शादी कराने से इंकार करने पर चर्च के खिलाफ रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं-केरल हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

10 Oct 2019 4:11 AM GMT

  • शादी कराने से इंकार करने पर चर्च के खिलाफ रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं-केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने माना है कि एक रिट विशुद्ध रूप से निजी कानून अधिकारों को लागू करवाने के मामले में लागू नहीं होगा। हाईकोर्ट ने कहा कि चर्च द्वारा सूबे के दो सदस्यों के बीच विवाह का आयोजन करवाकर कोई सार्वजनिक कर्तव्य या सार्वजनिक कार्य नहीं किया जा रहा है।

    एक युगल द्वारा दायर याचिका में यह मुद्दा उठाया गया था कि क्या चर्च/पादरी, जिसके याचिकाकर्ता सदस्य हैं, उनकी शादी कराने से इनकार कर सकते हैं।

    चर्च द्वारा इस तरह की रिट याचिका की अनुरक्षणीयता पर आपत्ति जताई गई थी और कहा गया, "जब तक यह प्रदर्शित नहीं किया जाता है कि मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया गया है या यह कि चर्च भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत 'राज्य'की परिभाषा में आता है, चर्च के खिलाफ कोई रिट नहीं की जा सकती है।"

    तथ्यों के आधार पर, यह प्रस्तुत किया गया था कि याचिकाकर्ता का किसी अन्य महिला के साथ संबंध हैं और वह बलात्कार के मामले में आरोपी है, जो याचिकाकर्ताओं का विवाह करवाने के खिलाफ एक बाधा थी। भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम का उल्लेख करते हुए, न्यायमूर्ति वीजी अरुण ने कहा किः

    "इस प्रकार, ऐसे मामलों में भी जहां कोई व्यक्ति, व्यक्तियों की संस्था या संस्थान सार्वजनिक कर्तव्य निभाते हुए पाया जाता है तो भी एक रिट विशुद्ध रूप से निजी कानून के अधिकारों को लागू करने के लिए लागू नहीं हो सकती है। जैसा कि इस मामले में याचिकाकर्ताओं की शादी करवाना एक विषय है। याचिकाकर्ता के वकील ने अपनी दलीलों के समर्थन में एस्टन केंटलो और विल्मकोट साथ में बिलस्ले पारोचियल चर्च काउंसिल बनाम वालॅबैंक और अन्य (2003) यूकेएचएल 37 मामले में हाउस ऑफ लॉर्ड्स द्वारा दिए गए निर्णय का हवाला दिया और कहा कि ऐसे व्यक्ति या निकाय जिनके कार्य सार्वजनिक प्रकृति के हैं, वे रिट के अधिकार क्षेत्र के लिए उत्तरदायी हैं।"

    पीठ ने कहा कि यह निर्णय इस मामले में लागू नहीं होता है, क्योंकि चर्च द्वारा सूबे के दो सदस्यों के बीच विवाह का उत्सव या आयोजन करवाकर कोई सार्वजनिक कर्तव्य या सार्वजनिक कार्य नहीं किया जा रहा है। कोर्ट ने इस रिट याचिका को खारिज कर दिया और कहा गया था कि वह सुनवाई करने योग्य (अनुरक्षणीय) नहीं है।

    याचिकाकर्ताओं की तरफ से अधिवक्ता एस.विनोद भट, लेगिथ टी.कोट्टक्कल उपस्थित हुए, जबकि अधिवक्ता टी.एन.मनोज, के.आर.रिजा, सुमन चक्रवर्ती ने प्रतिवादियों का प्रतिनिधित्व किया।

    निर्णय की कॉपी डाउनलोड करने के लिए यहांं क्लिक करें।



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