ट्रिपल तलाक कानून : चुनौती देने वाली एक और याचिका पर SC ने केंद्र को नोटिस जारी किया, अन्य याचिकाओं के साथ जोड़ा

LiveLaw News Network

13 Sep 2019 9:55 AM GMT

  • ट्रिपल तलाक कानून : चुनौती देने वाली एक और याचिका पर SC ने केंद्र को नोटिस जारी किया, अन्य याचिकाओं के साथ जोड़ा

    सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक कानून की वैधता को चुनौती देने वाली एक और याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है और मामले को अन्य याचिकाओं के साथ जोड़ दिया है। ये याचिका मुस्लिम एडवोकेट एसोसिएशन ने दाखिल की है और इस कानून को असंवैधानिक बताते हुए रद्द करने की गुहार लगाई है। न्यायमूर्ति एन वी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई के दौरान नोटिस जारी करते हुए कहा कि इस पर भी अन्य याचिकाओं के साथ सुनवाई होगी।

    इससे पहले 23 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 की की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था।

    वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद की उन दलीलों के बाद न्यायमूर्ति एन वी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले का परीक्षण करने पर सहमति व्यक्त की थी कि ट्रिपल तलाक को पहले ही अदालत द्वारा असंवैधानिक घोषित कर दिया गया था और इसे अपराध बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है।

    इस दौरान न्यायमूर्ति रमना ने कहा था, " अगर कोर्ट ने शून्य घोषित किया है और यह अभी भी प्रचलित है तो ऐसी प्रथा का अपराधीकरण क्यों नहीं किया जा सकता? "

    दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त, 2017 को शायरा बानो बनाम भारत संघ व अन्य मामले में फैसला सुनाते हुए मुस्लिम पति द्वारा असंवैधानिक रूप से सुनाए गए तात्कालिक और अपूरणीय तलाक के प्रभाव वाले तलाक- ए-बिद्दत 'या इसी तरह के किसी अन्य तलाक को असंवैधानिक घोषित किया था। इसके बाद, ट्रिपल तलाक कानून- मुस्लिम महिलाओं (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019 को केंद्र सरकार ने जुलाई 31, 2019 को पारित किया था, इस तरह के तीन तलाक को आपराधिक बनाने और उस के लिए 3 वर्ष तक की सजा का प्रावधान रखा गया है।

    इसे लेकर केरल में सुन्नी मुस्लिम विद्वानों और मौलवियों के एक धार्मिक संगठन, समस्त केरल जमीयत उलेमा, जमीयत उलेमा-ए-हिंद और राजनेता और इस्लामी विद्वान अमीर रश्दी मदनी ने चुनौती दी है। इनमें संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के संदर्भ में केंद्रीय कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।

    याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया है कि अधिनियम में दंडात्मक कानून पेश किया गया है, जो धार्मिक पहचान के आधार पर व्यक्तियों के वर्ग के लिए विशिष्ट है। यह गंभीर सार्वजनिक कुप्रथाओं का कारण है जो अनियंत्रित होने पर समाज में ध्रुवीकरण और विघटन का कारण बन सकता है।

    याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा है कि अधिनियम के पीछे का उद्देश्य ट्रिपल तलाक का उन्मूलन नहीं है, बल्कि मुस्लिम पतियों को सजा देना है। मुस्लिम पति द्वारा ट्रिपल तलाक कहने पर अधिकतम 3 वर्ष कारावास की सजा होगी। धारा 7 के अनुसार अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती है।

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