सुप्रीम कोर्ट ने लाइब्रेरी बुक को लेकर एफआईआर में इंदौर लॉ कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल की गिरफ्तारी पर रोक लगाई

Sharafat

16 Dec 2022 2:40 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने लाइब्रेरी बुक को लेकर एफआईआर में इंदौर लॉ कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल की गिरफ्तारी पर रोक लगाई

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इंदौर के गवर्नमेंट न्यू लॉ कॉलेज के इस्तीफा देने वाले प्रिंसिपल डॉ इनामुर रहमान की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। कॉलेज की लाइब्रेरी में कथित रूप से "हिंदूफोबिक" पुस्तक को लेकर प्रिंसिपल के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज हुई थी।

    मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की।

    यह शिकायत एलएलएम तृतीय वर्ष के छात्र ने दर्ज कराई थी। याचिकाकर्ता एडवोकेट अल्जो के जोसेफ और अभिनव पी धनोदकर के वकीलों ने कहा कि विचाराधीन पुस्तक 2014 में प्रकाशित हुई थी और कॉलेज द्वारा 2014 में भी खरीदी गई थी। याचिकाकर्ता के अनुसार, वह उस समय कॉलेज में प्रोफेसर थे न कि कॉलेज के प्रिंसिपल।

    सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने मामले की सुनवाई करते हुए टिप्पणी की-

    "यह गिरफ्तारी का मामला नहीं है। आपने एक प्रचुर मामले से अधिक का मामला बनाया है।"

    सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी करते हुए याचिकाकर्ता को अंतरिम राहत दी।

    आदेश में कहा गया कि

    "अगले आदेश तक एफआईआर के संबंध में याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी पर रोक रहेगी।"

    याचिका के अनुसार, डॉ. फरहत खान (आरोपी 1) द्वारा लिखित और अमर लॉ पब्लिकेशंस (आरोपी 4) द्वारा प्रकाशित "सामूहिक हिंसा और आपराधिक न्याय प्रणाली" नामक पुस्तक को लेकर एलएलएम के एक छात्र द्वारा एफआईआर दर्ज करवाई गई थी।

    याचिकाकर्ता को अभियुक्त 2 के रूप में रखा गया है। शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि पुस्तक झूठे और निराधार तथ्यों पर आधारित है, प्रकृति में राष्ट्र-विरोधी है और भारत की सार्वजनिक शांति, अखंडता और धार्मिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाने का इरादा रखती है।

    याचिका में कहा गया है कि मामला राजनीतिक कारणों से दर्ज किया गया है और याचिकाकर्ता, जो पुस्तक के प्रकाशन या विपणन में शामिल नहीं है, उन्हें मामले में अनावश्यक रूप से घसीटा गया। इसमें आगे कहा गया है कि पुस्तक याचिकाकर्ता के कार्यकाल के दौरान नहीं, बल्कि 2014 में खरीदी गई थी, जब वह केवल एक प्रोफेसर थे और कॉलेज के लाइब्रेरी के लिए किताबें खरीदने की प्रक्रिया में शामिल नहीं थे।

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 15 दिसंबर को अंतरिम अग्रिम जमानत की याचिका खारिज करने के बाद याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    एबीवीपी के विरोध के बाद याचिकाकर्ता ने प्रिंसिपल के पद से इस्तीफा दे दिया था।

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