"इसे स्नेह व्यक्त करने का तरीका नहीं कहा जा सकता" : सुप्रीम कोर्ट ने पॉक्सो मामले में केरल हाइकोर्ट का जमानत आदेश रद्द किया

Sharafat

23 Oct 2022 12:14 PM IST

  • इसे स्नेह व्यक्त करने का तरीका नहीं कहा जा सकता : सुप्रीम कोर्ट ने पॉक्सो मामले में केरल हाइकोर्ट का जमानत आदेश रद्द किया

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह केरल हाईकोर्ट द्वारा अपनी नाबालिग भतीजी के यौन उत्पीड़न के आरोपी व्यक्ति को जमानत देने के आदेश में की गई कुछ टिप्पणियों से वास्तव में खुश नहीं है।

    सुप्रीम कोर्ट की पीठ केरल हाईकोर्ट द्वारा की गई इन टिप्पणियों का उल्लेख कर रही थी।

    हाईकोर्ट ने अपने आदेशों कहा था,

    "हालांकि इस तरह गले लगाना और चुंबन करने में एक चाचा द्वारा स्नेह की अभिव्यक्ति होने की संभावना है। कोई भी इस तरह की संभावना को नजरअंदाज नहीं कर सकता। प्यार का रंग यौन रंग से रंगा जा रहा है। हालांकि, ये सभी जांच के लिए मामले हैं।"

    सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने इस पर कहा,

    "हमारी सुविचारित राय में आक्षेपित आदेश के पैरा 9 में की गई टिप्पणियां पूरी तरह से अनुचित हैं और इनमें एफआईआर में निहित विशिष्ट आरोपों की अनदेखी की गई है, जो सीआरपीसी की धारा 164 के तहत पीड़िता-बालिका के बयान से समर्थित हैं। "

    इस मामले में आरोपी पर अपनी 12 साल की भतीजी का यौन शोषण करने का आरोप है, जिसमें कहा गया कि उसने पीड़िता को अपनी गोद में बैठने के लिए कहा और उसके बाद उसने उसे गले लगाया और उसके गालों पर चूमा और उसके होठों पर उसे चूमने की कोशिश की। उसने पीड़िता के कपड़े उतारने का प्रयास किया और भद्दे कमेंट किए।

    इस मामले में एफआईआर दर्ज होने के बाद आरोपी ने अग्रिम जमानत के लिए विशेष अदालत का दरवाजा खटखटाया जिसे खारिज कर दिया गया। इसके बाद, उसने अग्रिम जमानत के लिए हाईकोर्ट का रुख किया, जहां उसे सशर्त अग्रिम जमानत दी गई। इससे क्षुब्ध होकर लड़की की मां ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    अपील की अनुमति देने वाले आदेश में पीठ ने हाईकोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों को खारिज कर दिया। अदालत ने यह भी कहा कि भले ही हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता नहीं है या इसकी आवश्यकता नहीं हो, यह अपने आप में अग्रिम जमानत देने का आधार नहीं हो सकता है।

    पीठ ने यह देखा

    " ऐसे गंभीर आरोपों वाले मामले में हाईकोर्ट को गिरफ्तारी के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने में अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि जांच अधिकारी जांच को उसके तार्किक निष्कर्ष तक ले जाने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। जिस आरोपी को जांच अधिकारी के सामने पेश होना, जिसे हिरासत में पूछताछ के अधीन करने से रोक दिया गया है, इससे आरोपों में प्रथम दृष्टया सार का पता लगाने के लिए शायद ही उपयोगी होगा, जो प्रकृति में अत्यधिक गंभीर हैं।

    तथ्य यह है कि पीड़िता-लड़की को इतने उच्च स्तर तक आघात पहुं चाया गया है कि उसकी शैक्षणिक गतिविधियों पर गहरा प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

    POCSO अधिनियम की धारा 29 की विधाई मंशा न्यायालय को अग्रिम जमानत देने का अधिकार क्षेत्र के अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करने से रोकने के लिए पर्याप्त है।"

    पीठ ने यह भी नोट किया कि पहली अग्रिम जमानत याचिका को खारिज करते हुए, विशेष न्यायाधीश ने जॉय बनाम केरल राज्य, (2019) 1 केएलटी 935 के मामले में केरल हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा किया था, जिसमें यह देखा गया था कि अदालतों को POCSO अधिनियम की धारा 29 के तहत एक व्यक्ति द्वारा दायर जमानत के लिए आवेदन पर विचार करना चाहिए, जो अधिनियम के तहत अपराध का आरोपी है।

    पीठ ने माना कि हाईकोर्ट बाध्यकारी फैसले की अनदेखी नहीं कर सकता। अदालत ने कहा कि यह कहना अलग बात है कि यदि वह दी गई राय से असहमत हैं तो तदनुसार इसे एक बड़ी पीठ के पास भेज सकते हैं।

    पीठ ने अपील की अनुमति देते हुए और हाईकोर्ट द्वारा पारित अग्रिम जमानत आदेश को रद्द करते हुए कहा,

    "हम वर्तमान मामले में पॉक्सो अधिनियम की धारा 29 के मुद्दे में नहीं जा रहे हैं। पोक्सो अधिनियम की धारा 29 की सहायता के बिना भी, हम आश्वस्त हैं कि हाईकोर्ट ने अपने विवेक का प्रयोग करने के पक्ष में प्रतिवादी नंबर 1 (मूल आरोपी) को अग्रिम जमानत देते हुए एक गंभीर त्रुटि की है।"

    मामले का विवरण

    एक्स बनाम अरुण कुमार सीके | 2022 लाइव लॉ (एससी) 870 |

    सीआरए 1834/2022 | 21 अक्टूबर 2022 |

    जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला

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