राजनीतिक विज्ञापन-बाॅम्बे हाईकोर्ट ने ईसीआई को दिया निर्देश,चुनाव के दौरान सोशल मीडिया पर फलैगड सामग्री को हटाने के लिए तीन घंटे की समय अवधि में ले निर्णय [आर्डर पढ़े]

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1 April 2019 8:33 AM GMT

  • राजनीतिक विज्ञापन-बाॅम्बे हाईकोर्ट ने ईसीआई को दिया निर्देश,चुनाव के दौरान सोशल मीडिया पर फलैगड सामग्री को हटाने के लिए तीन घंटे की समय अवधि में ले निर्णय [आर्डर पढ़े]

    बाॅम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को आईएएमएआई द्वारा बनाए स्वेच्छिक कोड आॅफ एथिक्स,जिनको ईसीआई ने कोर्ट के समक्ष पेश किया था,स्वीकार कर लिया है। इन एथिक्स का आगामी आम चुनाव में अंतरिम व्यवस्था के तौर पर पालन किया जाएगा।

    मुख्य न्यायाधीश एन.एच पाटिल व जस्टिस एन.एम जामदर की खंडपीठ इस मामले में एक वकील सागर सूर्यवंशी की तरफ से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उसने सोशल मीडिया पर राजनीतिक विज्ञापनों के रेगुलेशन की मांग की थी,विशेषतौर पर मतदान से 48 घंटे पहले वाले समय में अपलोड किए जाने वाले विज्ञापनों को।

    फेसबुक,ट्वीटर एंड गूगल

    मामले की सुनवाई के दौरान प्रतिवादी फेसबुक,ट्वीटर व यू-ट्यूब,जो गूगल के अधीन है,ने कोर्ट के समक्ष बताया िकवह इस मामले को विरोधात्मक तरीके से नहीं ले रहे है और भारतीय चुनाव आयोग के साथ पूरा सहयोग करेंगे ताकि निष्पक्ष चुनाव हो सके। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि पहले से अधिकृत भारतीय विज्ञापनदाताओं को ही उनके प्लेटफार्म राजनीतिक विज्ञापन चलाने की अनुमति दी जाएगी।

    ट्वीटर की तरफ से राजनीतिक विज्ञापनों के संबंध में उनकी पाॅलिसी कोर्ट के समक्ष पेश की गई। जिसके बाद याचिकाकर्ता ने दलील दी कि ट्वीटर राजनीतिक विज्ञापनों के मामले में भारत व यूएसए में अलग-अलग पाॅलिसी का पालन करता है। ट्वीटर इंटरनेशनल कंपनी ने एक अर्जी दायर कर उनको मामले में पक्षकार बनाए जाने की मांग की क्योंकि ट्वीटर इंक भारत के मामलों की देखभाल नहीं करता है। यह सब काम ट्वीटर इंटरनेशनल देखती है।

    च्ुनाव आयोग

    शुक्रवार को चुनाव आयोग ने एक प्रेस नोट पेश किया जो 23 मार्च 2019 को जारी किया गया था। इस नोट में वर्ष 2019 के आम चुनाव व राज्य विधानसभा चुनाव के बारे में लिखा था। इसमें जनप्रतिनिधि कानून 1951 की धारा 126 के तहत इस अवधि में मीडिया कवरेज के बारे में भी बताया गया था। वहीं इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन आॅफ इंडिया यानी आईएएमएआई द्वारा आम चुनाव 2019 के लिए बनाए स्वेच्छिक कोड आॅफ एथिक्स को भी पेश किया गया।

    ईसीआई यानी भारतीय चुनाव आयोग के वकील प्रदीप राजगोपालन ने कोर्ट को बताया कि इस प्रेस नोट को भारतीय चुनाव आयोग के निर्देश की तरह माना जा सकता है। इससे पूर्व ईसीआई ने कोर्ट को बताया था कि उन्होंने आईएएमएआई द्वारा बनाए गए स्वेच्छिक कोड आॅफ एथिक्स को स्वीकार कर लिया है।

    स्वेच्छिक या वोलेंटरी कोड आॅफ एथिक्स

    1-सहभागी इस बात का प्रयास करे कि उचित व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ध्यान में रखते हुए नीति व प्रक्रिया बनाए,ताकि लोग उनके बारे में जान सकें या लोगों तक उनकी जानकारी पहुंच सके।

    2-चुनाव के रूल व अन्य नियमों के बारे में जागरूक करने के लिए सहभागी स्वेच्छा से सूचना,शिक्षित करने व संचार करने के लिए अभियान चलाए। सहभागी स्वयं ईसीआई में नोडल अधिकारी को अपनी सेवा या प्रोडक्ट के बारे में जानकारी दे।

    3-भारतीय चुनाव आयोग व सहभागी मिलकर एक नोटिफिकेशन मैकेनिज्म विकसित करे ताकि आयोग उसके जरिए जरूरी सूचनाएं नोटिफाई कर सके। चाहे वह जनप्रतिनिधि कानून 1951 के संबंधित हो या अन्य संबंधित कानून से। सिन्हा कमेटी की अनुशंसाओं के अनुसार जब भी किसी तरह के नियम के उल्लंघन की सूचना मिले,उसके तीन घंटे के अंदर यह आदेश स्वीकृत कर दिए जाए।

    4-सहभागी ईसीआई तक सूचना पहुंचाने के लिए एक उच्च प्राथमिकता वाला रिपोर्टिंग मैकेनिज्म बनाए ताकि समय पर सूचनाएं ईसीआई तक पहुंचाई जा सके और ईसीआई समय पर किसी तरह के उल्लंघन की सूचना मिलने पर उसके खिलाफ कार्यवाही कर सके।

    5-सहभागी पाॅलिटिकल एडवरटाईजर को कानून के तहत अपने उत्तरदायित्वों को देखते विज्ञापन दे। इसके लिए चुनावी विज्ञापन के लिए ईसीआई द्वारा जारी प्री-सर्टिफिकेट या मीडिया सर्टिफिकेट एंड माॅनिटिरिंग कमेटी आॅफ ईसीआई द्वारा जारी कागजात जमा कराए। इस कागजात में पार्टी का नाम,उम्मीदवार का नाम आदि होना चाहिए।

    6-सहभागी इस बात के लिए वादा करे कि पेड पाॅलिटिकल विज्ञापनों में वह पारदर्शिता बरतेगा।

    7-आईएएमएआई सभी सहभागियों के साथ समंवय करेगा ताकि आईएएमएआई द्वारा बनाए गए कोड का पालन हो सके। वही सभी सहभागी चुनाव आयोग के साथ भी सूचनाओं का आदान-प्रदान जारी रखेंगे।

    अंतिम आदेश

    याचिकाकर्ता के वकील डाक्टर अभिनव चंद्राचूड़ ने दलील दी कि कोड आॅफ एथिक्स के सब-क्लाज तीन के तहत सोशल मीडिया से किसी आपत्तिजनक सामग्री को हटाने के लिए तीन घंटे का समय निर्धारित किया गया है। जो आॅन लाइन मीडिया के हिसाब से सही नहीं है क्योंकि इंटरनेट पर कुछ भी मिनटों में वायरल हो जाता है। यह मतदान से 48 घंटे पहले लगाए जाने वाले प्रतिबंध के उद्देश्य को बेकार साबित कर देगा। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता के वकील की चिंता बेकार नहीं है। खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के वकील कई अन्य देशों का हवाला दिया है कि जहां इस तरह की सामग्री को 15 मिनट में हटा दिया जाता है।

    जिस तरीके से इंटरनेट पर सूचनाएं फैल जाती है,उसे देखते हुए याचिकाकर्ता के वकील की चिंता बेकार नहीं कही जा सकती है। परंतु इस मुद्दे पर विचार चुनाव आयोग द्वारा किया जाना है। इसलिए इस संबंध में चुनाव आयोग तीन घंटे के अंदर निर्णय ले। वहीं इस पूरे मामले में आज से एक सप्ताह के अंदर निर्णय लिया जाए।


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