एक्साईज ड्यूटी-कर निर्धारण के लिए धर्मादा की रसीद को नहीं शामिल कर सकते है सौदे के मूल्य में-सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

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16 April 2019 4:53 AM GMT

  • एक्साईज ड्यूटी-कर निर्धारण के लिए धर्मादा की रसीद को नहीं शामिल कर सकते है सौदे के मूल्य में-सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

    किसी वस्तु को बेचते समय जो पैसा 'धर्मादा' के तौर पर दिया जाता है,जो यह राशि वस्तु के बेचने के मूल्य में शामिल नहीं की जानी चाहिए। न ही इस राशि को एक्साईज ड्यूटी का आकंलन करने के लिए सौदे के मूल्य में शामिल किया जा सकता है। यह बात मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कही है।

    'धर्मादा' एक दान है या इस चैरिटी के लिहाज से दिया जाता है,इसलिए यह मूल्य व्यवसायिक लेन-देन से अलग है। एक्साईज विभिाग ने 'धर्मादा' के संबंध में ड्यूटी दिए जाने की मांग की थी,'धर्मादा' की यह राशि डी.जे मालपानी ने प्राप्त की थी। एक्साईज का कहना था कि धर्मादा की यह राशि बिक्री के मूल्य का हिस्सा थी,इसलिए टैक्स के आकंलन के लिए इसे बिक्री मूल्य में शामिल किया जाना चाहिए।

    सेंट्रल एक्साईज एंड सर्विस टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल ने करदाता की उस मांग को खारिज कर दिया,जिसमें कहा गया था कि धर्मादा को लेन-देन के मूल्य में शामिल नहीं किया जाना चाहिए। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा कलेक्टर बनाम पंचमुखी इंजीनियरिंग वक्र्स के मामले में दिए गए फैसले का हवाला दिया गया। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि अगर किसी करदाता ने धर्मादा लिया है तो उसे लेन-देन के मूल्य में शामिल किया जाएगा।

    दो जजों की बेंच के समक्ष दायर अपील में कहा गया कि पंचमुखी मामले में जो फैसला दिया गया था,वो टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी लि. बनाम कलेक्टर आॅफ सेंट्रल एक्साईज,जमशेदपुर मामले में दिए गए फैसले पर आधारित था। परंतु वह फैसला इस मामले के तथ्यों पर लागू नहीं होता है। बल्कि इस मामले पर इनकम टैक्स( सेंट्रल) नई दिल्ली बनाम बिजली काॅटन मिल प्रा.लि. हाथरस,जिला अलीगढ़ का फैसला लागू होता है। जिसमें कोर्ट ने माना था कि करदाता द्वारा धर्मादा या चैरिटी के लिए लिया गया पैसा,उसकी एक जिम्मेदारी है। इस पैसे को उसे चैरिटबेल के कामों के लिए ही खर्च करना है। इसलिए इन रसीदों को आयकरदाता की आय में शामिल नहीं कर सकते है। दो फैसलों के बीच आए विरोधाभास को देखते हुए मामले को बड़ी बेंच के पास भेज दिया गया।

    तीन जजों की खंडपीठ जिसमें जस्टिस एस.ए बोबड़े भी शामिल थे, ने प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि बिक्री के समय जो पैसा,वस्तु के मूल्य से अलग किसी अन्य उद्देश्य से दिया गया है, वह पैसा उस लेन-देने के मूल्य में शामिल नहीं हो सकता है। चूंकि यह पैसा लेन-देन के लिए दिया गया पैसा नहीं है। इसलिए बिक्री के समय वस्तु के मूल्य के साथ दिए गए इस तरह के पैसे को वस्तु के मूल्य में शामिल नहीं माना जाएगा।

    कोर्ट ने कहा कि पंचमुखी मामले में जो फैसला दिया गया है,वह मामले के तथ्यों व कानून पर विचार करने के बाद नहीं दिया गया है,बल्कि इस आधार पर दिया गया है क्योंकि रेवेन्यू विभाग के वकील ने दलील दी थी िकइस केस पर भी टाटा आर्यन एंड स्टील केस में दिया गया फैसला लागू होता है। वहीं करदाता का वकील इस स्थिति में नहीं था िकवह इस कानूनी स्थिति पर कोई आपत्ति जाहिर करता। कोर्ट ने कहा कि टाटा आयरन एंड स्टील का मामला सरचार्ज से संबंधित था। इसलिए वह धर्मादा को प्राप्त करने के मामले पर लागू नहीं होता है। कोर्ट ने माना कि पंचमुखी केस एक अच्छा कानून नहीं है। इसलिए उस केस को यहां लागू नहीं किया जा सकता है क्योंकि उस केस में फैसला बिना जिरह व बिना तथ्यों पर ध्यान दिए हुआ था।

    कोर्ट ने कहा िकइस मामले के तथ्यों को देखने के बाद हमने पाया है कि धर्मादा के तौर पर दिया गया पैसा स्वेच्छिक तौर पर दिया गया था। जो कि चैरिटी के लिए काम के लिए था। इसलिए पाया गया है कि धर्मादा के लिए गया पैसा स्वेच्छिक था।

    रेफरेंस यानि कोर्ट के समक्ष किए गए सवाल का जवाब देते हुए बेंच ने कहा कि-हमने माना है कि अगर जो पैसा किसी वस्तु की बिक्री के समय धर्मादा के तौर पर दिया जाता है,उस पैसे को वस्तु के लेन-देन के मूल्य में शामिल नहीं किया जाएगा। यह पैसा चैरिटी यानि दान के लिए दिया गया है और वस्तु के बिक्रीदाता ने भी उसी तौर पर इसे प्राप्त किया है। अगर यह पैसा दान के लिए ही क्रेडिट किया जाता है और करदाता की आय का हिस्सा नहीं है तो ऐसे में इस पैसे को टैक्स के आकंलन के समय वस्तु के मूल्य में शामिल नहीं किया जाएगा।


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