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भीड़-भाड़ वाले इलाके में तेजगति से ड्राईविंग करना, माना जा सकता है लापरवाही से गाड़ी चलाना-बाॅम्बे हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]
![भीड़-भाड़ वाले इलाके में तेजगति से ड्राईविंग करना, माना जा सकता है लापरवाही से गाड़ी चलाना-बाॅम्बे हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े] भीड़-भाड़ वाले इलाके में तेजगति से ड्राईविंग करना, माना जा सकता है लापरवाही से गाड़ी चलाना-बाॅम्बे हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]](https://hindi.livelaw.in/h-upload/2018/12/30bombay-hcpng.png)
भीड़-भाड़ वाले ऐसे इलाके में जहां लोगों का आना-जाना लगा रहता है, वहां पर तेजगति से ड्राईविंग करने को एक तरह से लापरवाही से गाड़ी चलाना माना जा सकता है।
बाॅम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि जब किसी व्यक्ति को यह पता है कि वह जिस इलाके में गाड़ी चला रहा है, वह बहुत भीड़-भाड़ वाला इलाका है। उसके बावजूद भी वह अपने वाहन को तेजगति से ड्राईव करता है तो इसे लापरवाही से गाड़ी चलाने का एक तरीका माना जा सकता है।
निचली अदालत ने इस मामले में पोपट भागानाथ को भारतीय दंड संहिता की धारा 304ए व धारा 279 के तहत दोषी करार दिया था। जब उसने इस फैसले के खिलाफ अपील दायर की तो अपीलेट कोर्ट ने उसे धारा 279 के अपराध से बरी कर दिया। इस मामले में उसके वाहन ने 1 वर्ष के बच्चे को टक्कर मार दी, जिसकी मौके पर ही मौत हो गई थी।
इस मामले में दायर पुनः विचार याचिका पर कोर्ट ने कहा कि अकेले वाहन की स्पीड के आधार पर यह निर्णय नहीं किया जा सकता है कि वाहन को लापरवाही से चलाया जा रहा था। यह एक तथ्य हो सकता है, जिससे यह दर्शाया जा सके कि वाहन चालक अपने वाहन की स्पीड को नियंत्रित कर सकता था, जिससे जाहिर है कि वह लापरवाही से वाहन चला रहा था।
पीठ ने कहा कि इस मामले में यह भी तथ्य रिकार्ड पर आए हैं कि जिस सड़क पर यह दुर्घटना हुई थी, उस पर वाहनों का आवागमन अधिक संख्या में था।
कोर्ट ने कहा कि, "अभियोजन पक्ष के 2 गवाहों के बयानों से यह पता चला है कि यह दुर्घटना अहमदनगर शहर के बाहरी इलाके में हुई थी। परंतु फिर भी वह भीड़-भाड़ वाला इलाका था। वहां पर बहुत ज्यादा वाहनों का आना-जाना था। ऐसे में एक वाहन चालक से यह अपेक्षा की जाती है कि इस तरह के इलाकों में तेजगति से वाहन न चलाए। परंतु जब एक वाहन चालक को यह पता था कि वह जिस इलाके में वाहन चला रहा है, वहां बहुत भीड़-भाड़ है। उसके बावजूद भी वह तेजगति से वाहन चला रहा था तो इसे लापरवाही से वाहन चलाने के मामले की एक परछाई या तरीका माना जा सकता है। इस मामले में अगर दुर्घटना के समय वाहन का चालक, लापरवाही से अपना वाहन न चला रहा होता तो 1 वर्षीय नीरज नाम के बच्चे की जान बच सकती थी। याचिकाकर्ता की लापरवाही के कारण उस बच्चे का अनमोल जीवन छोटा हो गया।"
कोर्ट का आगे जारी रखते हुए कहा कि, "इसलिए याचिकाकर्ता की तरफ से दायर यह पुनर्विचार याचिका खारिज की जाती है।" कोर्ट ने यह भी कहा कि, "भीड़-भाड़ वाले ऐसे इलाके में जिसमें लोगों का आना-जाना लगा रहता है, वहां पर तेजगति से ड्राईविंग करने को एक तरह से लापरवाही से गाड़ी चलाना माना जा सकता है।"