वरिष्ठता तब से आंकी नहीं जा सकती, जब तक कोई सेवा में पदस्थ ना हुआ हो : सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
20 Nov 2019 10:33 AM IST
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि सेवा न्यायशास्त्र के तहत वरिष्ठता का दावा उस तिथि से नहीं किया जा सकता जब कोई कैडर में पदस्थ ना हुआ हो।
न्यायमूर्ति आर बानुमति, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की पीठ मणिपुर पुलिस सेवा ग्रेड II अधिकारी संवर्ग में अंतर-वरिष्ठता विवाद से संबंधित मामलों में मणिपुर उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील पर विचार कर रही थी।
भारत संघ और अन्य बनाम एन आर परमार (2012) 13 SCC 340, में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर निर्भर इस मामले में अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया था कि जब 2005 की रिक्तियों को भरने के लिए कार्रवाई शुरू की गई थी तो भर्ती में अंतिम रूप देने में हुई प्रशासनिक देरी के चलते नियुक्ति में देरी से व्यक्ति को उसकी तय वरिष्ठता से वंचित नहीं होना चाहिए।
यह देखा गया कि चयनित उम्मीदवार को प्रशासनिक देरी और प्रक्रिया शुरू करने और नियुक्ति के बीच अंतर के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। पीठ ने के मेघचंद्र सिंह बनाम निंगम सिया में एन आर परमार में किए गए इस तरह के अवलोकन से असहमत होकर कहा,
"इस तरह के अवलोकन में बहुत अधिक गिरावट है क्योंकि भर्ती की प्रक्रिया शुरू होने के दिन किसी को भी चयनित उम्मीदवार के रूप में पहचाना नहीं जा सकता है। उस दिन, सीधी भर्ती में रिक्ति के लिए नियुक्त होने के इच्छुक व्यक्तियों का एक निकाय अस्तित्व में नहीं था। जो व्यक्ति किसी विज्ञापन का जवाब दे सकते हैं, उनके पास सेवा से संबंधित कोई अधिकार नहीं हो सकता, न कि विज्ञापन की तिथि से उनकी वरिष्ठता के अधिकार की बात करने करने का कोई अधिकार है। दूसरे शब्दों में, केवल प्रक्रिया पूरी होने पर ही आवेदक एक चयनित उम्मीदवार में रूपांतरित हो जाता है और इसलिए, एन आर परमार में अनावश्यक अवलोकन इस आशय से किया गया था कि चयनित उम्मीदवार को प्रशासनिक देरी के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।"
एनआर परमार के फैसले को स्पष्ट रूप से खारिज करते हुए पीठ ने जगदीश चंद्र पटनायक बनाम उड़ीसा राज्य (1998) 4 SCC 456 का उल्लेख किया। पीठ ने कहा कि "भर्ती वर्ष" शब्द का अर्थ उस वर्ष से नहीं है, जिसमें भर्ती प्रक्रिया शुरू की जाती है या वह वर्ष जिसमें नियुक्तियां निकलती हैं।
उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए, यह जोड़ा गया:
"वरिष्ठता के निर्धारण के लिए इन तीन निर्णयों और कई अन्य समान कानून के तहत नियमों को लागू करने के लिए यह स्पष्ट है कि सेवा न्यायशास्त्र के तहत, वरिष्ठता का दावा उस तिथि से नहीं किया जा सकता है जब कैडर में पदस्थ नहीं किया गया है।
हमारे विचार में, जेसी पटनायक (सुप्रा) में इस मुद्दे पर कानून को सही ढंग से घोषित किया गया है और परिणामस्वरूप हम एन आर परमार (सुप्रा) में सुझाए गए अंतर-वरिष्ठता के मूल्यांकन पर मानदंडों को अस्वीकार कर देते हैं। तदनुसार, निर्णय में एन आर परमार फैसले को पलटा जाता है।"
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