मकान मालिक का ग़ैर-विवादित बयान किराए के निर्धारण करने के लिए पर्याप्त : दिल्ली हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
7 Aug 2019 9:48 AM IST
प्रतिवादी ने उस समय चल रहे किराए की दर के बारे में मौखिक बयान दिया था और अपीलकर्ता ने इससे स्पष्ट इंकार नहीं किया था। अदालत को यह लगता है कि मकानमालिक ने जो किराए कि दर बताई है वह पर्याप्त और प्रामाणिक है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने हिंदुस्तान पेट्रोलियम लिमिटेड की अपील को ठुकराते हुए कहा कि अगर मकान मालिक ने एक ख़ास दर पर परिसंपत्ति लाभ के अपने दावे के समर्थन में जो मौखिक बयान दिया है उस पर अगर किसी ने आपत्ति नहीं की है तो यह सीपीसी के आदेश XX नियम 12 के तहत पर्याप्त साक्ष्य है।
निचली अदालत ने अपीलकर्ता को आदेश दिया था कि वह प्रतिवादी मकानमालिक को उसकी परिसंपत्ति पर क़ब्ज़े के बदले ₹200,000 प्रतिमाह की दर से किराया दे और इसमें हर साल 10% का इज़ाफ़ा करने को भी कहा था। इस आदेश के ख़िलाफ़ अपीलकर्ता की तीन आपत्तियाँ इस तरह से थीं :
1. प्रतिवादी ने इस दावे के समर्थन में कोई साक्ष्य पेश नहीं किया है कि किराया ₹200,000 प्रतिमाह की दर से है इसलिए निचली अदालत को इस बारे में ख़ुद जाँच कर सीपीसी के आदेश XX नियम 12 के तहत बताई गई प्रक्रिया का पालन करते हुए किराए का निर्धारण करना चाहिए था।
2. प्रतिवादी किराए में हर साल 10% की वृद्धि का अधिकारी नहीं है क्योंकि प्रतिवादी ने अपनी अपील में इसका दावा नहीं किया था।
3. निचली अदालत किराए पर ब्याज देने का आदेश नहीं दे सकता क्योंकि इसका अर्थ होगा प्रतिवादी को ऐसी राहत दिलाना जिसकी उसने माँग भी नहीं की है।
न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने इनमें से सभी आपत्तियों पर ग़ौर किया और इसके बाद इस अपील को ख़ारिज कर दिया। अदालत ने अपील को ठुकराते हुए निम्न बातें कही:
1. प्रतिवादी ने उस समय चल रहे किराए की दर के बारे में मौखिक बयान दिया था और अपीलकर्ता ने इससे स्पष्ट इंकार नहीं किया था। इसके अलावा, सीपीसी के आदेश XX नियम 12 के तहत जाँच की ज़रूरी नहीं है अगर अदालत को यह लगता है कि मकानमालिक ने जो किराए कि दर बताई है वह पर्याप्त और प्रामाणिक है। नेशनल रेडियो एंड एलेक्ट्रोनिक कं लिमिटेड बनाम मोशन पिक्चर्स असोसीएशन, 122 (2005) दिल्ली लॉ टाइम्ज़ 629, मामले में अदालत ने फ़ैसला दिया था कि एक बार जब अदालत ने मकानमालिक के लगभग अविवादित बयान के आधार पर किराए के बारे में कोई निर्णय ले लिया है तो यह नहीं कहा जा सकता कि किराए के बारे में उसका निर्णय मनमाना है।
2. अपीलकर्ता की दूसरी आपत्ति के बारे में यह कहा गया कि भविष्य में उसको मिलने वाले किराए को बढ़ाकर निर्धारित करना वास्तव में, किराए के बारे में प्रतिवादी के दावे पर विलंब से निर्णय के आने का स्वाभाविक परिणाम है। इसके लिए अदालत ने एमसी अग्रवाल एचयूएफ बनाम सहारा इंडिया एवं अन्य 183 (2011) मामले में आए फ़ैसले का ज़िक्र किया। अदालत ने कहा कि सिर्फ़ इस वजह से कि प्रतिवादी ने ₹200,000 के किराए का दावा किया है इसका अर्थ यह न हुआ कि उसको इसके बाद उस अवधि के लिए मिलने वाले किराए में वृद्धि नहीं की जाए जो इस मामले के लंबित रहने के दौरान बीत गए।
3. तीसरी आपत्ति के बारे में अदालत ने कोंसेप इंडिया प्रा. लिमिटेड बना सीईपीसीओ इंडस्ट्रीज प्रा. लिमिटेड (2010) ILR3 Delhi 766 मामले पर भरोसा किया और कहा कि अपीलकर्ता की आपत्ति नाजायज़ है और कहा कि ब्याज किराए का अभिन्न अंग है और ऐसा नहीं हो सकता कि जो किराया मकानमालिक को काफ़ी पहले मिलना चाहिए उसपर उसे कोई ब्याज नहीं दिया जाए।
अपीलकर्ता की पैरवी वीके गर्ग ने की जबकि प्रतिवादी की ओर से रमन कपूर ने पैरवी की।