किसी आरोपी को अगर एक से अधिक अपराधों में सज़ा मिलती है तो यह बताना ज़रूरी है कि जो सज़ा दी गई है वह साथ-साथ चलेगी या एक के बाद दूसरी : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

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23 Feb 2019 2:31 PM GMT

  • किसी आरोपी को अगर एक से अधिक अपराधों में सज़ा मिलती है तो यह बताना ज़रूरी है कि जो सज़ा दी गई है वह साथ-साथ चलेगी या एक के बाद दूसरी : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि क़ानून के तहत यह बताना ज़रूरी है कि अगर किसी व्यक्ति को दो या दो से अधिक अपराधों के लिए सज़ा मिली है तो यह सज़ा साथ-साथ चलेगी या एक सज़ा पूरी हो जाने के बाद दूसरी सज़ा चलेगी।

    मजिस्ट्रेट ने गगन कुमार को आईपीसी की धारा 279 और 304A के तहत दोषी ठहराया था। उसे धारा 279 के तहत छह माह की सश्रम कारावास की सज़ा सुनाई गई और 304A के तहत दो साल के सश्रम कारावास की सज़ा सुनाई गई। मजिस्ट्रेट के आदेश में यह नहीं बताया गया था कि ये सज़ा एक के बाद एक होगी या एक साथ चलेगी। अपीली अदालत और हाईकोर्ट ने भी इस आदेश को सही ठहराया।

    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर अपील में यह उठाया गया कि यह सज़ा एक के बाद एक होगी या साथ-साथ चलेगी इसको स्पष्ट नहीं करके मजिस्ट्रेट ने ग़लती तो नहीं की है।

    न्यायमूर्ति अभय मनोहर सप्रे और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 31 के अनुसार आरोपी को अगर एक से अधिक मामलों में सज़ा मिली है तो यह बताना ज़रूरी है कि सज़ा साथ-साथ चलेगी या एक सज़ा पूरी होने के बाद दूसरी सज़ा शुरू होगी। पीठ ने कहा,

    "…संहिता की धारा 31 के तहत यह बताना आवश्यक है और ऐसा नहीं करके मजिस्ट्रेट ग़लती की है और आरोपी पर दो सज़ा थोप दी है। अगर मजिस्ट्रेट अपनी कर्तव्यों को पूरा करने में विफल रही, तो अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश और हाईकोर्ट को मजिस्ट्रेट की इस ग़लती पर ग़ौर करना चाहिए था और इसे सही करना चाहिए था। पर ऐसा नहीं किया गया और इसलिए इस स्थिति में हस्तक्षेप की ज़रूरत हुई।"

    पीठ ने अंततः इस मामले को निस्तारन कर दिया और स्पष्ट किया कि आरोपी को जो सज़ा दी गई है वह साथ-साथ चलेगी।


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