सीमा रेखा या थ्रेश-होल्ड पर खारिज की गई एसएलपी न तो कानून की घोषणा होती है न ही एक बाध्यकारी मिसाल,सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया [निर्णय पढ़े]

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14 May 2019 7:39 AM GMT

  • सीमा रेखा या थ्रेश-होल्ड पर खारिज की गई एसएलपी न तो कानून की घोषणा होती है न ही एक बाध्यकारी मिसाल,सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया [निर्णय पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर दोहराया है कि बिना विस्तृत कारण बताए सीमा रेखा या थ्रेश-होल्ड पर खारिज की गई एसएलपी यानि विशेष अवकाश याचिका में संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत न तो कानून की घोषणा होती है और न ही एक बाध्यकारी मिसाल।

    इस मामले में हाईकोर्ट ने अपने द्वारा एक अन्य मामले में दिए गए फैसले पर और उस फैसले के खिलाफ दायर एसएलपी को शीर्ष कोर्ट ने खारिज कर दिया था। प्रतिवादी ने वर्तमान में अपील में लगाए गए उस फैसले का बचाव करते हुए दलील दी थी कि उस फैसले की सर्वोच्च न्यायालय पुष्टि कर चुका है। जबकि उस फैसले में कहा गया था कि निरस्त ओएएस वर्ग-दो विनियम 1978 के तहत पदोन्नति दी जा सकती है।
    इस दलील को स्वीकार करने से इंकार करते हुए जस्टिस उदय उमेश ललित और जस्टिस इंदू मल्होत्रा की खंडपीठ ने कहा कि-
    ''अवसीमिय में एसएलपी को खारिज करने का तात्पर्य यह है कि न्यायालय के समक्ष आए मामले को किसी कारण से अवलोकन या परीक्षण के योग्य नहीं माना गया,जो मामले की मेरिट के अलावा कोई अन्य कारण भी हो सकता है।"
    इस मामले में उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना था कि उड़ीसा प्रशासनिक सेवा वर्ग-दो के 150 रिक्त पद,जिनके लिए वर्ष 2008 में सिफारिशें की गई थी,
    और
    जो कि ओएएस वर्ग-दो के पदों को समाप्त करने और उड़ीसा राजस्व सेवा का पुनर्गठन करने से पहले हो गई थी, उन पदों को ओएएस वर्ग-दो विनियम 1978 के तहत ही भरा जाए या नियुक्ति की जाए।
    राज्य की तरफ से दायर अपील को स्वीकार करते हुए शीर्ष कोर्ट की पीठ ने माना कि दो सदस्यीय खंडपीठ का वह निर्देश कानून के विपरीत था,जिसके तहत प्रतियोगी प्रतिवादियों को निरस्त किए गए संवर्ग यानि कैडरे के तहत निकाले गए पदों पर नियुक्त करने के लिए कहा गया था।
    साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि
    वह आदेश खारिज करने लायक है।सीमा रेखा या थ्रेश-होल्ड पर खारिज की गई एसएलपी न तो कानून की घोषणा होती है न ही एक बाध्यकारी मिसाल,सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया सीमा रेखा या थ्रेश-होल्ड पर खारिज की गई एसएलपी न तो कानून की घोषणा होती है न ही एक बाध्यकारी मिसाल,सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया

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