सुप्रीम कोर्ट ने अग्निपथ योजना के बाद रद्द की गई सेना और वायु सेना की पिछली भर्ती प्रक्रियाओं को पूरा करने की मांग वाली याचिका खारिज की
Sharafat
10 April 2023 1:20 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उन याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसमें भारतीय सेना और वायु सेना के लिए शुरू की गई भर्ती प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी, जिन्हें जून 2022 में 'अग्निपथ' योजना की घोषणा के बाद बंद कर दिया गया था। याचिकाएं दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखने के खिलाफ दायर की गई थीं। अग्निपथ योजना के अनुसार 17-साढ़े 23 वर्ष की आयु के लोगों को चार साल के कार्यकाल के लिए सशस्त्र बलों में शामिल होने के लिए आवेदन करने के लिए पात्र बनाया गया था।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की पीठ ने यह कहते हुए याचिकाओं को खारिज कर दिया कि उम्मीदवारों के पास भर्ती प्रक्रिया को पूरा करने का कोई निहित अधिकार नहीं है।
पीठ ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि 'वचनबद्धता विबंधन (प्रॉमिसरी एस्टॉपेल ) का सिद्धांत' लागू होगा और कहा कि पिछली भर्ती प्रक्रियाओं के साथ आगे नहीं बढ़ने के निर्णय को मनमाना नहीं कहा जा सकता। यह देखा गया कि जब बड़े सार्वजनिक हित शामिल हों तो प्रॉमिसरी एस्टॉपेल लागू नहीं होगा।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, "हमारे लिए हस्तक्षेप करने के लिए कुछ भी नहीं है। यह सार्वजनिक रोजगार का मामला है, अनुबंध का नहीं।"
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एडवोकेट अरुणव मुखर्जी ने शुरू में स्पष्ट किया कि वह इस योजना को चुनौती नहीं दे रहे हैं और यह मामला सेना और वायु सेना के लिए पूर्व में अधिसूचित भर्ती प्रक्रियाओं को पूरा करने तक ही सीमित है। उन्होंने प्रस्तुत किया कि केंद्र सरकार ने COVID का हवाला देते हुए कई बार परीक्षा स्थगित की और जून में अचानक अग्निपथ योजना की घोषणा की गई।
वकील ने कहा कि वायु सेना के संबंध में परीक्षाएं आयोजित की गईं लेकिन परिणाम प्रकाशित नहीं किए गए। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि परीक्षाएं कभी रद्द नहीं की गईं और केवल स्थगित की गईं।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान मौखिक रूप से देखा, "तो जो प्रक्रिया पहले शुरू हुई थी- फिजिकल और मेडिकल टेस्ट हुआ, लेकिन एंट्रेंस टेस्ट नहीं हुआ और जब नई योजना आई तो उन्होंने इसे आगे नहीं बढ़ाने का फैसला किया .... लेकिन कोई निहित अधिकार नहीं है।"
वकील ने आग्रह किया कि याचिकाकर्ताओं को शामिल किए जाने पर भी अग्निपथ योजना प्रभावित नहीं होगी।
केंद्र सरकार की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने पीठ को बताया कि दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले में इन मुद्दों पर विस्तार से विचार किया गया है। "कोविड समय के दौरान, सभी प्रकार के मुद्दे थे- ये असाधारण समय थे जिनसे संस्थान निपट रहे थे। यह चुनने की प्रक्रिया नहीं है। हमें रक्षा और राष्ट्रीय हित के हित में रिक्तियों को भरना था।"
एएसजी ने जोर देकर कहा, "अत्यावश्यकता के कारण हमें इस तरह से भर्तियों को संशोधित करने की आवश्यकता थी।"
एक अन्य मामले में पेश हुए एडवोकेट प्रशांत भूषण ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ताओं को कई परीक्षण प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद वायु सेना के लिए अस्थायी सूची में रखा गया था।
भूषण ने पेश किया कि फिर एक साल तक वे कहते रहे कि नियुक्ति पत्र जारी किए जाएंगे, लेकिन टालते रहे .... हम पूरी प्रक्रिया से गुजरे और फिर भी भर्ती नहीं हुई। इन लोगों की दुर्दशा की कल्पना कीजिए। तीन साल से वे इंतजार कर रहे हैं और इंतजार कर रहे हैं। "
उन्होंने तर्क दिया कि इन परिस्थितियों में 'वचनबद्धता विबंध' का सिद्धांत आकर्षित होगा।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, "सचमुच। मिस्टर भूषण, यहां कोई निहित अधिकार नहीं है। यह परिस्थितियों में मनमाना नहीं है।" हालांकि, भूषण के अनुरोध पर पीठ ने 17 अप्रैल को उनकी याचिका पर अलग से विचार करने पर सहमति व्यक्त की, लेकिन अन्य याचिका (जिसमें मिस्टर मुखर्जी पेश हुए) को खारिज कर दिया।
पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती देने वाली एडवोकेट एमएल शर्मा की याचिका को भी खारिज कर दिया, जिसमें अग्निपथ योजना को बरकरार रखा गया था। शर्मा का मुख्य तर्क यह था कि योजना को एक कार्यकारी आदेश के माध्यम से पेश नहीं किया जा सकता और इसके लिए एक संसदीय कानून की आवश्यकता है।
केस टाइटल : गोपाल कृष्ण और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य एसएलपी (सी) नंबर 5203/2023, मनोहर लाल शर्मा बनाम भारत संघ और अन्य एसएलपी (सी) नंबर 4710/2023