संकेत में दी गई गवाही साक्ष्य अधिनयम के तहत मौखिक गवाही मानी जाएगी, पटना हाईकोर्ट का फैसला

LiveLaw News Network

14 Sept 2019 10:19 AM IST

  • संकेत में दी गई गवाही साक्ष्य अधिनयम के तहत मौखिक गवाही मानी जाएगी, पटना हाईकोर्ट का फैसला

    पटना हाईकोर्ट ने गुरुवार को स्पष्ट किया कि गूँगा गवाह जब अपना सिर हिलाकर या किसी अन्य तरह का संकेत देते हुए गवाही देता है तो वह साक्ष्य की दृष्टि से अहम होता है।

    न्यायमूर्ति आदित्य कुमार त्रिवेदी ने कहा, "साक्ष्य अधिनियम की धारा 119 के प्रावधानों अनुसार एकमात्र ज़रूरी बात यह है कि गवाह जैसे समझा सकता है, वह उस रूप में गवाही दे सकता है, चाहे वह लिखकर हो या संकेत में हो और इस तरह के साक्ष्य को साक्ष्य अधिनयम की धारा 3 के तहत मौखिक गवाही माना जाएगा। संकेत या आंगिक भंगिमा से सिर हिलाकर कुछ बताने की कोशिश न केवल मान्य है बल्कि यह साक्ष्य की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।"

    साक्ष्य अधिनियम की धारा 119 यह कहती है कि गूँगा गवाह एक सक्षम गवाह हो सकता है और इसमें इस तरह के व्यक्ति की गवाही को रिकार्ड करने के तरीक़ों का उल्लेख है।

    अपीलकर्ता आज़ाद खान ने अपने वक़ील आशुतोष कुमार और राजेश कुमार पांडेय के माध्यम से आईपीसी की धारा 448, 376 और 511 के तहत अपने को दोषी ठहराए जाने के फ़ैसले को चुनौती दी। यह आदेश अतिरिक्त सत्र जज ने सुनाया था और कहा था कि पीड़िता का बयान जो कि उस घटना की एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी थी, ऐसे किसी दुभाषिये के अभाव में अविश्वसनीय है, क्योंकि उसके संकेतों/चिन्हों की सही तरह से व्याख्या नहीं की जा सकी और वह गूँगी और अशिक्षित थी।

    इस दलील को नकारते हुए अदालत ने राजस्थान राज्य बनाम दर्शन सिंह ऊर्फ़ दर्शन लाल AIR 2012 SC 1973 मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि गूँगे व्यक्ति की गवाही से संबंधित क़ानून पर गहराई से ग़ौर किया गया है।

    इस फ़ैसले में कहा गया, "अन्य सभी भाषाओं की तरह, संकेत से होने वाले संवाद की अपनी अंतर्निहित सीमाएं हैं, क्योंकि वह व्यक्ति क्या कहना चाहता है उसको समझना कठिन होता है। लेकिन किसी गूँगे व्यक्ति को विश्वसनीय गवाह होने से सिर्फ़ इसलिए रोका नहीं जा सकता कि क्योंकि वह शारीरिक रूप से अक्षम है…अगर गवाह पढ़ और लिख नहीं सकता तो अगर ज़रूरी हुआ, उसके बयान को दुभाषिये की मदद से सांकेतिक भाषा में रिकार्ड किया जा सकता है।"

    इस तरह, सज़ा के आदेश को सही ठहराया गया और अदालत ने मामले के तथ्यों के आधार पर कहा कि इस मामले की सुनवाई आईपीसी की धारा 354 के तहत होनी चाहिए न कि धारा 376 के तहत। इस मामले में राज्य की पैरवी एपीपी एसए अहमद ने की।


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