पांच माह के लिए आकस्मिक तौर पर खाली हुई विधानसभा सीट को भरने के लिए उप-चुनाव करवाना है कानून का उल्लंघन,विवेकाधीन-बाॅम्बे हाईकोर्ट ने किया ईसीआई के फैसले को रद्द [निर्णय पढ़े]

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20 April 2019 8:56 AM GMT

  • पांच माह के लिए आकस्मिक तौर पर खाली हुई विधानसभा सीट को भरने के लिए उप-चुनाव करवाना है कानून का उल्लंघन,विवेकाधीन-बाॅम्बे हाईकोर्ट ने किया ईसीआई के फैसले को रद्द [निर्णय पढ़े]

    एक महत्वपूर्ण फैसले में बाॅम्बे हाईकोर्ट ने भारतीय चुनाव आयोग के उस निर्णय को रद्द कर दिया है,जिसमें महाराष्ट्र के नागपुर स्थित कटोल विधानसभा की आकस्मिक तौर पर खाली हुई सीट को भरने के लिए उप-चुनाव करवाने का फैसला लिया गया था। हाईकोर्ट ने इस फैसले को विवेकाधीन,पक्षपाती,अकारण व कानून के नियमों का उल्लंघन बताया है।

    नागपुर बेंच के जस्टिस एस.बी सुक्रे व जस्टिस पी.वी गनेडीवाला इस मामले में कटोल निवासी एक संदीप सरोडे की तरफ से दायर रिट पैटिशन पर सुनवाई कर रहे थे। सरोडे ने 11 अप्रैल को कटोल विधानसभा में उपचुनाव कराने की घोषणा की वैधता व सत्यता पर सवाल उठाया था।

    क्या था मामला

    आशिष रणजीत देशमुख चार साल के लिए कटोल विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे,उसके बाद उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया,जिसे महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर द्वारा छह अक्तूबर 2018 को स्वीकार कर लिया गया। उसके बाद से यह विधानसभा सीट खाली पड़ी थी। दस मार्च 2019 को ईसीआई द्वारा जारी प्रेसनोट में कटोल विधानसभा के लिए उपचुनाव कराने की घोषणा की गई। याचिकाकर्ता ने इसी को चुनौती दी थी।

    दलीलें या तर्क

    याचिकाकर्ता के अनुसार इस तरह आकस्मिक तौर पर खाली हुई विधानसभा सीट को भरने के लिए चुनाव की घोषणा करने से लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 151 के तहत दिए गए नियमों का दो आधार पर उल्लंघन हुआ है।

    पहला, धारा 151-ए के अनुसार किसी खाली सीट को उपचुनाव द्वारा भरने के संबंध में धारा 147,149,150 व 151 में बताया गया है जिनके अनुसाी ऐसी सीट खाली होने के छह महीने के अंदर उपचुनाव करवा दिया जाना चाहिए। जबकि इस मामले में सीट को उपचुनाव द्वारा भरने के लिए जो तारीख निर्धारित की गई है,उससे पहले ही सीट को खाली हुए छह माह की अवधि पूरी हो चुकी होगी।

    दूसरा, धारा 151-ए(ए),धारा 151ए लागू नहीं होता है,अगर जिस सीट के लिए उपचुनाव करवाया जा रहा है,उस सीट की अवधि एक साल से कम समय की रह गई है।

    याचिकाकर्ता के वकील एस.पी भंडारकर ने दलील दी िकइस मामले में ईसीआई ने अपने अधिकारों का प्रयोग ठीक से नहीं किया और जरूरी तथ्यों को ध्यान में नहीं रखा गया। जैसे की आम जनहित, इतनी कम अवधि के लिए किसी सीट को भरने के लिए इतना पैसा खर्च करना व सरकारी मशीनरी पर पड़ने वाले दबाव आदि का ध्यान नहीं रखा गया। उसने दलील दी िकइस मामले में विधानसभा के आम चुनाव अक्टूबर या नवम्बर में इस साल होने है। ऐसे में जो उम्मीदवार इस सीट पर जीत कर आएगा,उसके पास एक साल का समय भी नहीं रहेगा,उससे पहले अगला चुनाव आ जाएगा।

    ईसीआई की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एम.जी भांगडे ने दलील दी िकइस सीट पर चुने जाने वाले उम्मीदवार का कार्यकाल एक साल से कम नहीं होगा क्योंकि इसकी गणनना उस दिन से की जाएगी,जिस दिन से सीट खाली हुई है,न कि उस दिन से जिस दिन उपचुनाव का परिणाम घोषित होगा। न ही आरपी एक्ट 1951 में ऐसा कहा गया है कि अगर किसी सीट पर कार्यकाल एक साल से कम समय का बचा है तो उसके खाली होने पर उपचुनाव नहीं करवाया जा सकता है और ऐसी सीट को सिर्फ विधानसभा के आम चुनाव के दौरान ही भरा जाए।

    कोर्ट का फैसला

    कोर्ट ने आरपी एक्ट के जरूरी प्रावधानों को देखने के बाद अपना फैसला देते हुए कहा कि-

    आरपी एक्ट 1951 की धारा 150 के अनुसार चुनाव आयोग की यह वैधानिक ड्यूटी बनती है कि वह आरपी एक्ट 1951 की धारा 151ए में दी गई निर्धारित समय अवधि में आकस्मिक तौर पर खाली हुई किसी सीट पर उपचुनाव करवा दे। धारा 151ए में दी गई ड्यूटी अनिवार्य प्रकृति की है।

    पीठ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए उन कई फैसलों का भी देखा,जो इसी तरह के मामले में दिए गए थे। इन फैसलों को देखने के बाद कोर्ट ने 'रिमाइंडर टर्म आॅफ दाॅ मेंबर' यानि किसी सदस्य का बचा हुआ कार्यकाल का मतलब बताते हुए कहा कि-

    प्रावधान का क्लाज (ए) पूरी तरह लागू होता है और 'रिमाइंडर टर्म आॅफ दाॅ मेंबर' यानि किसी सदस्य का बचा हुआ कार्यकाल का मतलब है कि इसकी गणनना चुनाव का परिणाम घोषित करने की तारीख से होगी। अगर इस तरह देखा जाए तो हमने पाया है कि जीतने वाले उम्मीदवार का कार्यकाल मुश्किल से पांच माह होगा। ऐसे में सवाल उठता है कि इतनी कम समय अवधि के लिए किसी सीट को भरने के लिए उपचुनाव करवाना कितना सही होगा।

    कोर्ट ने अन्य राज्यों में इसी तरह के मामले में ईसीआई द्वारा दिए गए फैसलों को भी निरीक्षण किया और कहा कि-

    इस मामले में भी बचा हुआ कार्यकाल एक साल से कम समय का है। परंतु हमने पाया कि आंध्र प्रदेश में भी इसी तरह के एक मामले में जो फैसला ईसीआई ने लिया था,वो इस मामले में नहीं लिया। ऐसे में साफ है कि आंध्र प्रदेश में खाली हुई सीट व कटोल में आकस्मिक तौर पर खाली हुई विधानसभा सीट के मामले में ईसीआई ने अलग-अलग मापदंड अपनाए है। ऐसा क्यों किया गया? ईसीआई इस संबंध में कोई जवाब नहीं दे पाया कि अलग-अलग मापदंड क्यों अपनाए गए। इसके लिए ईसीआई न कोई जवाब दे पाया और न ही ऐसा करने के लिए कोई कारण बता पाया। ऐसे में साफ है कि आकस्मिक तौर पर खाली हुई इस सीट को पांच माह से भी कम अवधि के लिए भरने के लिए ईसीआई द्वारा उपचुनाव करवाने का लिया गया फैसला विवेकाधीन है,पक्षपाती है और अकारण है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 व 21 में दिए गए नियमों का उल्लंघन है। जो कि मेनका गांधी बनाम यूनियन आॅफ इंडिया के मामले में माना गया था।

    ऐसे में कटोल में उपचुनाव के लिए शुरू किए चुनाव के कार्यक्रम व अन्य अधिसूचनाओं को रद्द किया जा रहा है।


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