यूनिवर्सिटी आरटीआई के तहत उत्तर पुस्तिकाएं उपलब्ध कराने के लिए बाध्य, मद्रास हाईकोर्ट का फैसला

LiveLaw News Network

19 Oct 2019 6:28 AM GMT

  • यूनिवर्सिटी आरटीआई के तहत उत्तर पुस्तिकाएं उपलब्ध कराने के लिए बाध्य, मद्रास हाईकोर्ट का फैसला

    मद्रास हाईकोर्ट ने माना है कि मूल्यांकन के बाद उत्तर पुस्तिकाएं सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत 'सूचना' है और विश्वविद्यालय उन्हें छात्रों को उपलब्ध कराने के लिए बाध्य है।

    इस संबंध में अदालत ने कहा,

    ''सूचना मांगने वालों को सार्वजनिक सूचना उपलब्ध करवाने में कोई भी सार्वजनिक प्राधिकरण अनिच्छुक क्यों है? निस्संदेह गोपनीय फाइलों को अधिनियम के प्रावधानों के तहत संरक्षित किया गया है, इसलिए अधिकारियों को सार्वजनिक डोमेन में आने वाली सूचनाओं को उपलब्ध कराने में अनिच्छुक नहीं होना चाहिए, ताकि नागरिकों को पता चल सके कि सार्वजनिक संस्थानों को किस तरीके से प्रशासित किया जाता है।''

    तमिलनाडु की डॉ.अम्बेडकर लॉ यूनिवर्सिटी (याचिकाकर्ता) द्वारा एडवोकेट वी.एम.जी रामकन्नन के माध्यम से दायर याचिका का निपटारा करते हुए जस्टिस एस.एम सुब्रमण्यम ने यह आदेश दिया है। यूनिवर्सिटी ने तमिलनाडु राज्य सूचना आयोग के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें आयोग ने याचिकाकर्ता यूनिवर्सिटी को निर्देश दिया था कि वह प्रतिवादी-छात्रों को उनके द्वारा मांगी गई उत्तर-पुस्तिकाओं की प्रतियां, आरटीआई अधिनियम के तहत उपलब्ध कराए।

    याचिकाकर्ता-विश्वविद्यालय ने दावा किया था कि उसने छात्रों के दावे को खारिज नहीं किया है, बल्कि उन्हें केवल विश्वविद्यालय के नियमों और विनियमों के तहत निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन करने के लिए कहा गया है, जिनके अनुसार,इसके लिए कुछ शुल्क निर्धारित किए गए थे।

    यूनिवर्सिटी के इस दावे को खारिज करते हुए, न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि आरटीआई अधिनियम के तहत मूल्यांकन के बाद उत्तर पुस्तिकाएं 'सूचना'है। (सीबीएसई व अन्य बनाम आदित्य बंदोपाध्याय और अन्य, (2011) 8 एससीसी 497) इस दृष्टि से उन्होंने माना कि-

    ''जब उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन किया जा चुका हो तो उत्तर पुस्तिकाओं को एक सूचना के रूप में माना जाता है तो फिर इनको देने से मना नहीं किया जा सकता है, इसलिए प्रतिवादी को सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के तहत दिए गए आवेदन के अनुसार मूल्यांकन के बाद उत्तर पुस्तिकाओं को प्राप्त करने का अधिकार है।''

    अधिनियम की अधिभावी प्रकृति की पुष्टि करते हुए, अदालत ने कहा,

    ''विश्वविद्यालय द्वारा तैयार विनियम सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के प्रावधानों को ओवरराइड नहीं कर सकते हैं। अगर ऐसे कोई भी दिशा-निर्देश,नियम या विनियम, यदि सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के विपरीत चलते हैं तो सूचना के अधिकार अधिनियम की भावना प्रबल होगी और इन सभी विनियमों और रिट याचिकाकर्ता-विधि विश्वविद्यालय द्वारा अपनाई गई प्रक्रियाओं को एक तरफ रख दिया जाएगा।"

    हालांकि अदालत ने स्पष्ट किया कि एक आवेदक को विश्वविद्यालय विनियमों के तहत बनाई गई प्रक्रियाओं का पालन करने की स्वतंत्रता थी और दिशानिर्देशों के अनुसार आवेदन दायर कर सकता था।

    इन टिप्पणियों के साथ, अदालत ने याचिकाकर्ता-विश्वविद्यालय को निर्देश दिया है कि वह प्रतिवादी-छात्रों द्वारा मांगी गई जानकारी उनको उपलब्ध कराएं। साथ ही यह भी निर्देश दिया है कि आगे भी इस तरह की सभी अर्जियों का जल्दी से जल्दी निपटारा कर दें।

    आरटीआई अधिनियम के महत्व पर जोर देते हुए, अदालत ने अंतिम टिप्पणी की,जो इस प्रकार है-

    ''लोक प्रशासन में जवाबदेही सर्वोपरि है, क्योंकि 'हम, हमारे महान राष्ट्र के लोग' भ्रष्ट और अभ्रष्ट के बीच सेंडविच बने हुए हैं। सार्वजनिक प्रशासन में पारदर्शिता न होने की स्थिति में भ्रष्ट और गैर-भ्रष्ट लोगों की पहचान करना मुश्किल हो सकता है। "

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