1984 सिख विरोधी दंगा : केंद्र ने कहा SIT की सिफारिशें मंजूर, दंगाइयों का साथ देने वाले पुलिस वालों पर कानून के मुताबिक कार्रवाई होगी

LiveLaw News Network

15 Jan 2020 11:15 AM GMT

  • 1984 सिख विरोधी दंगा : केंद्र ने कहा  SIT की सिफारिशें मंजूर, दंगाइयों का साथ देने वाले पुलिस वालों पर कानून के मुताबिक कार्रवाई होगी

    केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि उसने 1984 के सिख विरोधी दंगों के बंद मामलों की जांच के लिए गठित जस्टिस एसएन ढींगरा की SIT की सिफारिशों को मंजूर कर लिया है और दोषी पुलिसकर्मियों पर कानून के मुताबिक कार्रवाई की जाएगी।

    बुधवार को सुनवाई के दौरान दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के याचिकाकर्ता गुरलाड सिंह कहलों की ओर से कहा गया कि रिपोर्ट से साफ है कि पुलिस ने दंगाइयों की मदद की। राज्य की भूमिका भी घेरे में है। हालांकि बरी होने के 25 साल बाद, यह एक कठिन काम है। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि याचिकाकर्ता इसे लेकर अर्जी दाखिल कर सकते हैं।

    पुलिसकर्मियों की भूमिका की जांच की मांग

    दरअसल रिपोर्ट में कुछ पुलिस अधिकारियों को दंगाइयों के साथ काम करने वालों के रूप में शामिल किया गया है। याचिका में 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में नामित 62 पुलिसकर्मियों की भूमिका की जांच की मांग की गई है।

    रिपोर्ट में कहा गया है कि कई घटनाओं में, 337 मामलों को एक एफआईआर में दर्ज किया गया था और इस तरह जांच में चूक हुई। रिपोर्ट में दिल्ली के एक तत्कालीन न्यायाधीश एसएस बल की ओर इशारा किया गया है जिन्होंने बरी होने के ज्यादातर आदेश पारित किए। इसके साथ ही तत्कालीन कल्याणपुरी एसएचओ व राज्य पर भी सवाल उठाए गए हैं।

    दरअसल दिसंबर में 1984 सिख विरोधी दंगे के मामले में पुलिस द्वारा बंद किए गए 186 मामलों की जांच को लेकर गठित SIT ने सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सील कवर में सौंप दी थी।

    केंद्र की ओर से पेश ASG पिंकी आनंद ने मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की पीठ ने अनुरोध किया था कि जांच पूरी हो चुकी है इसलिए SIT को भंग किया जाना चाहिए। गौरतलब है कि दिसंबर 2018 में पीठ ने तीन की जगह दो सदस्यों की SIT से जांच कराने की अनुमति दे दी थी।इसी के साथ पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेश में संशोधन कर दिया था।

    सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस एसएन ढींगरा और वर्तमान IPS अभिषेक दुलार ने ही जांच की जबकि रिटायर्ड IPS राजदीप सिंह ने SIT में हिस्सा नहीं लिया था और तभी से इन मामलों की जांच अटकी हुई थी।

    केंद्र सरकार ने भी 186 बंद मामलों की जांच के लिए नई SIT में तीन की बजाए दो सदस्यों के लिए सहमति जताई थी। कोर्ट को बताया गया कि जनवरी 2018 के आदेश के बावजूद नई SIT ने काम शुरु नहीं किया है।

    गौरतलब है कि 11 जनवरी 2018 को 1984 सिख विरोधी हिंसा में 186 बंद मामलों की फिर से जांच के लिए दिल्ली हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस SN ढींगरा की अध्यक्षता में रिटायर्ड IPS राजदीप सिंह और वर्तमान IPS अभिषेक दुलार की नई SIT बनाई गई थी।

    दरअसल 6 दिसंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित सुपरवाइजरी पैनल ने SIT द्वारा बंद किए गए 241 केसों की रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी थी। इसमें कहा गया है कि SIT ने 186 मामलों की ठोस जांच नहीं की और इन्हें बंद कर दिया। इसी पर सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश जारी किए। 1 सितंबर 2017 को 1984 की सिख विरोधी हिंसा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने SIT द्वारा छंटनी के बाद बंद किए गए 241 केसों की छानबीन के लिए सुप्रीम कोर्ट के दो रिटायर जजों के सुपरवाइजरी पैनल का गठन किया था। पैनल में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस जेएम पांचाल और जस्टिस केएस राधाकृष्णन शामिल थे। बेंच ने पैनल को जांच पूरी करने के लिए तीन महीने का वक्त दिया था।

    1984 सिख विरोधी हिंसा मामले की कोर्ट की निगरानी में जांच की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान तत्कालीन ASG तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया था कि SIT ने 199 केस शुरु में ही बंद कर दिए थे। इसके अलावा 59 मामलों की जांच की गई जिनमें से 42 केसों को बंद करने का फैसला लिया गया है जबकि 8 केसों में चार्जशीट दाखिल की गई है। शेष पांच मामलों में अभी जांच चल रही है।

    याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील अरविंद दातार और एचएस फुल्का ने मांग की थी कि इन बंद केसों की सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जजों से जांच कराई जानी चाहिए।

    सुप्रीम कोर्ट ने कारण बताने को कहा था

    सुनवाई में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 199 फाइलें कोर्ट में दाखिल की थीं। जांच दल(एसआईटी) द्वारा 1984 दंगों से संबंधित 293 में से 241 मामलों को बंद करने के निर्णय पर संदेह जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार इनमें में 199 मामलों को बंद करने के कारण बताने के लिए कहा था।

    सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से यह जानना चाहा था कि आखिर किन आधारों पर इन मामलों की जांच आगे नहीं बढ़ाई गई। इससे पहले अटॉर्नी जनरल ने पीठ से कहा कि इस घटना को 33 वर्ष बीत गए हैं। उन्होंने कहा कि पीडितों और चश्मदीदों की खोज-खबर नहीं है। ऐसे में जांच कैसे संभव है ?

    वहीं दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अरविंद दत्तार ने अटॉर्नी जनरल की दलीलों का विरोध करते हुए कहा था कि अब तक यह जानकारी सार्वजनिक नहीं है कि आखिरकार एसआईटी ने 80 फीसदी मामलों को क्यों बंद कर दिया। उन्होंने बताया कि ट्रायल कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट नहीं दाखिल की गई है। उन्होंने कहा कि यह तो पता चलना ही चाहिए कि आखिरकार इन मामलों को क्यों बंद किया गया ?

    दरअसल 1984 में हुई सिख विरोधी हिंसा को लेकर चल रही SIT जांच के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार की स्टेटस रिपोर्ट पर गौर करते हुए कहा था कि इन मामलो की जांच के लिए एक हाई लेवल कमेटी बनाने का जरूरत है जो मामलों की जांच और डे टू डे ट्रायल की निगरानी कर सके। दरअसल सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जनहित याचिका में मामलों के लिए गठित SIT की निगरानी करने और जांच व ट्रायल में तेजी लाने के आदेश देने की मांग की गई है।

    सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मामले की विस्तृत रिपोर्ट मांगी थी। केंद्र की रिपोर्ट में बताया गया कि हिंसा से जुडे 650 केस दर्ज किए गए थे जिनमें से 293 केसों की SIT ने छानबीन की थी। रिकार्ड खंगालने के बाद इनमे से 239 केस SIT ने बंद कर दिए हैं। इनमे 199 केस सीधे सीधे बंद कर दिए गए। कुल 59 मामलों की दोबारा जांच शुरु की गई जिसमें चार मामलों में चार्जशीट दाखिल की गई जबकि इनमें से दो मामलों को बंद किया जाएगा क्योंकि आरोपियों की मौत हो चुकी है।

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