ब्रेकिंग- सुप्रीम कोर्ट ने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली याचिका पर केंद्र, अटॉर्नी जनरल को नोटिस जारी किया
Brij Nandan
25 Nov 2022 1:35 PM IST
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने स्पेशल मैरिज एक्ट,1954 के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली दो याचिकाओं पर केंद्र और अटॉर्नी जनरल को नोटिस जारी किया।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ ने केंद्र सरकार के अलावा भारत के अटॉर्नी जनरल को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने कहा कि यह मुद्दा नवतेज सिंह जौहर और पुट्टास्वामी के फैसलों की अगली कड़ी है। यह एक जीवित मुद्दा है, संपत्ति का मुद्दा नहीं है। इसका प्रभाव स्वास्थ्य, उत्तराधिकार पर है। हम यहां केवल विशेष विवाह अधिनियम के बारे में बात कर रहे हैं।"
गौरतलब है कि विशेष विवाह अधिनियम, विदेशी विवाह अधिनियम और हिंदू विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय और केरल उच्च न्यायालय के समक्ष 9 याचिकाएं लंबित हैं।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट नीरज किशन कौल ने पीठ को केरल उच्च न्यायालय के समक्ष केंद्र के बयान के बारे में बताया कि वह सभी मामलों को उच्चतम न्यायालय में ट्रांसफर करने के लिए कदम उठा रहा है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट मेनका गुरुस्वामी और एडवोकेट सौरभ कृपाल भी पेश हुए।
पहली जनहित याचिका सुप्रियो चक्रवर्ती और अभय डांग ने दायर की है। वे लगभग 10 वर्षों से एक साथ रह रहे हैं। महामारी ने दोनों को नजदीक ला दिया। दूसरी लहर के दौरान वे दोनों COVID पॉजिटिव हुए। जब वे ठीक हुए, तो उन्होंने अपने सभी प्रियजनों के साथ अपने रिश्ते का जश्न मनाने के लिए अपनी 9वीं सालगिरह पर शादी-सह-प्रतिबद्धता समारोह आयोजित करने का फैसला किया। उनका दिसंबर 2021 में एक प्रतिबद्धता समारोह था। जहां उनके रिश्ते को उनके माता-पिता, परिवार और दोस्तों ने आशीर्वाद दिया। अब, वे चाहते हैं कि उनकी शादी को विशेष विवाह अधिनियम के तहत मान्यता दी जाए।
दूसरी जनहित याचिका पार्थ फिरोज मेहरोत्रा और उदय राज आनंद ने दायर की है जो पिछले 17 सालों से एक-दूसरे के साथ रिलेशनशिप में हैं।
उनका दावा है कि वे वर्तमान में दो बच्चों की परवरिश एक साथ कर रहे हैं, लेकिन वे कानूनी रूप से अपनी शादी को संपन्न नहीं कर सकते हैं, इसके परिणामस्वरूप ऐसी स्थिति पैदा हो गई है, जहां दोनों याचिकाकर्ता अपने दोनों बच्चों के साथ माता-पिता और बच्चे का कानूनी संबंध नहीं रख सकते हैं।
याचिका में कहा गया है कि अधिनियम की धारा 4 किसी भी दो व्यक्तियों को विवाह करने की अनुमति देती है, लेकिन बाद की शर्तें केवल पुरुषों और महिलाओं के लिए इसके आवेदन को प्रतिबंधित करती हैं।
वे प्रार्थना करते हैं कि विशेष विवाह अधिनियम, जो विवाह की संस्था के लिए एक धर्मनिरपेक्ष कानून है, को किसी भी जेंडर या सैक्सुअल आधारित प्रतिबंधों को दूर कर जेंडर न्यूट्रल बनाया जाए।
NALSA बनाम भारत संघ पर भरोसा किया गया है, जहां सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा था कि हमारा संविधान नॉन-बाइनरी व्यक्तियों की रक्षा करता है और अनुच्छेद 14, 15, 16, 19 और 21 के तहत परिकल्पित सुरक्षा "पुरुष" "या" महिला के बाइलॉजिकल सेक्स तक सीमित नहीं हो सकती है।