- Home
- /
- ताजा खबरें
- /
- सोशल मीडिया के जरिए...
सोशल मीडिया के जरिए हेट स्पीच और झूठे समाचारों में वृद्धि हुई, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया हलफनामा

सोशल मीडिया के दुरुपयोग पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि पिछले कुछ वर्षों में इंटरनेट / सोशल मीडिया प्लेटफार्मों का उपयोग करते हुए हेट स्पीच, फर्जी समाचार, राष्ट्र विरोधी गतिविधियों, अपमानजनक पोस्ट और अन्य गैरकानूनी गतिविधियों में तेजी आई है।
केंद्र ने कहा है कि एक तरफ प्रौद्योगिकी ने आर्थिक और सामाजिक विकास किया है तो दूसरी तरफ झूठे समाचारों आदि में भारी वृद्धि हुई है। केंद्र ने ये भी कहा है कि लोकतांत्रिक राजनीति के लिए अकल्पनीय व्यवधान पैदा करने के लिए इंटरनेट एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में उभरा है।
देश की अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा के लिए बढ़ते खतरे
केंद्र ने कहा है कि उसने महसूस किया है कि व्यक्तिगत अधिकारों और देश की अखंडता, संप्रभुता और सुरक्षा के लिए बढ़ते खतरों को देखते हुए प्रभावी नियमों को लागू किया जाना चाहिए। केंद्र ने इसमें शामिल जटिलताओं को देखते हुए नियमों को अंतिम रूप देने के लिए 3 महीने का समय मांगा है। सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को इस पर सुनवाई करेगा। सोमवार को केंद्र सरकार की ओर से वकील रजत नैयर ने इसकी जानकारी जस्टिस दीपक गुप्ता को दी।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को दिया था निर्देश
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 24 सितंबर को केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह ऑनलाइन निजता और राज्य की संप्रभुता के हितों को संतुलित करके सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने के बारे में एक हलफनामा दायर करे। जस्टिस दीपक गुप्ता और अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा था कि इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताओं को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।
दरअसल पीठ फेसबुक द्वारा मद्रास, बॉम्बे और मध्य प्रदेश उच्च न्यायालयों में दाखिल उन याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने के लिए दायर याचिका पर विचार कर रही है जिसमें सोशल मीडिया अकाउंट्स को आधार से लिंक करने की मांग की गई है।
सुनवाई के दौरान पीठ ने साइबर अपराधियों और झूठी व भ्रामक जानकारियों के मूल निर्माताओं की खोजबीन के मुद्दे पर चर्चा की थी। जस्टिस गुप्ता ने कहा था, " सोशल मीडिया का दुरुपयोग खतरनाक हो गया है। सरकार को जल्द से जल्द इस मुद्दे से निपटने के लिए कदम उठाना चाहिए। हमें इंटरनेट के बारे में क्यों सोचना चाहिए? हम अपने देश के बारे में चिंता करेंगे। हम यह नहीं कह सकते कि हमारे पास तकनीक नहीं है। ऑनलाइन अपराधों की उत्पत्ति को ट्रैक करें। यदि मूल निर्माताओं के पास करने के लिए तकनीक है तो हमारे पास इसका मुकाबला करने और उनको तलाश करने की तकनीक है।"
जस्टिस गुप्ता ने कहा था,
" राज्य खुद को ट्रॉल होने बचा सकता है, लेकिन जब कोई व्यक्ति उनके बारे में झूठ फैलाता है तो वह क्या कर सकते हैं ? मेरी निजता की भी रक्षा होनी चाहिए, मैं अपना स्मार्टफोन बंद करने की सोच रहा हूं। "
उन्होंने आगे कहा था, "यह अदालतों के लिए नहीं है कि वे सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करें। नीति केवल सरकार द्वारा तय की जा सकती है। एक बार सरकार नीति बनाती है तो हम नीति की वैधता पर निर्णय ले सकते हैं। लेकिन निजता जैसे मुद्दों को विनियमित करने की आवश्यकता है।"
गौरतलब है कि मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है कि वह अब आधार-सोशल मीडिया लिंक के लिए प्रार्थना पर विचार नहीं कर रहा है और वो झूठी जानकारी व आपत्तिजनक संदेशों के मूल के पता लगाने की समस्या की जांच कर रहा है।