CJI ने NLU में कहा, मैं नहीं चाहता कि युवा मस्तिष्क कॉरपोरेट में ही उलझ जाएं
LiveLaw News Network
18 Aug 2019 3:29 PM IST
भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने शनिवार को कहा कि वकीलों की भूमिका और कार्यप्रणाली को देखने और समझने की जरूरत है कि आकर्षण और अवसरों के बावजूद लॉ ग्रेजुएट की स्वाभाविक पसंद कानूनी पेशा क्यों नहीं है। मुख्य न्यायाधीश नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली (NLU-D) के दीक्षांत समारोह में बोल रहे थे।
नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली (NLU-D) ने 17 अगस्त को विश्वविद्यालय सभागार में अपना 7 वां वार्षिक दीक्षांत समारोह आयोजित किया। 83 छात्रों ने बी.ए. LL.B. (ऑनर्स), एलएलएम के 78 और पीएचडी के 6 उम्मीदवारों को समारोह के दौरान डिग्री प्रदान की गई।
नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली का यह आयोजन मुख्य अतिथि माननीय श्री न्यायमूर्ति रंजन गोगोई भारत के मुख्य न्यायाधीश की उपस्थिति में आयोजित किया गया था। इस दौरान समारोह में दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और मुख्य सचिव, मुख्यमंत्री और दिल्ली के उप मुख्यमंत्री सहित अन्य प्रख्यात व्यक्तित्व भी समारोह में उपस्थित थे।
समारोह के दौरान, विश्वविद्यालय द्वारा चार पत्रिकाओं, एक शोध पुस्तिका, और एक पुस्तक सहित छह प्रकाशन जारी किए गए। इसके अलावा, कई छात्रों को बी.ए. LL.B. (ऑनर्स) और एलएलएम की उनकी उपलब्धियों के लिए स्वर्ण पदक और नकद पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने विश्वविद्यालय और उसके छात्रों को उनकी सफलता के लिए बधाई दी और स्नातकों को सलाह दी कि वे अपने दिमाग को कॉरपोरेट दुनिया में बहने न दें। उन्होंने कहा कि 5 साल के एकीकृत मॉडल को पहली बार एनएलएसआईयू, बैंगलोर में 30 साल पहले पेश किया गया था ताकि "वकालत से कानूनी सेवाओं, कानून, कानून सुधारों के संबंध में कौशल विकसित करके कानून के क्षेत्र में जिम्मेदारी से समाज की सेवा की जा सके।"
उन्होंने कहा कि यह आत्मनिरीक्षण करने का समय है कि क्या पंचवर्षीय मॉडल ने अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा किया। मॉडल के इतिहास और विकास पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि यह पांच साल का मॉडल वह परिवर्तनकारी बदलाव नहीं ला सका है जो अपेक्षित था। बार और बेंच के अत्यधिक आकर्षक करियर पर प्रकाश डाला जाना चाहिए। हालांकि युवा वकीलों ने कॉरपोरेट की ओर अपना "मोनो-फ़ोकस" बनाया, लेकिन मैं नहीं चाहता कि युवा मस्तिष्क कॉरपोरेट में ही उलझ जाएं।
उन्होंने माना कि विश्वविद्यालयों के पास धन की कमी है और उन्होंने देश में सामाजिक रूप से प्रासंगिक, समावेशी और समग्र कानूनी पहल के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने एनएलयू-डी को इस दिशा में ले जाने और भारत की कानूनी शिक्षा प्रणाली में एक क्रांतिकारी बदलाव लाने के लिए प्रोत्साहित किया।
अपनी बात पूरी करते हुए उन्होंने कहा "यह कर्तव्य की पुकार है। एक कर्तव्य है जिसके लिए कोई भी आपको मजबूर नहीं करेगा, कोई भी आपको धन्यवाद नहीं देगा, लेकिन आपको ऐसा करना चाहिए, क्योंकि आपके पास इसे करने का अवसर है। "