एक आरोपी के खिलाफ एक ही तरह के तथ्यों के आधार पर एक ही व्यक्ति द्वारा कई एफआईआर दर्ज कराने की अनुमति नहीं, अनुच्छेद 21 और 22 का उल्लंघन: सुप्रीम कोर्ट

Brij Nandan

2 Sep 2022 8:30 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि एक ही आरोपी के खिलाफ एक ही तरह के तथ्यों के आधार पर एक ही व्यक्ति द्वारा कई एफआईआर दर्ज कराने की अनुमति नहीं है।

    अदालत ने कहा,

    "एक ही शिकायतकर्ता के कहने पर तथ्यों और आरोपों के एक ही सेट पर इस तरह की लगातार प्राथमिकी दर्ज करने का कार्य भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 की जांच के लायक नहीं होगा।"

    जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस अभय एस. ओका की पीठ ने कहा,

    "अगर इसकी अनुमति दी जाती है, तो इसके परिणामस्वरूप आरोपी एक ही कथित अपराध के लिए कई आपराधिक कार्यवाही में फंस जाएगा।"

    अदालत ने कहा कि इस तरह की कई प्राथमिकी दर्ज करना कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग के अलावा और कुछ नहीं है।

    इस मामले में, आरोपी ने दूसरी प्राथमिकी को रद्द करने की मांग करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें कहा गया था कि पहली और दूसरी दोनों प्राथमिकी एक ही तथ्य और कार्रवाई के एक ही कारण पर आधारित हैं। यह तर्क दिया गया कि दूसरी प्राथमिकी दर्ज करना कानून की प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग है। हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।

    अपील में, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि दूसरी प्राथमिकी में लगाए गए आरोप कमोबेश पहली प्राथमिकी में लगाए गए आरोपों के समान हैं। दोनों एफआईआर की संपत्ति का विषय एक ही है। दूसरी प्राथमिकी भी बिक्री के लिए एक समझौते को संदर्भित करती है। दोनों एफआईआर में फर्क सिर्फ इतना है कि पहली एफआईआर में समझौते की तारीख 14 जून 2006 बताई गई है जबकि दूसरी एफआईआर में 21 जून 2006 की तारीख बताई गई है। दूसरी एफआईआर में आईपीसी की धारा 419, 420, 406, 467, 468, 471 के तहत अपराध करने का भी आरोप लगाया गया है।

    पीठ ने आगे देखा कि पहली प्राथमिकी को चुनौती उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है।

    दूसरी प्राथमिकी को रद्द करने की अपील और उक्त प्राथमिकी के आधार पर दायर आरोपपत्र को स्वीकार करते हुए पीठ ने कहा,

    "यदि एक ही व्यक्ति द्वारा एक ही आरोपी के खिलाफ कई प्रथम सूचना रिपोर्ट को तथ्यों और आरोपों के एक ही सेट के संबंध में दर्ज करने की अनुमति दी जाती है, तो इसके परिणामस्वरूप आरोपी एक ही कथित अपराध के लिए कई आपराधिक कार्यवाही में फंस जाएगा। इसलिए, इस तरह की कई एफआईआर का पंजीकरण कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग के अलावा और कुछ नहीं है। इसके अलावा, एक ही शिकायतकर्ता के कहने पर तथ्यों और आरोपों के एक ही सेट पर इस तरह की लगातार एफआईआर दर्ज करने का कार्य अनुच्छेद 21 और 22 की जांच में खड़ा नहीं होगा। इस ओर से तय कानूनी स्थिति को उच्च न्यायालय ने पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया है।"

    केस

    तारक दास मुखर्जी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य | 2022 लाइव लॉ (एससी) 731 | सीआरए 1400 ऑफ 2022 | 23 अगस्त 2022 | जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस अभय एस. ओकास

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