सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल की बच्ची से बलात्कार और फिर उसकी व भाई की हत्या के दोषी की फांसी बरकरार रखी

LiveLaw News Network

7 Nov 2019 6:51 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल की बच्ची से बलात्कार और फिर उसकी व भाई की हत्या के दोषी की फांसी बरकरार रखी

    सुप्रीम कोर्ट ने कोयम्बटूर में दस साल की लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार और फिर लड़की और उसके भाई की हत्या करने के दोषी मनोहरन की फांसी बरकरार रखी है।हालांकि पुनर्विचार याचिका पर ये फैसला एक बार फिर 2:1 के बहुमत से आया है।

    जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन और जस्टिस सूर्यकांत ने फांसी की सजा को बरकरार रखा जबकि अल्पमत के फैसले में जस्टिस संजीव खन्ना ने उम्रकैद की सजा सुनाई।

    इससे पहले 17 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने दोषी की फांसी पर रोक लगा दी थी। उसे 20 सितंबर को ही फांसी दी जाने वाली थी। इस मामले में दोषी ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी

    गौरतलब है कि 1 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट (2: 1 के बहुमत से) ने दस साल की लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार में शामिल एक व्यक्ति को मौत की सजा को बरकरार रखा था। दोषी ने बच्ची और उसके भाई की हत्या भी कर दी थी।

    यह था मामला

    दरअसल पुजारी मोहनकृष्णन और मनोहरन पर नाबालिग बच्चों की मौत के जघन्य अपराध का आरोप लगाया गया था। मोहनकृष्णन एक पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था। मनोहरन को ट्रायल कोर्ट ने मौत की सजा दी थी, जिसकी पुष्टि बाद में मद्रास हाईकोर्ट ने की। मनोहरन द्वारा हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर तीन जजों की बेंच ने सुनवाई की जिसमें जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस संजीव खन्ना ही शामिल थे।

    मौत की सजा की पुष्टि करते हुए जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन और जस्टिस सूर्यकांत :

    "हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट ने सजा कम करने की परिस्थितियों के साथ आक्रामक परिस्थितियों को सही ढंग से लागू और संतुलित किया है ताकि पता लगाया जा सके कि अपराध एक सोची समझी हत्या का था और एक नाबालिग लड़की का बलात्कार और दो बच्चों की हत्या सबसे जघन्य तरीके से की गई।

    अपीलकर्ता द्वारा कोई भी पछतावा नहीं दिखाया गया है और अपराध की प्रकृति को देखते हुए उच्च न्यायालय के निर्णय के पैरा 84 में कहा गया है, यह संभावना नहीं है कि अपीलकर्ता, यदि मुक्त हो तो इस तरह के अपराध को फिर से करने में सक्षम नहीं होगा। इस मामले के तथ्यों पर अपीलार्थी ने जो तथ्यहीन बयान दिया, उसका मतलब यह नहीं होगा कि उसने ऐसा जघन्य अपराध करने के लिए कोई पछतावा दिखाया है। वह इस स्वीकारोक्ति बयान पर खड़ा नहीं रहा बल्कि केवल बयान के उन हिस्सों को दोहराता रहा जो झूठे करार दिए गए कि उसे छोटी लड़की के बलात्कार और उसके और उसके छोटे भाई दोनों की हत्या के लिए फंसाया गया था।"

    फैसले में अदालत ने 2018 में द प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट, 2012 संशोधन को भी संदर्भित किया। यह देखा गया कि मृत्युदंड को भी उक्त संशोधन के दायरे में लाया गया है।

    कोर्ट ने कहा:

    "वर्तमान मामले के तथ्यों पर कोई संदेह नहीं है कि 10 साल की लड़की का एक से अधिक लोगों द्वारा यौन उत्पीड़न किया गया था। 10 साल की लड़की (जो 12 वर्ष से कम उम्र की थी) POCSO अधिनियम की 5 (एम) धारा के भीतर आ जाएगी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज का फैसला विधायिका की सोच के साथ है कि इस तरह के अपराध बढ़ रहे हैं और इसे गंभीर रूप से निपटा जाना चाहिए। "

    एक परिवार से जुड़े छह लोगों की हत्या का दोषी, जिनमें से दो नाबालिग थे, खुशविंदर सिंह पर लगाए गए मृत्युदंड को बरकरार रखने के हाल ही के फैसले को भी न्यायालय द्वारा भी संदर्भित किया गया था। वर्तमान मामला खुशविंदर के मामले की तुलना में और भी अधिक चौंकाने वाला है, क्योंकि 10 साल की एक छोटी बच्ची के साथ पहले सामूहिक दुष्कर्म किया गया था, जिसके बाद उसके और उसके 7 साल के भाई की हत्या की गई। अदालत ने कहा कि उन्हें नहर में फेंक दिया गया, जिससे उनकी मौत हो गई।

    जस्टिस संजीव खन्ना :

    हालांकि, जस्टिस संजीव खन्ना मौत की सजा की पुष्टि से असंतुष्ट रहे थे और कहा कि यह मामला 'दुर्लभतम से भी दुर्लभ' की श्रेणी में नहीं आता है, बल्कि विशेष मामलों की श्रेणी में आता है, जहां अपीलकर्ता को जीवन के लिए अर्थात अपनी प्राकृतिक मृत्यु तक बिना किसी छूट / रहम के सजा भुगतने का निर्देश दिया जाना चाहिए।

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