सारांश कोर्ट मार्शल को केवल उसी स्थिति में आदेश देना चाहिए,जहां यह पूरी तरह से अनिवार्य हो कि तत्काल कार्यवाही आवश्यक है- सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

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27 July 2019 5:30 AM GMT

  • सारांश कोर्ट मार्शल को केवल उसी स्थिति में आदेश देना चाहिए,जहां यह पूरी तरह से अनिवार्य हो कि तत्काल कार्यवाही आवश्यक है- सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट ने यह फिर से दोहराया है कि एससीएम का आदेश देने की शक्ति एक कठोर शक्ति है, ऐसे में इस शक्ति का प्रयोग उसी स्थिति में किया जाना चाहिए जहां यह पूरी तरह से अनिवार्य हो कि तत्काल कार्यवाही आवश्यक है।

    लांस दफादार के खिलाफ आरोप
    तत्कालीन कार्यवाहक लांस दफादार के खिलाफ यह आरोप था कि सुबह के समय जब वह सर्विस एरिया को साफ करने की ड्यूटी पर था, उसी समय वह एक साथी के घर में घुस गया। उस समय उसके साथी की पत्नी अपने बेटे को नहला रही थी और उसने जाकर उसके कंधे पर हाथ रख दिया।

    एससीएम ने ठहराया दोषी
    इसके बाद सारांश कोर्ट मार्शल यानि एससीएम बैठाई गई और उसे दोषी करार दिया गया, जिसके बाद उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। उसने इस आदेश को चुनौती दी तो आम्र्ड फोर्स ट्रिब्यूनल ने पाया कि उसे दी गई सजा असंगत है। इसलिए उसे बदलकर 'सेवामुक्ति' कर दिया गया।

    "एससीएम का गठन अपवाद के तौर पर हो"
    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह दलील दी गई थी कि इस बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया था कि मामले में घटना अगस्त 2007 की थी,जबकि एससीएम को मई 2008 में बैठाया गया। आर्मी एक्ट 1950 की धारा 120 के प्रावधानों और सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व हवलदार रतन सिंह बनाम यूनियन आॅफ इंडिया एंड अदर्सयूनियन आॅफ इंडिया एंड अदर्स बनाम विश्व प्रिया सिंह के मामलों में दिए गए फैसलों का हवाला दिया गया। यह दलील दी गई कि एससीएम का आयोजन अपवाद के तौर पर उन्हीं मामलों किया जाना चाहिए जहां पर तुरंत कार्यवाही की जानी जरूरी हो।

    कोर्ट ने उन दलीलों पर भी ध्यान दिया, जिनमें यह कहा गया था कि विश्व प्रिया सिंह मामले को पुनर्विचार के बाद फिर से स्पष्ट किया गया था, जो 5 जुलाई 2016 से लागू हो गया था। जबकि इस मामले में घटना अगस्त 2007 की है। जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस इंद्रा बनर्जी की पीठ ने कहा कि-

    ''उपरोक्त स्पष्टीकरण से यह साफ हो रहा है कि सारांश कोर्ट मार्शल आयोजित करने के कारणों को रिकार्ड करने का मामला 5 जुलाई 2016 से लागू हुआ है। हालांकि स्थापित कानून के मौलिक सिद्धांत के अनुसार एससीएम के आदेश की शक्ति एक कठोर शक्ति है, जिसे उन्हीं परिस्थितियों में प्रयोग किया जाना चाहिए जहां पर यह पूरी तरह अनिवार्य हो कि तुरंत कार्यवाही आवश्यक है। धारा 120 की उपधारा (2) की प्रस्तावना में कहा गया है 'जब तत्काल कार्रवाई के लिए कोई गंभीर कारण न हो'। इस मामले में घटना 11अगस्त 2007 की है और एससीएम का आयोजन 22 मई 2008 को किया गया।ऐसे में एससीएम का आयोजन कानून का विरोधाभासी था।"

    "हवलदार बना रहे पेंशन पाने के योग्य"
    कोर्ट ने इस तथ्य को भी नोट किया कि मामले में घटना को 12 साल बीत चुके है। पीठ ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 का प्रयोग करते हुए यह आदेश दिया है कि हवलदार को उस तारीख से कार्य-मुक्त माना जाए, जिस तारीख को उसकी सेवा के 15 साल पूरे हो रहे है ताकि वह पेंशन पाने का हकदार या योग्य बन सके।

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