Begin typing your search above and press return to search.
ताजा खबरें

भूमि अधिग्रहण के मामले में वैधानिक प्राधिकारी द्वारा मुआवजे के फैसले की समीक्षा नहीं की जा सकती, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला

LiveLaw News Network
18 Oct 2019 5:40 AM GMT
भूमि अधिग्रहण के मामले में वैधानिक प्राधिकारी द्वारा मुआवजे के फैसले की समीक्षा नहीं की जा सकती, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला
x

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि जब कानून ऐसी शक्ति प्रदान करे तो ही एक वैधानिक प्राधिकरण द्वारा किसी फैसले की समीक्षा की जा सकती है। संबंधित कानून में वैधानिक प्राधिकारी को फैसले की समीक्षा का प्रावधान होना चाहिए।

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ ने एक ज़िला कलेक्टर के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें भूमि अधिग्रहण के एक मामले में मुआवजे के निर्णय (अवार्ड) की समीक्षा की गई थी।

अदालत के सामने सवाल

इस मुद्दे पर (नरेश कुमार बनाम जीएनसीटी दिल्ली) बेंच द्वारा विचार किया गया था कि क्या भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के तहत अधिनियम की धारा 11 के तहत मुआवजे का फैसला (अवार्ड) पारित करने के बाद अधिनियम के किसी भी प्रावधान के तहत फैसले की समीक्षा की जा सकती है, विशेष रूप से अधिनियम की धारा 13 ए के तहत क्या यह किया जा सकता है?

अदालत ने पाया कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के तहत मुआवजे के फैसले (अवार्ड) की समीक्षा के लिए कोई प्रावधान नहीं है। एक बार अधिनियम की धारा 11 के तहत आदेश पारित कर दिया गया है और अंतिम रूप तक पहुंच गया है तो और एकमात्र प्रावधान फैसले में टंकन (क्लेरिकल) की गलतियों के सुधार के लिए है, जो अधिनियम की धारा 13 ए के तहत प्रदान किया गया है और 24.09.1984 से प्रभावी किया गया था।

बेंच ने देखा,

"उक्त धारा 13 ए को मौटे तौर पर पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाएगा कि यह मुआवजे के फैसला (अवार्ड) की समीक्षा के लिए नहीं है बल्कि केवल फैसले में लिपिकीय या अंकगणितीय गलतियों के सुधार के लिए है। यह धारा 13 क की उपधारा (1) में आगे प्रदान किया गया है कि उक्त सुधार किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन फैसले की तारीख से छह महीने के बाद नहीं।"

इसलिए, यह देखा गया कि मुआवजे के फैसले (अवार्ड) की समीक्षा अधिनियम की धारा 13 ए के तहत नहीं किया जा सकती थी। यह केवल किसी लिपिक या अंकगणितीय गलती के सुधार के लिए है। संबंधित क़ानून में इस तरह के प्रावधान के अभाव में, संबंधित प्राधिकारी द्वारा समीक्षा की ऐसी शक्ति का उपयोग नहीं किया जा सकता है। कला भारती विज्ञापन बनाम हेमंत विमलनाथ नारिचनिया में किए गए निम्नलिखित अवलोकन का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा,

इस बिंदु पर कानून को सारांश में समझा जा सकता है कि समीक्षा के लिए प्रदान करने वाले किसी भी वैधानिक प्रावधान की अनुपस्थिति में, समीक्षा के लिए एक आवेदन को सुनना या स्पष्टीकरण / संशोधन / सुधार के नाम पर उस पर ध्यान देना मान्य नहीं है।

फैसले की कॉपी डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें


Next Story