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विशेष अदालत बिना प्रतिबद्ध या कमिटल के भी ले सकती है अपराध पर संज्ञान,यदि विशेष अधिनियम ऐसा करने का देता है अधिकार-सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]
![विशेष अदालत बिना प्रतिबद्ध या कमिटल के भी ले सकती है अपराध पर संज्ञान,यदि विशेष अधिनियम ऐसा करने का देता है अधिकार-सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े] विशेष अदालत बिना प्रतिबद्ध या कमिटल के भी ले सकती है अपराध पर संज्ञान,यदि विशेष अधिनियम ऐसा करने का देता है अधिकार-सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]](https://hindi.livelaw.in/h-upload/2019/02/08358074-justice-r-banumathi-justice-r-subhash-reddyjpg.jpg)
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने यह माना है कि जब विशेष अधिनियम के स्पष्ट प्रावधान विशेष कोर्ट को यह अधिकार देते हैं कि अभियुक्त के बिना, अपराध पर संज्ञान ले सकती है तो ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता है कि विशेष कोर्ट द्वारा अपराध पर लिया गया संज्ञान दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 193 का उल्लंघन है।
इस मामले में (ए. एम. सी. एस स्वामी, एडीई/डीपीई/एचवाईडी (केंद्रीय) बनाम मेहदी आगा करबलाई) हाईकोर्ट ने विद्युत अधिनियम के तहत दर्ज एक मामले की कार्यवाही को इस आधार पर रद्द कर दिया था कि विशेष कोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 193 के तहत विचाराधीन आदेश के बिना ही सीधे मामले में संज्ञान ले लिया था।
दंड प्रक्रिया की संहिता की धारा 193 के अनुसार कोई भी सेशन कोर्ट मूल अधिकार क्षेत्र के तौर पर किसी मामले पर सीधे तौर पर तब तक संज्ञान नहीं ले सकती है, जब तक यह मामला दंडाधिकारी कोर्ट द्वारा उनके पास न भेजा जाए या कमिट न किया जाए। बशर्ते दंड प्रकिया संहिता 1973 या उस समय पर लागू किसी अन्य कानून द्वारा स्पष्ट रूप से ऐसा प्रदान न किया गया हो।दंडाधिकारी कोर्ट द्वारा उनके पास न भेजा जाए या कमिट न किया जाए। बशर्ते दंड प्रकिया संहिता 1973 या उस समय पर लागू किसी अन्य कानून द्वारा स्पष्ट रूप से ऐसा प्रदान न किया गया हो।
पीठ ने इस मामले में हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया है और निचली अदालत की कार्यवाही को पुनर्स्थापित कर दिया है।