नियुक्ति अवैध होने के आधार पर किसी कर्मचारी को टर्मिनेट या सेवा समाप्त करना है छंटनी के समान-सुप्रीम कोर्ट [आर्डर पढ़े]

Live Law Hindi

3 Jun 2019 4:20 AM GMT

  • नियुक्ति अवैध होने के आधार पर किसी कर्मचारी को टर्मिनेट या सेवा समाप्त करना है छंटनी के समान-सुप्रीम कोर्ट [आर्डर पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25एफ तब भी लागू होगी,जब किसी वर्कमैन या कर्मचारी को इस आधार पर टर्मिनेट या सेवा समाप्त की गई हो कि उसकी नियुक्ति अवैध थी।

    जस्टिस अरूण मिश्रा और जस्टिस एम.आर शाह की पीठ ने कहा कि 'अमान्य नियुक्ति' ने औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 2(ओओ) के अपवाद के तहत नहीं आती है।
    छंटनी
    धारा 2(ओओ) के तहत 'छंटनी' का मतलब है कि नियोक्ता द्वारा अपने कर्मचारी की सेवा किसी भी कारण से समाप्त करना बशर्ते अनुशासनात्मक कार्रवाई के माध्यम से सजा के रूप में न हो। इसी धारा में यह भी बताया गया है कि निम्नलिखित को 'छंटनी' नहीं माना जाएगा-
    -स्वेच्छा से कर्मचारी द्वारा रिटायर होना

    -सेवानिवृत्ति की उम्र पर पहुंचने के बाद कर्मचारी का रिटायर होना,अगर नियोक्ता व कर्मचारी के बीच हुए रोजगार के अनुबंध में इस संबंध में व्यवस्था की गई है तो।

    -नियोक्ता व कर्मचारी के बीच रोजगार के संबंध में हुए अनुबंध को रिन्यू न करने के चलते सेवाएं समाप्त होना,जिसमें अनुबंध के खत्म होने की अवधि को जिक्र हो या इसको समाप्त करने की व्यवस्था की गई हो।

    -लगातार बीमार या खराब स्वास्थ्य रहने के कारण कर्मचारी की सेवा समाप्त करना।
    धारा 25 एफ में कर्मचारियों की छंटनी से संबंधित नियम या शर्ते दी गई है।
    श्रम न्यायालय में रेफरेंस या संदर्भ

    श्रम न्यायालय के समक्ष औद्योगिक संदर्भ या हवाला दिया गया था कि क्या बिहार राज्य अनुसूचित जाति निगम लिमटेड द्वारा उसमें नामित श्रमिकों की समाप्ति वैध है या नहीं और क्या उनकी सेवा बहाल की जानी चाहिए व उनको मुआवजा दिया जाना चाहिए?
    श्रम न्यायालय के समक्ष दलील दी गई थी कि आईडी एक्ट की धारा 25एफ का उल्लंघन करते हुए इन श्रमिकों की सेवाएं समाप्त की गई है क्योंकि यह साल में 240 दिन काम कर चुके है। ऐसे में इनकी छंटनी अवैध है। इसलिए इनको पूरी पगार पर वापिस रखा जाना चाहिए।
    श्रम न्यायालय ने माना था कि श्रमिकों ने लगातार एक साल तक अपनी सेवा दी है,इसलिए उनकी सेवाओं की समाप्ति आईडी एक्ट की धारा 25एफ में तय की गई प्रक्रिया के तहत ही खत्म की जा सकती है।ऐसे में इनकी छंटनी आईडी एक्ट की धारा 25 एफ का उल्लंघन है और अवैध है। इसलिए वह रद्द करने लायक है। हालांकि उनके पुरानी पगार के साथ उनको फिर से काम पर रखने का आदेश तो नहीं दिया,लेकिन उनको मुआवजा देने का आदेश दिया गया। जो उनके 3.33 साल के वेतन के बराबर होगा। इसके लिए श्रमिक को मिला आखिर वेतन व भत्ता आधार बनाया जाएगा।
    पटना हाईकोर्ट की फुलबेंच ने माना
    कि
    इस आधार पर समाप्त की गई सेवा नहीं है छंटनी
    श्रमिक व प्रबंधन,दोनों ने इस आदेश को पटना हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी। जिसके बाद इस केस को हाईकोर्ट की फुलबेंच के पास भेज दिया गया।
    फुलबेंच ने इस सवाल पर विचार किया कि क्या एक श्रमिक जिसकी शुरूआती नियुक्ति निरस्त मानी गई हो,उसकी सेवाएं समाप्त करने को आईडी एक्ट की धारा 2(ओओ) के तहत छंटनी माना जाएगा। क्या सिर्फ इसलिए नियोक्ता को आईडी एक्ट की धारा 25एफ का पालन करने के लिए मजबूर किया जा सकता है क्योंकि श्रमिकों ने लगातार एक साल काम किया है।कोर्ट ने कहा कि-
    ''हमारा मानना है कि उनकी सेवाओं को समाप्त करने को छंटनी नहीं कहा जा सकता है। न ही वह मुआवजे के हकदार है। अगर उनकी नियुक्ति ही वैध नहीं थी,ऐसे में उनकी सेवा समाप्त करने के लिए टर्मिनेशन का आदेश देने की भी जरूरत नहीं है। न ही उनको सेवाओं में वापिस लगाया जा सकता है। आईडी एक्ट की धारा 25जी के तहत 'छंटनी की प्रक्रिया'बताई गई है। सिर्फ सबसे कनिष्ठ श्रमिक की 'पहले आओ,बाद में जाओ यानि फस्ट कम लास्ट गो' के प्रिंसीपल के तहत छंटनी की जा सकती है। अगर अवैध नियुक्ति के बाद कनिष्ठ को वैध तौर पर नियुक्त कर दिया जाता है तो 25जी लागू नहीं होती है।आईडी एक्ट की धारा 25एच 'छंटनी किए गए श्रमिकों को फिर से लगाने' के मामले से संबंधित है। जब इस मामले में याचिकाकर्ताओं को वैध तरीके से नियुक्त ही नहीं किया गया तो उनको फिर से नौकरी पर लगाने का सवाल ही नहीं उठता है। इसलिए यह साफ हो जाता है कि जब इस आधार पर सेवा समाप्त की गई है कि उनकी नियुक्ति की वैध नहीं थी तो यह मामला आईडीएक्ट की धारा 2(ओओ) के तहत परिभाषित छंटनी में नहीं आता है और धारा 25एफ के तहत बताई गई प्रक्रिया इस पर लागू नहीं होती है।
    हाईकोर्ट ने संदर्भ का जवाब देते हुए माना कि अगर शुरूआती नियुक्ति की अवैध थी तो इस आधार पर श्रमिक या कर्मचारी की सेवाएं समाप्त करने को छंटनी नहीं कहा जा सकता है,इसलिए वह किसी राहत के हकदार नहीं है। उन पर वह प्रिंसीपल लागू होता है कि 'जो पिछले दरवाजे से आए थे तो उनको वापिस भी पिछले दरवाजे से ही जाना होगा'।
    हालांकि हाईकोर्ट ने यह माना कि श्रमिकों को फिर से नौकरी पर रखने का आदेश नहीं दिया जा सकता है क्योंकि उनकीे शुरूआती नियुक्ति की वैध नहीं थी,परंतु यह भी कहा कि श्रम न्यायालय के आदेश के अनुसार श्रमिकों को दिया गया मुआवजा वापिस न लिया जाए।
    सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया,हालांकि माना अन्यथा या अलग ही

    इस टिप्पणी के खिलाफ प्रबंधन सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और दलील दी कि श्रमिकों की नियुक्ति अवैध थी क्योंकि यह अमान्य थी। ऐसे में आईडी एक्ट की धारा 25एफ लागू नहीं होती है। कोर्ट ने इस अपील को खारिज करते हुए कहा-
    ''हम इस दलील को स्वीकार नहीं कर सकते है कि अमान्य नियुक्ति आईडी एक्ट की धारा 2(ओओ) के अपवाद के तहत नहीं आती है। ऐसे में आईडी एक्ट की धारा 25एफ साफ तौर पर लागू होती है। परिणामस्वरूप छंटनी को अवैध मानना गलत नहीं है।''
    इसका प्रभाव यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि आईडी एक्ट की धारा 25एफ तब भी लागू होगी,जब नियुक्ति अवैध या अमान्य हो। हालांकि उस याचिका को खारिज कर दिया,जो हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर की गई थी,जबकि हाईकोर्ट ने माना था कि यह धारा ऐसी स्थिति में लागू नहीं होती है।

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