हमला करने या मामूली चोट पहुंचाने के सभी मामलों को नहीं लाया जा सकता है नैतिक या न्यायसंगत भ्रष्टता वाले अपराध की श्रेणी में-सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

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28 April 2019 3:27 PM GMT

  • हमला करने या मामूली चोट पहुंचाने के सभी मामलों को नहीं लाया जा सकता है नैतिक या न्यायसंगत भ्रष्टता वाले अपराध की श्रेणी में-सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

    'नेकचलनी पर रिहा होने से एक कर्मचारी को यह अधिकार नहीं मिल जाता है कि वह अपनी सेवा में बने रहने का हक मांग सके।'

    हमला करने या मामूली चोट पहुंचाने के सभी मामलों को नैतिक या न्यायसंगत भ्रष्टता वाले अपराध की श्रेणी नहीं लाया जा सकता है। यह टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक एसबीआई कर्मचारी को राहत दे दी है।उसे आईपीसी की धारा 324 के तहत दोषी करार दिए जाने के बाद नौकरी से हटा दिया गया था।

    पी.सुप्रामनीएने एसबीआई बैंक में बतौर मैसेंजर काम करता था।उसे निचली अदालत ने आईपीसी की धारा 324 के तहत दोषी करार देते हुए तीन माह कैद की सजा सुनाई थी। अपीलेट कोर्ट ने उसको दोषी करार दिए जाने को सही ठहराते हुए उसे नेकचलनी पर रिहा कर दिया था। अपीलेट कोर्ट का कहना था कि वह बैंक में बतौर मैसेंजर काम करता था। ऐसे में उसे सजा दी गई तो इससे उसका कैरियर प्रभावित होगा।

    परंतु इस केस में कारण बैंक ने उसे नौकरी से यह कहते हुए हटा दिया कि उसे एक नैतिक या न्यायसंगत भ्रष्टता(मोरल टर्पिटूड) वाले अपराध के मामले में दोषी करार दिया गया है। उसने बैंक के फैसले को चुनौती दी और मद्रास हाईकोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ ने उसे नौकरी से हटाने के आदेश को रद्द कर दिया और बैंक को निर्देश दिया कि उसे वापिस नौकरी पर रख ले।

    इस मामले में बैंक ने शीर्ष कोर्ट में मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी। बैंक ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपील में पूछा कि क्या किसी कर्मचारी को आईपीसी की धारा 324 के तहत दोषी करार दिए जाने को नैतिक या न्यायसंगत भ्रष्टता वाले अपराध की श्रेणी में माना जा सकता है या नहीं। बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट की धारा 10(1)(बी)(आई) के अनुसार अगर किसी कर्मचारी को न्यायसंगत भ्रष्टता के अपराध वाली श्रेणी में दोषी करार दे दिया जाता है तो वह बैंक में नौकरी जारी रखने के योग्य नहीं रहता है।

    कोर्ट ने कहा कि निम्नलिखित टेस्ट अप्लाई करके यह निर्णय किया जा सकता है कि किसी अपराध में न्यायसंगत भ्रष्टता शामिल है या नहीं।

    • क्या जिस अपराध के लिए सजा हुई है,उससे समाज या नैतिक जमीर को अघात पहुंचा है।
    • क्या जिस मकसद के लिए अपराध किया गया है वह इस पर आधारित था
    • जो हरकत की है,क्या उसके आधार पर मुजरिम पर विचार किया जा सकता है।

    मामले के तथ्यों को देखने के बाद पीठ ने कहा कि इस मामले में जिस अपराध के लिए कर्मचारी को दोषी करार दिया गया है,उसमें न्यायसंगत भ्रष्टता शामिल नहीं है।

    पीठ ने कहा कि-हमारे पास इस मामले में यह सवाल विचार के लिए आया है कि क्या दैहिक तौर पर घायल करने का मामले न्यायसंगत भ्रष्टता के अपराध की श्रेणी में आता है या नहीं। इस मामले में हम हमले से चिंतित है। यह कहना बहुत मुश्किल है कि हर हमला न्यायसंगत भ्रष्टता के अपराध की श्रेणी में नहीं आता है। एक साधारण हमला एक ज्यादा गंभीर हमले से अलग होता है। हर हमले या साधारण हमले को न्यायसंगत भ्रष्टता के अपराध की श्रेणी में नहीं माना जा सकता है। दूसरी तरफ हमले में कोई ऐसा खतरनाक हथियार प्रयोग करना,जिससे पीड़ित की मौत हो सकती हो,ऐसे हमला न्यायसंगत भ्रष्टता अपराध का परिणाम हो सकता है। इस मामले में प्रतिवादी के पास ऐसा कोई मकसद नहीं था,जो पीड़ित की मौत का कारण बन जाए। आपराधिक कोर्ट ने इस मामले में पाया था कि पीड़ित को जो चोट लगी है वो साधारण प्रकृति की थी। इस मामले के पूरे तथ्यों को देखने के बाद हमारा विचार है कि प्रतिवादी ने जो अपराध किया है,उसमें न्यायसंगत भ्रष्टता या मोरल टूर्पिटूड शामिल नहीं थी।


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