सगे-संबंधी के मामले में नान -एडवोकेट पाॅवर आॅफ अटार्नी को दी जा सकती है कोर्ट के समक्ष दलीलें देने की अनुमति-कोलकता हाईकोर्ट

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30 April 2019 9:01 AM GMT

  • सगे-संबंधी के मामले में नान -एडवोकेट पाॅवर आॅफ अटार्नी को दी जा सकती है कोर्ट के समक्ष दलीलें देने की अनुमति-कोलकता हाईकोर्ट

    किसी विशेष मामले में कोर्ट द्वारा एडवोकेट एक्ट 1961 की धारा 32 के तहत किसी व्यक्ति को कोर्ट के समक्ष पेश होने की अनुमति देना वकीलों को प्रैक्टिस के लिए मिले अधिकारों का अपवाद है।

    कोलकता हाईकोर्ट ने कहा है कि कोर्ट के पास यह अधिकार है कि किसी सगे-संबंधी के मामले में पाॅवर आॅफ अटार्नी यानि जिस व्यक्ति ने वकालत की पढ़ाई न की हो,को कोर्ट के समक्ष पेश होकर दलीलें देने की अनुमति दे दे।

    जस्टिस सुमेन सेन व जस्टिस रवि कृष्ण कपूर की दो सदस्यीय खंडपीठ ने कहा कि यह अधिकार कोर्ट उस समय प्रयोग कर सकती है,जब कोर्ट को यह आश्वासन दे दिया जाए कि जो सगा-संबंधी याचिकाकर्ता की तरफ से पेश होगा वह कानून को जानता है और वह इस स्थिति में है कि मामले में कोर्ट की सहायता कर सके।

    दो सदस्यीय खंडपीठ इस मामले में एक सदस्यीय खंडपीठ के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। एक सदस्यीय खंडपीठ ने राधा नाथ नंदी की तरफ से दायर अर्जी को खारिज कर दिया था। राधा नाथ नंदी ने दावा किया था कि उसके पास वसीयत से जुड़े केस में प्रतिवादी की तरफ से पेश होने के लिए पाॅवर आॅफ अटार्नी है। इसलिए उसे इस केस में प्रतिवादी की तरफ से दलीलें पेश करने की अनुमति दी जाए।

    खंडपीठ ने कहा कि राईट आॅफ प्रैक्टिस एक अधिकार है जो वकीलों को दिया गया है ताकि वह सभी कोर्ट व अॅथारिटी के समक्ष पेश होकर प्रोफेशन आॅफ लाॅ की प्रैक्टिस कर सके। परंतु किसी विशेष मामले में अगर कोर्ट एडवोकेट एक्ट 1961 की धारा 32 के तहत किसी व्यक्ति को पेश होने की अनुमति देती है तो यह अधिकार वकीलों को मिले प्रैक्टिस के अधिकार का अपवाद है।

    पीठ ने अपने फैसले मे कई हाईकोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि-

    हम विभिन्न हाईकोर्ट द्वारा दिए गए उन विचारों से सहमत है कि पाॅवर आॅफ अटार्नी के पास कोर्ट के समक्ष पेश होकर दलीलें देने का अधिकार नहीं है,परंतु दूसरी तरफ हमारा यह भी मानना है कि कोर्ट के पास यह अधिकार होता है कि किसी सगे-संबंधी के मामले में वह पाॅवर आॅफ अटार्नी को कोर्ट के समक्ष पेश होने की अनुमति दे सकती है। कोर्ट अपने इस अधिकार का प्रयोग उस समय कर सकती है,जब कोर्ट को यह आश्वासन हो जाए कि जिसे पाॅवर आॅफ अटार्नी दी गई है,वह कानून को जानता है और इस स्थिति में है कि उस केस में कोर्ट की मदद कर सकता है। दूसरे शब्दों में कहे तो ऐसे व्यक्ति को कोर्ट को यह विश्वास दिलाना होगा िकवह कोर्ट के समक्ष पेश होकर उस मामले से संबंधित दलीलें पेश कर सकता है।

    हालांकि इस मामले में पीठ ने एक सदस्यीय पीठ के आदेश को सही ठहराते हुए कहा कि नंदी मामले से जुड़े विषय के बारे में व कानून के बारे में ज्यादा नहीं जानता है। वह इस स्थिति में नहीं है िकइस मामले में कोर्ट की मदद कर सके। दूसरे शब्दोें में वह कोर्ट को यह विश्वास नहीं दिला पाया कि उसके पास इतनी समक्षता है कि वह इस मामले में कोर्ट की मदद कर सकता है।

    पीठ ने विभिन्न हाईकोर्ट द्वारा बनाए गए प्रिंसीपल को संक्षिप्त करते हुए कहा कि-

    अगर कोई ऐसा व्यक्ति जो कि वकील नहीं है और पाॅवर आॅफ अटार्नी के आधार पर कोर्ट के समक्ष पेश होकर दलीलें देने की अनुमति मांगता है तो उसे यह अनुमति नहीं दी जा सकती है। रूल एक के आर्डर 3 के तहत पाॅवर आॅफ अटार्नी के आधार पर किसी व्यक्ति को कोर्ट में पेश होने की अनुमति दी जाती है। परंतु इन नियमों पर एडवोकेट एक्ट 1961 की धारा 32 व 33 के प्रावधान लागू होते है।

    कानून व प्रोफेशन की नीति और बार की तहजीब व प्रणाली के आधार पर कोई व्यक्ति अपना केस तब तक खुद नहीं लड़ सकता है,जब तक वह अपने वकील को केस से न हटा दे।

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