सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्ति की भारतीय नागरिकता पर फैसला होने तक निर्वासित नहीं करने की मांग वाली याचिका पर यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया

Brij Nandan

26 Sep 2022 2:14 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर नोटिस (Notice) जारी किया है जिसमें यह निर्देश देने की मांग की गई है कि उसे तब तक पाकिस्तान नहीं भेजा जाना चाहिए जब तक कि उसके भारतीय नागरिक होने का दावा नागरिकता अधिनियम (Citizenship Act) की धारा 9 (2) के अनुसार तय नहीं हो जाता।

    जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जे.बी. परदीवाला की पीठ ने भी मामले में यथास्थिति जारी रखी। याचिका पर नोटिस जिला पुलिस अधीक्षक (गोधरा), गुजरात राज्य और गृह मंत्रालय, भारत सरकार को जारी किया गया है।

    याचिका के अनुसार, याचिकाकर्ता का जन्म 1962 में गुजरात के गोधरा में हुआ था और उसने भारत में अपनी शिक्षा पूरी की थी। 1976 में याचिकाकर्ता पाकिस्तान चला गया लेकिन 1983 में वह भारत लौट आया और 2 मार्च 1984 को गोधरा में एक भारतीय महिला से शादी कर ली और विवाह से उसके तीन बच्चे । याचिकाकर्ता फिर से चला गया और आखिरकार 1991 में आवासीय परमिट सहित सभी आवश्यक परमिट प्राप्त करने के बाद भारत लौट आया और अपने परिवार के साथ भारत में रहना जारी रखा।

    निर्वासित होने के डर से, याचिकाकर्ता ने भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 5 (1) (सी) के तहत उसे भारत का नागरिक घोषित करने की प्रार्थना करते हुए सिविल जज की अदालत के समक्ष एक नियमित दीवानी मुकदमा दायर किया, क्योंकि उसकी शादी एक भारतीय से हुई थी।

    उसने यह भी प्रार्थना की कि जब तक भारत सरकार द्वारा अधिनियम की धारा 9 (2) के तहत उनके आवेदन पर फैसला नहीं किया जाता है, तब तक अधिकारियों को उन्हें निर्वासित करने से प्रतिबंधित किया जाए।

    1999 में, सिविल जज ने माना कि याचिकाकर्ता की नागरिकता तय करने का अधिकार न्यायालय के पास नहीं है। हालांकि, सिविल जज ने आंशिक रूप से अपने डिक्री को यह निर्देश देने की अनुमति दी कि नागरिकता अधिनियम के तहत उनके आवेदन पर फैसला होने तक उसे वापस नहीं भेजा जाना चाहिए।

    4 साल की अवधि के बाद, भारत सरकार ने प्रधान जिला न्यायाधीश के समक्ष सिविल जज के आदेश के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 96 के तहत विलंबित अपील को प्राथमिकता दी। जिला न्यायाधीश ने 12.07.2022 को सिविल जज द्वारा पारित डिक्री को रद्द कर दिया।

    याचिकाकर्ता ने जिला न्यायाधीश के आदेश से व्यथित होकर गुजरात उच्च न्यायालय का रुख किया। उच्च न्यायालय ने 02.08.2022 को उनकी अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि कानून का कोई बड़ा सवाल नहीं उठता।

    सीनियर एडवोकेट आईएच सईद के माध्यम से पेश हुए याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उच्च न्यायालय ने इस तथ्य की अवहेलना की कि याचिकाकर्ता को निर्वासन के लिए असुरक्षित बनाया गया है और यदि उसे तब तक संरक्षित नहीं किया जाता है जब तक कि उसके आवेदन पर फैसला नहीं हो जाता, यह कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का उल्लंघन होगा।

    याचिका एडवोकेट तरुना सिंह गोहिल के माध्यम से दायर की गई थी।

    केस: अकील वलीभाई पिपलोदवाला (लोखंडवाला) बनाम जिला पुलिस अधीक्षक, पंचमहल, गोधरा एंड अन्य - एसएलपी (सी) संख्या 16069/2022


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