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दिल्ली हाईकोर्ट ने जस्टडायल को पीवीआर का ट्रेड्मार्क प्रयोग करने से रोका, कहा - यह प्रथम दृष्ट्या रोक है [आर्डर पढ़े]

Live Law Hindi
22 April 2019 6:31 AM GMT
दिल्ली हाईकोर्ट ने जस्टडायल को पीवीआर का ट्रेड्मार्क प्रयोग करने से रोका, कहा - यह प्रथम दृष्ट्या रोक है [आर्डर पढ़े]
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दिल्ली हाईकोर्ट ने पीवीआर सिनेमाज के पक्ष में फ़ैसला सुनाते हुए जस्टडायल को पीवीआर के ट्रेड्मार्क का प्रयोग करने से रोक दिया है। पीवीआर ने मुक़दमा दायर कर जस्टडायल पर पीवीआर का लोगो प्रयोग करने पर स्थाई रोक लगाने की माँग की थी क्योंकि यह उसके ट्रेडमार्क और कॉपीराईट का उल्लंघन है।

न्यायमूर्ति मनमोहन ने इस मामले में दलील सुनने के बाद पर फ़ैसला सुनाया।

कोर्ट में कहा गया था कि दोनों ही पक्षों में 31 मार्च 2016 को टिकट बेचने को लेकर एक ग़ैर-विशिष्ट समझौता हुआ था जो कि एक साल के लिए था। समझौते के लंबित रहने के दौरान जस्टडायल को पीवीआर के टिकट बेचने वाले सॉफ़्टवेयर के प्रयोग की अनुमति दी गई थी ताकि वह पीवीआर सिनेमा हॉल्ज़ के लिए टिकट बुक कर सके।

इस समझौते को 15 अगस्त 2017 तक के लिए बढ़ा दिया गया। इसके परिणामस्वरूप दोनों पक्षों में 9 नवंबर 2017 को फिर से एक समझौता हुआ जो 16 अगस्त 2017 से लागू हुआ और यह एक साल के लिए था। इस समझौते की अवधि 15 अगस्त 2018 को समाप्त हो गई लेकिन वादी को बिग ट्री एंटर्टेन्मेंट प्राइवेट लिमिटेड (बुकमाईशो) से पता चला कि प्रतिवादी अभी भी पीवीआर सिनेमा के लिए टिकट की बुकिंग कर रहा है और इसके लिए वह बुकमाईशो के डीप लिंक देकर कर रहा है।

शिकायत करने पड़ प्रतिवादी ने आश्वासन दिया कि वह ऐसा करना बंद कर देगा।

इसके बाद जनवरी 2019 में पीवीआर को One97 Communications Ltd., जिसके पेटीएम प्लैट्फ़ॉर्म से उनका टिकट बेचने का समझौता है, से पता चला कि जस्टडायल के माध्यम से भी पीवीआर के टिकट बेचे जा सकते हैं। जस्टडायल के साथ अपने पूर्व संबंधों को देखते हुए पीवीआर ने एक बार फिर उसे ऐसा नहीं करने को कहा और उसने ऐसा नहीं करने का वादा किया। पर उसने इस मौखिक वालदे का पालन नहीं किया।

इसके बाद पीवआर को जस्टडायल को कानूनी नोटिस भिजवाने के लिए बाध्य होना पड़ा। पर उसने अभी तक ऐसा करना नहीं रोका है।

कोर्ट में कहा गया कि जस्टडायल अनधिकृत रूप से ग़ैरक़ानूनी गतिविधियों में लिप्त है और पीवीआर की क़ीमत पर ख़ुद को लोकप्रिय बना रहा है।

इस पर कोर्ट ने कहा,

"…कोर्ट का मानना है कि यह प्रथम दृष्ट्या प्रतिबंध का मामला है और मामला वादी के पक्ष में है…अगर प्रतिवादी के ख़िलाफ़ तुरंत रोक आदेश नहीं दिया जाता है तो इससे वादी को काफ़ी नुक़सान होगा।"


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