वकीलों द्वारा पलटे गए फैसलों का हवाला देना दुर्भाग्यपूर्ण : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

7 Oct 2019 9:25 AM GMT

  • वकीलों द्वारा पलटे गए फैसलों का हवाला देना दुर्भाग्यपूर्ण : सुप्रीम कोर्ट

    यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सुप्रीम कोर्ट के स्तर के वकील भी उन फैसलों का हवाला देते हैं, जिनमें फैसला पलटा जा चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में ये टिप्पणी की है।

    न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज कुमार बनाम यूपी राज्य में ये टिप्पणी तब की जब वकील ने अभियुक्त की ओर से उठाए गए विवाद का समर्थन करने के लिए ऐसे विभिन्न निर्णयों का हवाला दिया कि जब निर्धारित मानकों से मामूली बदलाव होता है तो अदालतों को चाहिए आरोपी को संदेह का लाभ दें।

    दरअसल वकील ने करुनन बनाम खाद्य निरीक्षक के फैसले का हवाला दिया जिसमें पीठ ने यह पाया कि खाद्य निरीक्षक, पालघाट नगर पालिका बनाम कारिंगारपुल्ली कॉ- ऑपरेटिव मिल्क सोसाइटी लिमिटेड मामले में उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच द्वारा इसे खारिज कर दिया गया था।

    इसी प्रकार आगे पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा द्वारा दिए गए 3 निर्णयों का हवाला दिया गया, लेकिन इनमें पाया गया था कि पंजाब बनाम तेजा सिंह में उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने इन फैसलों को खारिज कर दिया था।

    इस संदर्भ में जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा:

    "हम यह इंगित करने के लिए विवश हैं कि वकील द्वारा उद्धृत निर्णयों में से कई को खारिज कर दिया गया है .....सुप्रीम कोर्ट के स्तर के वकील द्वारा इस तरह के निर्णयों का हवाला दिया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है।"

    पूर्व के उदाहरण

    इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों के इस तरह के फैसलों का हवाला देने पर नाराजगी जताई थी। उड़ीसा राज्य बनाम नलिनीकांता मुदुली (2005) के मामले में, यह कहा गया था कि किसी पलटे गए निर्णय का हवाला न देना वकील का कर्तव्य है।

    जस्टिस अरिजीत पसायत ने इस प्रकार कहा था:

    "बार के सदस्य कोर्ट के अधिकारी होते हैं। कोर्ट की सहायता करना और उन्हें गुमराह नहीं करना उनके लिए एक बाध्यकारी कर्तव्य है। एक अदालत के ऐसे फैसले का हवाला देना जिसे उसी उच्च न्यायालय या इस न्यायालय की एक बड़ी बेंच द्वारा पलट दिया गया हो, इस तथ्य का खुलासा किए बिना इनका हवाला नहीं दिया जाना चाहिए। यह गंभीर चिंता का विषय है .... यह सब दिखाता है कि इस मामले को बहुत ही लापरवाही से निपटाया गया...यह निश्चित रूप से वकील का कर्तव्य था ... हाई कोर्ट के इस फैसले को खारिज किए जाने को याचिकाकर्ता द्वारा अदालत के संज्ञान में लाना याचिकाकर्ता का कर्तव्य था। हम केवल पेशेवर आचरण के गिरते मानकों पर अपनी पीड़ा व्यक्त कर सकते हैं। "

    इसके अलावा सुनीता पांडे और अन्य बनाम उत्तराखंड राज्य के मामले में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने एक वकील को यह कहने के लिए फटकार लगाई थी कि वह सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले से अनभिज्ञ था।

    इस प्रकार कहा गया:

    "एक वकील को माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले का ज्ञान होना चाहिए, जो कि भूमि का कानून है, लेकिन वकील का ये जवाब स्वीकार्य नहीं है कि वह माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से अवगत नहीं है। एक वकील माननीय सर्वोच्च न्यायालय के किसी विशेष निर्णय की अनभिज्ञता का बहाना नहीं बना सकता और ऐसे निर्णय का हवाला देने की भी अनुमति नहीं दी जा सकती जो पहले से ही समाप्त हो चुका है। एक वकील अपने कानूनी कौशल के लिए जाना जाता है।"

    अशोक कुमार सिंह बनाम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी इसी तरह की चिंता जताई थी। यह कहा गया था:

    "यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि बार के जिम्मेदार सदस्य पलटे गए निर्णयों का हवाला दे रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप न्यायालय से गलत निर्णय भी प्राप्त हो सकते हैं। यह उम्मीद की जाती है कि भविष्य में बार के सदस्य, फैसलों का हवाला देते हुए कम से कम बरकरार निर्णयों का हवाला देंगे।"

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