दुखद है कि राजधानी की सड़कें जर्जर और गड्ढों वालीं' : नाराज सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को सड़कों के रखरखाव व वेस्ट मैनेजमेंट के आदेश दिए

LiveLaw News Network

7 Nov 2019 12:06 PM GMT

  • दुखद है कि राजधानी की सड़कें जर्जर और गड्ढों वालीं : नाराज सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को सड़कों के रखरखाव व वेस्ट मैनेजमेंट के आदेश दिए

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए कार्यवाही के दौरान दिल्ली में सड़कों के जर्जर हालात पर कड़ा रुख अपनाया और कहा कि शहर में प्रदूषण को धूल ने और बढ़ा दिया है। पीठ ने दिल्ली और NCR के मुख्य सचिवों को निर्देश दिया है कि इस क्षेत्र में उचित कदम उठाए जाएं।

    राजधानी दिल्ली में इस तरह के गंभीर मामलों पर उदासीनता पर नाराज़गी जताते हुए अदालत ने कहा कि अन्य राज्यों में जलने वाली पराली ने दिल्ली में केवल 40-44% प्रदूषण में योगदान दिया है और शेष दिल्ली और एनसीआर में ही उत्पन्न हुआ है।

    इसके बाद पीठ ने दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र के मुख्य सचिवों को सड़कों को सही तरीके से बनाए रखने के लिए एक कार्य योजना तैयार करने और सभी खुले गड्ढों को भरने का निर्देश दिया।

    "आदर्श रूप से कोई गड्ढे नहीं होने चाहिए क्योंकि वे विभिन्न दुर्घटनाओं और आकस्मिक मौतों का कारण होते हैं। वहां खुले हुए चैंबर भी होते हैं, जिन्हें ऐसे ही छोड़ दिया जाता है।जर्जर सड़कों ने भी प्रदूषण और धूल में योगदान दिया है। इस संबंध में कोई ठोस योजना बनाई जाए भले ही कोई कॉलोनी कानूनी है या नहीं। योजना को दिल्ली सरकार द्वारा विभिन्न निगमों से परामर्श के बाद समय सीमा के साथ तैयार कर अदालत में प्रस्तुत किया जाए। "

    यह आदेश जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस दीपक गुप्ता की विशेष पीठ ने गंभीर वायु प्रदूषण के मुद्दे पर तीन घंटे की लंबी सुनवाई के बाद पारित किया। राजधानी में कूड़े और कचरे की खुली डंपिंग से चिंतित पीठ ने टिप्पणी की|

    "जब कूड़े / कचरे को पुणे और इंदौर में बहुत प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया जा सकता है तो हमारे पास दिल्ली में अपशिष्ट प्रबंधन योजना क्यों नहीं हो सकती है, खासकर जब यह राजधानी और भारत का चेहरा हो। यह अधिकारियों की पूरी उदासीनता का प्रतिबिंब है। खर्च किए गए धन के लिए योजना और गैर-जवाबदेही की कमी, जो आज हम जिस स्थिति में हैं, उसके लिए जिम्मेदार है। "

    पूर्वोक्त निर्देशों के साथ सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा धन मुहैया कराने के बावजूद पराली जलाने पर अंकुश लगाने में विफल रहने के लिए उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब की सरकारों की आलोचना की। यह नोट किया गया कि ज्यादातर किसान जो जला रहे हैं, वो छोटे और सीमांत किसानों की श्रेणी के हैं, जो फसल के अवशेषों को काटने के लिए किराये की मशीनें नहीं ले सकते।

    इस प्रकार पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पराली जलने पर उच्च स्तरीय टास्क फोर्स की उप-समिति की रिपोर्ट के आधार पर, अदालत ने संबंधित राज्य सरकारों को सात दिनों के भीतर गैर-बासमती चावल के फसल अवशेषों को संभालने के लिए छोटे व सीमांत किसानों को

    100 रुपये प्रति क्विंटल की वित्तीय सहायता देने का निर्देश दिया ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि वो अपने खेतों को साफ करने के लिए पराली न जलाएं।

    इस दलील का खंडन करते हुए कि सरकार इन छोटे और सीमांत किसानों को धन की कमी के कारण वित्तीय सहायता प्रदान करने में सक्षम नहीं होगी, अदालत ने कहा कि राज्यों को "स्व-निर्मित दिवालियापन" के कारण किसानों के हितों की अनदेखी करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

    नगर पालिका परिषद, रतलाम बनाम वर्धीचंद और अन्य,AIR 1980 SCC 1622 में निर्णय पर भरोसा करते हुए अदालत ने कहा,

    "यह केंद्र और साथ ही राज्य सरकार का बाध्यकारी कर्तव्य है कि किसानों के इन वर्गों के हित को सुनिश्चित किया जाए कि उनके पास आधुनिक मशीनों द्वारा खेती और कटाई की सुविधा हो। यह कुछ चुने हुए लोगों का विशेषाधिकार नहीं होना चाहिए जिनके पास इन विलासिता को वहन करने के लिए पैसा, साधन और शक्ति है।

    यह पूरी तरह से आवश्यक है कि गरीब किसानों को आधुनिक सुविधाएं प्रदान की जाएं जो कि पराली जलाने की ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए आवश्यक हैं और राज्य सरकारों के स्व-निर्मित दिवालियापन या धन की कमी की बात अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं करने के लिए एक आड़ नहीं हो सकती।"

    दरअसल पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने के मामले को इस उम्मीद के साथ निपटा दिया था कि केंद्र पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण की सिफारिशों के साथ पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पराली जलाने की रोकथाम पर उच्च स्तरीय टास्क फोर्स की रिपोर्ट का प्रचार करेगी कि लोगों को पराली जलाने पर रोकथाम के लिए की जा रही कार्रवाई के बारे में जागरूक किया जाए। फिर भी, इस वर्ष भी पराली जलना शुरू हुई जिसके फलस्वरूप राजधानी चोक हो गई।

    1 नवंबर को ECPA द्वारा राजधानी में सार्वजनिक-स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किए जाने के बाद, ECPA की विशेष प्रदूषण नियंत्रण रिपोर्ट पर विचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने खुद संज्ञान लिया जिसमें दिल्ली व NCR राज्यों को कचरे को जलाने और उद्योगों से विषाक्त उत्सर्जन और निर्माण स्थलों से धूल को रोकने के लिए कदम उठाने के निर्देश मांगे गए थे। ECPA ने 14 प्रदूषण हॉटस्पॉट, ओखला फेस 2, द्वारका, अशोक विहार, बवाना, नरेला, मुंडका, पंजाबी बाग, वजीरपुर, रोहिणी, विवेक विहार, आनंद विहार (मंडोली सहित), आर के पुरम, जहांगीर पुरी और मायापुरी की पहचान की थी। इस संबंध में अदालत ने राज्यों के संबंधित मुख्य सचिवों को उन हॉट स्पॉट की देखभाल करने और अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

    

    Tags
    Next Story