मृतक के मां-बाप दहेज के मामले में सबसे वास्तविक गवाह होते हैं, उनके झूठ बोलने का भला क्या कारण हो सकता है : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

Rashid MA

16 Jan 2019 7:18 AM GMT

  • मृतक के मां-बाप दहेज के मामले में सबसे वास्तविक गवाह होते हैं, उनके झूठ बोलने का भला क्या कारण हो सकता है : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति को उसकी मृत पत्नी के मां-बाप और रिश्तेदारों की गवाही के आधार पर दहेज-हत्या का दोषी क़रार दिया है।

    इस मामले (Mahadevappa vs. State of Karnataka) में, अभियोजन पक्ष ने कहा की आरोपी ने अपनी पत्नी रुक्मिनी बाई के शरीर पर उस समय केरोसीन तेल डालकर आग लगा दी, जब वह रसोईघर में खाना बना रही थी। निचली अदालत ने आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि अभियोजन पक्ष, उसके ख़िलाफ़ दहेज की मांग के आरोप को साबित नहीं कर पाया था। अदालत ने यह भी कहा था कि मृतका को जानबूझकर नहीं मारा गया है।

    हाईकोर्ट ने राज्य की अपील पर ग़ौर करने के बाद निचली अदालत के इस फ़ैसले को पलटते हुए आरोपी को हत्या का दोषी करार दिया था। आरोपी ने इसके बाद इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील की।

    मृतका के माँ-बाप और दो निकट संबंधी, अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में कोर्ट में पेश हुए और उन्होंने निचली अदालत में यह कहा की आरोपी को शराब की लत थी और वह अपनी पत्नी (मृतका) से अमूमन पैसे की मांग करता था। इन गवाहों ने यह भी कहा कि वह अपनी पत्नी से दुर्व्यवहार करता था और उसका शारीरिक उत्पीड़न भी करता था और यह सब शादी के तुरंत बाद शुरू हो गया और यह सिलसिला उसकी मृत्यु तक जारी रहा।

    न्यायमूर्ति अभय मनोहर सप्रे और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा की पीठ ने कहा कि उन्हें इन चारों गवाहों के मेटेरीयल साक्ष्य में कुछ भी विरोधाभासी तत्व नज़र नहीं आया, जबकि बचाव पक्ष ने इनसे काफ़ी लम्बी पूछताछ की थी।

    कोर्ट ने कहा, "मृत महिला की माँ और उसके पिता, जो इस मामले में सर्वाधिक स्वाभाविक और वास्तविक गवाह हैं, ने जो गवाही दी है उसको दरकिनार करने का कोई कारण अदालत को नज़र नहीं आता है। सच यह है की इस प्रकार की परिस्थिति में, बेटी जिसकी अभी अभी शादी हुई थी, अपनी समस्या के बारे में सबसे पहले अपनी माँ और पिता को बताएगी, जो उसकी समस्या दूर करने में सबसे ज़्यादा मदद करते हैं।"

    कोर्ट ने आगे कहा, "कोई माँ-बाप अकारण ही क्यों झूठ बोलेंगे। हम इस मामले में इस तरह का कोई कारण नहीं देख पा रहे हैं। यहाँ तक कि उनके रिश्तेदारों ने भी उनके बयान को सही बताया है।" पीठ ने हाईकोर्ट की इस बात को भी सही ठहराया कि यह मामला जानबूझकर (इरादतन) हत्या का है न कि आकस्मिक हत्या का।


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