किराया क़ानून के लिए धार्मिक संस्थानों की परिसंपत्ति का अलग वर्गीकरण अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

6 Dec 2019 5:30 AM GMT

  • किराया क़ानून के लिए धार्मिक संस्थानों की परिसंपत्ति का अलग वर्गीकरण अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब धार्मिक परिसर और भूमि (बेदखली और किराया वसूली) अधिनियम को संवैधानिक रूप से वैध ठहराते हुए कहा कि धार्मिक संस्थानों की परिसंपत्तियों का किराया क़ानून के लिए अलग से वर्गीकरण संविधान के अनुच्छेद 14 के खिलाफ नहीं है।

    न्यायमूर्ति एनवी रमना, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ हरभजन सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में इस दलील को ठुकरा दिया था कि धार्मिक परिसर अधिनिंयम से एक कृत्रिम अंतर पैदा होता है और यह "धार्मिक संस्थानों" के किरायेदारों के साथ भेदभाव है, जबकि एक मकान मालिक के रूप में "धार्मिक संस्थान" कोई अलग वर्ग नहीं है।

    अदालत ने कहा कि ऐसे कई केंद्रीय और राज्य विधायी प्रावधान हैं जिनमें धार्मिक संस्थानों को, चाहे उसमें धर्मार्थ संस्थान शामिल हों या नहीं हों, अलग और भिन्न वर्ग बताया गया है और उनके हिसाब से ही उन्हें इनके तहत कानूनी दर्जा मिला है। [ धारा 11 और 115 BBC, आयकर अधिनियम, 1961; कर्नाटक किराया अधिनियम, 1999 और कर्नाटक हिन्दू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ धर्मदाय अधिनियम, 1997; ओडिशा हिन्दू धार्मिक धर्मदाय अधिनियम, 1951; हिमाचल प्रदेश हिन्दू सार्वजनिक धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ धर्मदाय अधिनियम, 1984 जिसे 2018 में संशोधित किया गया; उत्तर प्रदेश शहरी भवन (रेगुलेशन ऑफ़ लेटिंग, रेंट एंड एविक्शन) अधिनियम, 1972 और गोवा, दमन और दिउ भवन (लीज, रेंट एंड एविक्शन) नियंत्रण अधिनियम, 1968 एवं अन्य शामिल हैं]

    अदालत ने कहा की सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश राज्य एवं अन्य बनाम नाल्लामिल्ली रमी रेड्डी मामले में भी अपने फैसले में धर्मार्थ या धार्मिक संस्थानों या धर्मदायों को अपने आप में एक अलग वर्ग माना है।

    एस कंडास्वामी चेट्टियार बनाम तमिलनाडु राज्य मामले में पीठ ने कहा कि विधायिका चाहे तो सरकारी और धार्मिक, धर्मार्थ, शैक्षिक और अन्य सार्वजनिक संस्थानों के भवनों का वर्गीकरण कर सकती है, जिन्हें इस आधार पर अलग माना गया है कि इसके स्वामी इन भवनों को किराए पर लगाकर इनसे आय कमाने का कार्य नहीं करेंगे या अकारण बेदखली की गतिविधि में शामिल नहीं होंगे।

    उक्त स्थिति में, यह कहा गया कि धर्मार्थ संस्थानों, धार्मिक या धर्मनिरपेक्ष संस्थानों को किराया नियंत्रण क़ानून से मिलने वाली छूट संविधान में सबको समान संरक्षण संबंधी अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता है।

    अदालत ने इस बारे में अशोक मार्केटिंग लिमिटेड एवं अन्य बनाम पंजाब नेशनल बैंक मामले में आये संविधान पीठ के फैसले का भी हवाला दिया। इस फैसले में Public Premises (Eviction of Unauthorised Occupants) Act, 1971 को दी गई चुनौती को खारिज कर दिया गया था और कहा गया था कि सरकार की परिसंपत्तियों का एक अलग वर्ग है और सरकार नागरिकों की परिसंपत्तियों के संदर्भ में कोई कदम उठाते हुए निजी परिसंपत्तियों के स्वामी की तरह पेश नहीं आएगा, बल्कि वह सार्वजनिक हित में काम करेगा।

    इस अपील को खारिज करते हुए अदालत ने कहा,

    "सार्वजनिक परिसर अधिनियम के बारे में जो कहा गया है वह पंजाब राज्य की विधायिका ने जो दो क़ानून पास किए हैं – ईस्ट पंजाब रेंट एक्ट और रिलीजियस प्रेमिसेस एक्ट - उस पर भी समान रूप से लागू होगा। धार्मिक संस्थानों से उम्मीद की जाती है कि वे सार्वजनिक कार्य करेंगे और विधायिका यह मानकर चल सकती है कि ये संस्थान इसके अनुरूप सार्वजनिक हित में काम करेंगे जिसके लिए इनकी स्थापना हुई है।"


    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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