विशेष अदालत बिना प्रतिबद्ध या कमिटल के भी ले सकती है अपराध पर संज्ञान,यदि विशेष अधिनियम ऐसा करने का देता है अधिकार-सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

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28 July 2019 7:50 AM GMT

  • विशेष अदालत बिना प्रतिबद्ध या कमिटल के भी ले सकती है अपराध पर संज्ञान,यदि विशेष अधिनियम ऐसा करने का देता है अधिकार-सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

    मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने यह माना है कि जब विशेष अधिनियम के स्पष्ट प्रावधान विशेष कोर्ट को यह अधिकार देते हैं कि अभियुक्त के बिना, अपराध पर संज्ञान ले सकती है तो ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता है कि विशेष कोर्ट द्वारा अपराध पर लिया गया संज्ञान दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 193 का उल्लंघन है।

    इस मामले में (ए. एम. सी. एस स्वामी, एडीई/डीपीई/एचवाईडी (केंद्रीय) बनाम मेहदी आगा करबलाई) हाईकोर्ट ने विद्युत अधिनियम के तहत दर्ज एक मामले की कार्यवाही को इस आधार पर रद्द कर दिया था कि विशेष कोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 193 के तहत विचाराधीन आदेश के बिना ही सीधे मामले में संज्ञान ले लिया था।

    दंड प्रक्रिया की संहिता की धारा 193 के अनुसार कोई भी सेशन कोर्ट मूल अधिकार क्षेत्र के तौर पर किसी मामले पर सीधे तौर पर तब तक संज्ञान नहीं ले सकती है, जब तक यह मामला दंडाधिकारी कोर्ट द्वारा उनके पास न भेजा जाए या कमिट न किया जाए। बशर्ते दंड प्रकिया संहिता 1973 या उस समय पर लागू किसी अन्य कानून द्वारा स्पष्ट रूप से ऐसा प्रदान न किया गया हो।दंडाधिकारी कोर्ट द्वारा उनके पास न भेजा जाए या कमिट न किया जाए। बशर्ते दंड प्रकिया संहिता 1973 या उस समय पर लागू किसी अन्य कानून द्वारा स्पष्ट रूप से ऐसा प्रदान न किया गया हो।

    विद्युत अधिनियम की धारा 151 को देखते हुए जस्टिस आर. भानुमथि और जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी की पीठ ने कहा कि-
    ''विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 151 पूरी तरह से एक नया प्रावधान है। अधिनियम की धारा 151 में यह प्रावधान है कि कोई भी न्यायालय उवित सरकार या उपयुक्त आयोग या उनके द्वारा अधिकृत किसी अधिकारी या मुख्य विद्युत निरीक्षक या एक विद्युत निरीक्षक या लाइसेंसी या उत्पादक कंपनी द्वारा लिखित रूप में की गई शिकायत को छोड़कर अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध का संज्ञान नहीं लेगा,जैसा कि इस उद्देश्य के लिए हो सकता है। विद्युत अधिनियम की धारा 151 का दूसरा प्रावधान,विद्युत अधिनियम की धारा 153 के तहत गठित विशेष कोर्ट को यह अधिकार देता है कि वह अभियुक्त के बिना अपराध पर संज्ञान ले सकती है। विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 151के विशेष प्रावधानों के मद्देनजर, हमारा यह विचार है कि विशेष कोर्ट को यह अधिकार मिला हुआ है कि वह दंड प्रकिया संहिता 1973 की धारा 193 के तहत अपेक्षित आदेश के बिना भी संज्ञान ले सकती है। जब विशेष अधिनियम के स्पष्ट प्रावधान विशेष कोर्ट को यह अधिकार देते है कि अभियुक्त के बिना अपराध पर संज्ञान ले सकती है तो ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता है कि विशेष कोर्ट द्वारा अपराध पर लिया गया संज्ञान दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 193 का उल्लंघन है।''

    पीठ ने इस मामले में हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया है और निचली अदालत की कार्यवाही को पुनर्स्थापित कर दिया है।


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