EWS कोटा : सुप्रीम कोर्ट ने आयु में छूट देने की मांग वाली याचिका खारिज की
Sharafat Khan
14 Oct 2019 4:01 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया जिसमें यह मांग की गई थी कि सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को 10 प्रतिशत आरक्षण के साथ-साथ आयु में भी छूट प्रदान की जानी चाहिए।
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति एन. वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि ये मामला जनहित का नहीं है बल्कि ये सर्विस का मामला है। लिहाजा इस पर जनहित याचिका के तहत सुनवाई नहीं की जा सकती है।
याचिकाकर्ता की दलील
दरअसल के. के. रमेश नाम के याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में यह कहा था कि अगर सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को आयु में छूट प्रदान नहीं की जाएगी तो इस तरह कानून के जरिए उन्हें आरक्षण देने का सारा उद्देश्य ही परास्त हो जाएगा। इसलिए अदालत केंद्र सरकार को यह निर्देश दे कि वो ऐसे लोगों को आयु में भी छूट प्रदान करे।
गौरतलब है कि बीते 1 अगस्त को न्यायमूर्ति एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली 3 जजों की पीठ ने 103वें संवैधानिक संशोधन द्वारा पेश EWS कोटे की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई की थी। सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना है कि क्या इस मामले को संविधान पीठ के पास भेजा जाए या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
103वें संविधान संशोधन अधिनियम को उचित ठहराने हेतु केंद्र द्वारा दिया गया तर्क
वहीं केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में समाज के आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने के लिए हाल के कानून को सही ठहराया है। केंद्र ने कहा है कि उच्च शिक्षा और अवसरों से बाहर किए गए लोगों को उनकी आर्थिक स्थिति के आधार पर रोजगार और रोजगार में सामाजिक समानता को बढ़ावा देने के लिए यह संवैधानिक संशोधन लाया गया है।
कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में केंद्र ने जोर दिया है कि संविधान (103वें) संशोधन अधिनियम में आर्थिक आरक्षण प्रदान करने के लिए संविधान में अनुच्छेद 15 (6) और 16 (6) पेश किया गया है जो संविधान की संरचना को प्रभावित नहीं करता है।
हलफनामे में यह कहा गया है कि सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन के निर्धारण के लिए आर्थिक मानदंड को एक प्रासंगिक कारक माना गया है। यह भी कहा गया है कि सामाजिक-आर्थिक पिछड़े वर्गों की पहचान के लिए उपयोग किए जाने वाले संकेतकों का उपयोग आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान के लिए नहीं किया जा सकता क्योंकि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग समरूप नहीं है। दूसरी बात, उनके पास जाति की तरह सामान्य मापदंड नहीं हैं जिसके आधार पर आर्थिक पिछड़ापन विकसित हो सकता है।