ब्रेकिंग- केवल इसलिए कि महिला अविवाहित है, गर्भपात से इनकार नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट ने अविवाहित महिला को गर्भपात की अनुमति दी

Brij Nandan

21 July 2022 8:09 AM GMT

  • ब्रेकिंग- केवल इसलिए कि महिला अविवाहित है, गर्भपात से इनकार नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट ने अविवाहित महिला को गर्भपात की अनुमति दी

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को एक अविवाहित महिला (Unmarried Woman) को लिव-इन रिलेशनशिप (Live-in-relationship) में रहते हुए हुई 24 सप्ताह की गर्भ को गर्भपात करने की अनुमति देने के लिए एक अंतरिम आदेश पारित किया।

    कोर्ट ने आदेश दिया कि एम्स दिल्ली द्वारा गठित एक मेडिकल बोर्ड के अधीन यह निष्कर्ष निकाला जाए कि क्या महिला के जीवन को जोखिम में डाले बिना गर्भपात किया जा सकता है।

    जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स के प्रावधानों पर 'अनावश्यक रूप से प्रतिबंधात्मक' रुख अपनाया।

    यह देखते हुए कि 2021 के संशोधन के बाद, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट धारा 3 के स्पष्टीकरण में "पति" के बजाय "पार्टनर" शब्द का उपयोग करता है, कोर्ट ने कहा कि यह अधिनियम के तहत "अविवाहित महिला" को कवर करने के विधायी इरादे को दर्शाता है।

    अदालत ने आदेश में कहा,

    "याचिकाकर्ता को केवल इस आधार पर लाभ से वंचित नहीं किया जाना चाहिए कि वह एक अविवाहित महिला है।"

    पीठ ने कहा कि संसद का इरादा वैवाहिक संबंधों से उत्पन्न स्थितियों को सीमित करने का नहीं है।

    बेंच, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत भी शामिल थे, ने कहा कि याचिकाकर्ता को अवांछित गर्भधारण की अनुमति देना कानून के उद्देश्य और भावना के विपरीत होगा।

    पीठ ने कहा,

    "हमारा विचार है कि याचिकाकर्ता को अवांछित गर्भधारण की अनुमति देना संसदीय मंशा के खिलाफ होगा और अधिनियम के तहत लाभों से केवल उसके अविवाहित होने के आधार पर इनकार नहीं किया जा सकता है। एक विवाहित और एक अविवाहित महिला के बीच का अंतर संसद द्वारा प्राप्त की जाने वाली वस्तु से कोई संबंध नहीं है।"

    पीठ एक 25 वर्षीय अविवाहित महिला की याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें 23 सप्ताह और 5 दिनों की गर्भ को समाप्त करने की मांग की गई थी।

    दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट ने 25 वर्षीय अविवाहित महिला को 23 सप्ताह और 5 दिनों की गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग करने वाली अंतरिम राहत से इनकार कर दिया था।

    कोर्ट ने कहा था कि सहमति से गर्भवती होने वाली अविवाहित महिला स्पष्ट रूप से मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स, 2003 के तहत इस तरह की श्रेणी में नहीं आती है।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने "अनावश्यक रूप से प्रतिबंधात्मक दृष्टिकोण" लिया है क्योंकि नियम 3 (बी) महिला की "वैवाहिक स्थिति में परिवर्तन" की बात करता है, इसके बाद विधवापन या तलाक की अभिव्यक्ति होती है। यह माना गया कि वैवाहिक स्थिति में अभिव्यक्ति परिवर्तन को "उद्देश्यपूर्ण व्याख्या" दी जानी चाहिए।

    इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतें मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के स्पष्टीकरण 1 से धारा 3 में संशोधन के पीछे विधायी मंशा से अनभिज्ञ नहीं हो सकती हैं, जो स्पष्ट रूप से महिला या उसके द्वारा उपयोग की जाने वाली विधि या उपकरण की विफलता से अवांछित गर्भावस्था पर विचार करती है।

    आगे कहा,

    "महिला या उसके साथी" शब्दों का उपयोग अविवाहित महिला को कवर करने के इरादे को दर्शाता है जो संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुरूप है।"

    सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित निर्देश जारी किए:

    -एम्स दिल्ली निदेशक 22 जुलाई के दौरान एमटीपी अधिनियम की धारा 3(2)(डी) के प्रावधानों के तहत एक मेडिकल बोर्ड का गठन करेंगे।

    -यदि मेडिकल बोर्ड यह निष्कर्ष निकालता है कि याचिकाकर्ता के जीवन को कोई खतरा नहीं है, तो गर्भपात कराया जा सकता है, एम्स याचिका के अनुसार गर्भपात करेगा। प्रक्रिया पूरी होने के बाद कोर्ट को रिपोर्ट पेश की जाएगी।

    कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर विधायी व्याख्या पर अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी की मदद मांगी है।

    याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वह 5 भाई-बहनों में सबसे बड़ी है और उसके माता-पिता किसान हैं। उसने आगे कहा कि आजीविका के स्रोत के अभाव में, वह बच्चे की परवरिश और पालन-पोषण करने में असमर्थ होगी।

    चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने 16 जुलाई, 2022 को गर्भपात की अनुमति देने से इनकार करते हुए इस प्रकार देखा था,

    "आज तक मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स, 2003 का नियम 3B मौजूद है और यह न्यायालय भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए क़ानून से आगे नहीं जा सकता। ऐसे रिट याचिका को अनुमति देकर कोई अंतरिम राहत नहीं दी जा सकती।"

    इस पर कोर्ट ने इस प्रकार कहा था,

    "ऐसा नियम वैध है या नहीं, यह तभी तय किया जा सकता है जब उक्त नियम को अल्ट्रा वायर्स माना जाता है, जिसके लिए रिट याचिका में नोटिस जारी किया जाना है। इस न्यायालय द्वारा ऐसा किया गया है।"

    कोर्ट ने नोट किया कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट की धारा 3 (2) (ए) में प्रावधान है कि मेडिकल प्रैक्टिशनर गर्भावस्था को समाप्त कर सकता है, बशर्ते कि गर्भावस्था 20 सप्ताह से अधिक न हो।

    अदालत ने आगे कहा था,

    "अधिनियम की धारा 3 (2) (बी) उन परिस्थितियों में समाप्ति का प्रावधान करती है जहां गर्भावस्था 20 सप्ताह से अधिक लेकिन 24 सप्ताह से अधिक नहीं होती है।"

    कोर्ट ने यह भी नोट किया था कि अधिनियम की धारा 3 (2) (बी) में प्रावधान है कि उक्त उप-धारा केवल उन महिलाओं पर लागू होती है, जो मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स, 2003 के अंतर्गत आती हैं।

    "याचिकाकर्ता अविवाहित महिला है और वह सहमति से गर्भवती हुई है। यह स्पष्ट रूप से मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स, 2003 के तहत किसी भी क्लॉज में नहीं आता है। इसलिए अधिनिमय की धारा 3 (2) (बी) इस मामले के तथ्यों पर लागू नहीं होती है।"

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