीदवार के अच्छे चरित्र का प्रमाणपत्र नहीं हो सकता : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट [आर्डर पढ़े]
LiveLaw News Network
7 Jan 2019 8:00 AM IST
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाईकोर्ट जाँच समिति के निर्णय में दख़ल देने से इंकार कर दिया है। समिति ने एक उम्मीदवार के जज बनने की उम्मीदवारी को उसके आपराधिक मामले में बरी किए जाने के बावजूद मानने सेइंकार कर दिया था। इस उम्मीदवार के ख़िलाफ़ दो आपराधिक मामले चल चुके हैं।
हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसके सेठ और विजय कुमार शुक्ला की पीठ ने दीप नारायण तिवारी और नंद किशोर साहू की याचिका पर यह फ़ैसला सुनाया।
याचिकाकर्ताओं ने अपने आवेदन में कहा था कि वर्ष 2017 के न्यायिक सेवा परीक्षा के लिए अंतिम चयन सूची में उनके नाम ज़िला जज (प्रवेश स्तर) के रूप में नियुक्ति के लिए शामिल किए गए हैं। पर उनके नाम सूचीसे हटा दिए गए और उनके चयन को निरस्त कर दिया गया।
इन उम्मीदवारों ने आरटीआई द्वारा पता लगाया कि उनके नाम उनके ख़िलाफ़ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण ) अधिनियम, 1989 की धारा 3(2)(v) के तहत मामले के लंबित होने केकारण उनके नाम सूची से हटा दिए गए हैं।
आवेदनकर्ताओं ने अपने अपील में कहा कि उनके ख़िलाफ़ ये मामले ख़त्म कर दिए गए हैं और इसलिए सूची से उनके नाम को हटाना ग़लत है।
राज्य ने हालाँकि कहा कि याचिकाकर्ता को सिर्फ़ इसलिए नियुक्ति पाने का अधिकार नहीं है क्योंकि उन्होंने यह स्वीकार किया है कि उनके खिलाफ़ आपराधिक मामले दर्ज हैं।
कोर्ट ने इस मामले में Ashutosh Pawar vs. High Court of M.P. and another, का हवाला दिया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने Union Territory, Chandigarh Administration and others vs. Pradeep Kumar and another मामले में आए फ़ैसले का ज़िक्र किया जिसमें कहा गया था कि किसी आपराधिक मामले में बरी हो जाने का अर्थ यह नहीं है कि उम्मीदवार का चरित्र अच्छा है।
इसके साथ ही कोर्ट ने याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया और कहा कि उन्हें इस याचिका में कोई दम नहीं दिख रहा है।