कोई स्कीम फ्रेम करना नहीं है हाईकोर्ट का काम-सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

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22 March 2019 3:21 PM GMT

  • कोई स्कीम फ्रेम करना नहीं है हाईकोर्ट का काम-सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

    ''विशेष मामलों में ही कोर्ट यह विचार कर सकती है कि अनिवार्य निर्देश दिए जाने जरूरी है,अन्यथा ऐसा नहीं किया जाता है।''

    उत्तराखंड हाईकोर्ट के एक आदेश को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह हाईकोर्ट का कार्य नहीं है कि वह कोई स्कीम फ्रेम करे।

    इस मामले में केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश को शीर्ष कोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में खुद से स्कीम फ्रेम करते हुए कैजुअल पेड लेबर की सेवाओं को नियमित कर दिया था और लेबर लाॅ के तहत इन कैजुअल पेड लेबर को स्थाई कर्मचारियों वाले फायदे व सुविधा दे दी थी। साथ ही सरकार को परमादेश दे दिया था कि इस स्कीम को लागू करे।

    इस मामले में कुछ ट्रेड यूनियन ने हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए मांग की थी कि उत्तराखंड राज्य में चल रहे बीआरओ के प्रोजेक्ट पर लंबे समय से काम करने वाले कैजुअल लेबर को भी नियमित किया जाए। बीआरओ चार धाम यात्रा के यात्रियों की सुविधा के लिए सड़के बनाने का काम कर रहा है। याचिकाकर्ताओं के अनुसार यह लेबर केंद्र सरकार के लिए कई सालों से काम कर रहे हैं और अपनी सेवाएं दे रहे हैं,परंतु इनको सरकारी कर्मचारियों की तरह नियमित नहीं किया जा रहा है। न ही इनको नियमित वेतन व अन्य सुविधाएं दी जा रही हैं। न ही इनको सरकारी कर्मचारियों को उपलब्ध कराए जाने वाली किसी भी तरह की कोई सुरक्षा दी जा रही हैै।

    शीर्ष कोर्ट ने कहा कि इसी तरह के एक अन्य मामले में ऐसा ही मुद्दा उठाया गया था,जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह बीआरओ के द्वारा चलाए जा रहे प्रोजेक्ट पर काम करने वाले कैजुअल लेबर की सेवाओं को नियमित करने के लिए उचित योजना बनाए।

    हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हए बेंच ने कहा कि ''हाईकोर्ट ने अपने आदेश में इस बात की अनदेखी की है कि कोई भी स्कीम बनाना कोर्ट का काम नहीं है,बल्कि यह अधिकार सरकार के पास है। किसी मामले के तथ्यों को देखते हुए हाईकोर्ट संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने असाधारण अधिकार का प्रयोग करते हुए सरकार को यह निर्देश दे सकती है कि वह उचित स्कीम बनाने पर विचार करे,यही इस कोर्ट ने यूनियन आॅफ इंडिया के मामले के मामले में किया था,परंतु इससे बाहर जाकर कुछ नहीं किया जा सकता है। सिर्फ विशेष मामलों में ही कोर्ट यह विचार कर सकती है कि अनिवार्य निर्देश दिए जाने जरूरी है,अन्यथा ऐसा नहीं किया जाता है।


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