अर्बिट्रेशन एग्रीमेंट में तय की गई प्रक्रिया को देखने के बाद ही कोर्ट नियुक्त कर सकती है स्वतंत्र अर्बिट्रेटर-सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]
Live Law Hindi
3 April 2019 1:10 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हाईकोर्ट जब कभी भी अर्बिट्रेशन एंड कंसीलेशन एक्ट के सेक्शन 11(6) के तहत दायर किसी ऐसी अर्जी पर सुनवाई करे जिसमें स्वतंत्र अर्बिट्रेटर नियुक्त करने की मांग की गई तो सबसे पहले पार्टियों द्वारा आपसी सहमति से बनाए अनुबंध में अर्बिट्रेटर नियुक्त करने के लिए तय किए गए नियम व प्रक्रिया को देखे।
मामले में दायर अपील(यूनियन आॅफ इंडिया बनाम परमार कंस्ट्रक्शन कंपनी)में एक मुद्दा यह भी था कि क्या अर्बिट्रेशन एंड कंसीलेशन एक्ट 1996(एक्ट 2015 के संशोधन से पहले) के सेक्शन 11(6) के तहत हाईकोर्ट को इस बात की अनुमति है िकवह कोई स्वतंत्र या किसी तीसरे व्यक्ति को अर्बिट्रेटर नियुक्त कर दे जबकि पार्टियों ने आपसी सहमति से इसके लिए प्रक्रिया तय कर रखी हो।
जस्टिस ए.एम खानविलकर व जस्टिस अजय रस्तोगी की खंडपीठ ने कहा कि यह जरूरी है कि अर्बिट्रेटर की स्वतंत्रता व निष्पक्षता पर कोई संदेह न हो। कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट को ऐसे मामलों में पहले जांच करनी चाहिए कि क्या अनुबंध के नियमों के तहत नियुक्त अर्बिट्रेटर अपना दायित्व पूरा नहीं कर पाया है या उस मुद्दे पर मध्यस्था कर दी,जो मुद्दा पार्टियों ने उठाया ही नहीं था।
एक्ट के कुछ महत्वपूर्ण प्रावधानों का हवाला देते हुए बेंच ने कहा कि-
क्या अर्बिट्रेशन एग्रीमेंट के अनुसार नियुक्त अर्बिट्रेटर की निष्पक्षता पर कोई संदेह है या अर्बिट्रेशन एग्रीमेंट के तहत नियुक्त अर्बिट्रेल ट्रिब्यूनल अपना काम नहीं कर रही है या वह सुनवाई पूरी नहीं कर पाई या फिर उसने बिना उचित कारण बताए अपना फैसला दे दिया है और ऐसे में नया अर्बिट्रेटर नियुक्त किया जाना जरूरी हो गया है। ऐसे में मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा नियुक्त कोई मामले के तमाम तथ्यों को देखने के बाद एक वैकल्पिक अरेंजमेंट कर सकता है,ताकि एक्ट के सेक्शन 11(6) के तहत स्वतंत्र अर्बिट्रेटर नियुक्त किया जा सके।
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में हाईकोर्ट स्वतंत्र अर्बिट्रेटर की नियुक्ति को जस्टिफाई नहीं कर पाई क्योंकि दोनों पक्षकारों द्वारा बनाए गए अनुबंध के क्लाज 64(3) के तहत अर्बिट्रेटर नियुक्त करने के लिए जो प्रक्रिया तय की गई थी,उसको हाईकोर्ट ने नहीं देखा।
जहां तक बात संशोधित एक्ट 2015 के लागू होने की है तो यह संशोधन 23 अक्टूबर 2015 से लागू हुआ था। इसलिए यह संशोधित एक्ट उस अर्बिट्रल प्रोसिडिंग पर लागू नहीं हो सकता है जो संशोधित एक्ट के लागू होने से पहले ही प्रिंसीपल एक्ट 1996 के सेक्शन 21 के तहत शुरू हो चुकी थी। ऐसा सिर्फ तभी हो सकता है जब मामले की पार्टियां या पक्षकार इसके लिए सहमत हो।
इस केस में बनाए गए अनुबंध के अनुसार अर्बिट्रेटर रेलवे के दो गजटेड अधिकारी होने चाहिए थे। जबकि हाईकोर्ट ने सेक्शन 11(6) के तहत दायर अर्जी को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट के एक रिटायर्ड जज को स्वतंत्र व अकेला अर्बिट्रेटर नियुक्त कर दिया।