'रोज़गार के काल्पनिक विस्तार के सिद्धांत' के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने मृत ड्राइवर के निकटतम रिश्तेदारों को मुआवज़ा देने का आदेश दिया; कहा - वह अपनी इच्छा से कार्यस्थल पर नहीं था [निर्णय पढ़े]
Rashid MA
24 Jan 2019 7:54 PM IST
'रोज़गार के काल्पनिक विस्तार' के सिद्धांत को लागू करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने नियोक्ताओं को एक बस डाइवर के क़ानूनी उत्तराधिकारी को मुआवज़ा देने का आदेश दिया है। इस बस ड्राइवर की उस समय मौत हो गई थी जब वह भोजन करने के बाद बस की छत से नीचे उतर रहा था।
"सिर्फ़ इसलिए कि वह मृतक (ड्राइवर) खाना खाने के बाद बस की छत से उतरकर नीचे आ रहा था, इस मामले को अलग-थलग मामला नहीं माना जा सकता… और यह नहीं कहा जा सकता कि उस समय वह ड्यूटी पर नहीं था और इसलिए उसे मुआवज़ा नहीं मिल सकता," न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने कहा।
अदालत बस के मृत ड्राइवर के क़ानूनी वारिसों की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इन लोगों ने कर्मचारी मुआवज़ा (संशोधन) अधिनियम, 1923 के तहत मुआवज़े की माँग के लिए याचिका दायर की थी जिसे ख़ारिज कर दिया गया था।
इस मामले के बारे में साक्ष्यों का उल्लेख करत हुए पीठ ने कहा कि ड्राइवर बस टर्मिनल पर मौजूद था और इंदौर से बस के आने के बाद भी वह उस पर मौजूद था और ऐसा उसने अपनी इच्छा से नहीं किया था बल्कि वह ऐसा करने के लिए मजबूर था क्योंकि उसकी ड्यूटी ही ऐसी थी।
"अगर मृतक हर दिन अपने बस को लगाने के बाद अपने घर चला गया होता और अगली सुबह वापस आता तो इस बस सर्विस की सुविधा जो लोगों को इस बस के समय से चलने से मिल रही थी वह निश्चित रूप से प्रभावित होती क्योंकि फिर बस का समय पर चलना इस बात पर निर्भर करता कि मृतक अपने घर से बस चलाने के लिए कब टर्मिनल पर पहुँचता है। ज़ाहिर है इससे बस के खुलने के समय को लेकर अनिश्चितता बनी रहती और इससे बस परिचालन की सक्षमता प्रभावित होती। मृतक का यह सुनिश्चित करना कि बस का परिचालन समय पर हो, निश्चित रूप से प्रतिवादी नंबर एक को लाभ होता है क्योंकि इससे उसकी आय बढ़ती है क्योंकि बस समय पर चलती है। याचिकाकर्ता का यह कहना कि वह कई सप्ताह तक घर नहीं जाता था, ऐसा नहीं हो सकता कि उसका कोई कारण नहीं था," कोर्ट ने कहा।
कोर्ट ने कहा कि 'काल्पनिक विस्तार' के सिद्धांत को लागू करने पर स्पष्ट है कि दुर्घटना और रोज़गार के बीच स्पष्ट संबंध था।
"अगर बस के साथ रहना की आवश्यकता बस सेवा की सक्षमता से आवश्यक रूप से जुड़ा था और जिसका लाभ आम लोगों को प्रतिवादी नंबर एक की ओर से मिलता था और मृतक बस टर्मिनल पर बस के साथ आम लोगों की तरह मौजूद नहीं था तो रोज़गार के काल्पनिक विस्तार के सिद्धांत को नहीं लागू करने का कोई कारण नहीं नज़र आता," कोर्ट ने कहा।
पीठ ने कामगार मुआवज़ा आयुक्त को निर्देश दिया कि वह मृतक के क़ानूनी वारिसों को मिलने वाले मुआवज़े का आकलन करे।