''अप्रसिद्ध या अलोकप्रिय'' विचार व्यक्त करना नहीं है कोई अपराध-पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने किया एक लेखिका के खिलाफ दर्ज केस को रद्द
Live Law Hindi
4 May 2019 8:43 PM IST
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने महर्षि वाल्मीकी को अपनी किताब में डकैत बताने के मामले में एक लेखिका के खिलाफ दर्ज आपराधिक केस को रद्द कर दिया है।
इस मामले में बाल्मीकी समुदाय के एक सदस्य ने मंजुला सहदेव के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। आरोप लगाया गया था कि मंजुला ने अपनी किताब '' महर्षि बाल्मिक-एक समस्तिक अध्याय'' में भगवान बाल्मीकी को एक डाकू व लुटेरा बताया है। जिससे बाल्मीकी समुदाय की धार्मिक भावनाएं आहत हुई है।
लेखिका के खिलाफ दर्ज केस को रद्द करते हुए जस्टिस अरविंद सिहं सांगवान ने कई तथ्य नोट किए। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में किताब के प्रकाशन के 29 साल बाद केस दर्ज करवाया गया है। इतना ही नहीं मंजुला की किताब अन्य लेखकों द्वारा पहले से लिखी कई किताबों का संग्रह या संचय है। जबकि शिकायतकर्ता ने उन सभी लेखकों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की,जिनकी किताब पहले ही प्रकाशित हो चुकी है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस किताब के समापन के हिस्से में लेखिका ने निष्कर्ष निकाला है कि यह कहना मुश्किल है कि महर्षि वाल्मीकी एक डकैत थे।
जज ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा ''खुशबू केस''
में
दिए गए फैसले का हवाला देते हुए कहा कि इस केस में माना गया है कि यह आपराधिक कानून का काम नहीं है िकवह किसी व्यक्ति को इस बात के लिए सजा दे क्योंकि उसने अप्रसिद्ध विचार व्यक्त किए है। बशर्ते यह साबित न हो जाए कि आरोपी ने ऐसा काम गलत मंशा से गलत तरीके से किया है।
इतना ही नहीं हाईकोर्ट ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा ''प्रिया प्रकाश वैरियर केस'' में दिए गए फैसले का भी हवाला दिया। इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि आरोपी ने अगर बेइज्जती करने या जन आदेश में विघन्न ड़ालने के लिए कोई सुनियोजित इच्छा नहीं अपनाई है तो इसे किसी धर्म या किसी समुदाय की धार्मिक भावनाओं की बेइज्जती या बेइज्जती का प्रयास नहीं कहा जा सकता है।
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