सीआरपीसी की धारा 362 आदेश वापस लेने से नहीं रोकती, इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला

LiveLaw News Network

22 Sep 2019 4:41 AM GMT

  • सीआरपीसी की धारा 362 आदेश वापस लेने से नहीं रोकती, इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आपराधिक मुकदमे में जारी एक आदेश वापस लेते हुए टिप्पणी की कि दंड विधान संहिता (सीआरपीसी) की धारा 362 का निरोधात्मक प्रावधान आदेश या फैसले की समीक्षा के लिए लागू होता है, वापस लेने के मामले में नहीं।

    सीआरपीसी की धारा 362 कहती है कि कोई भी अदालत अपने फैसले पर हस्ताक्षर करती है या मुकदमे का निपटारा करते हुए अंतिम आदेश देती है तो वह उसमें लेखन अथवा अंकगणितीय गलती को सही करने के अलावा उसमें न तो कोई बदलाव कर सकती है, न उसकी समीक्षा।

    रिव्यू पिटीशन और रिकॉल पिटीशन में अंतर

    न्यायमूर्ति राजीव मिश्रा ने हालांकि मौजूदा मामले में अपने आदेश को वापस लेने के लिए विष्णु अग्रवाल बनाम उत्तर प्रदेश सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाया है। इस मामले में शीर्ष अदालत ने कहा था, "रिव्यू पिटीशन और रिकॉल पिटीशन में अंतर होता है। रिव्यू पिटीशन में कोर्ट इस बात पर विचार करता है कि क्या रिकॉर्ड से इतर कोई त्रुटि हुई है, जबकि रिकॉल पिटीशन में कोर्ट याचिका के गुण-दोष पर ध्यान नहीं देता, बल्कि प्रभावित पार्टी को अपना पक्ष रखने की अनुमति दिये बिना जारी आदेश को वापस लेता है।"

    जज ने 'जवाहर लाल उर्फ जलाल बनाम उत्तर प्रदेश सरकार' के मामले में इसी हाईकोर्ट की एकल पीठ के फैसले का भी उल्लेख किया है, जिसने व्यवस्था दी थी कि आदेश वापस लेने का आवेदन सुनवाई के योग्य है और सीआरपीसी की धारा 362 का निषेध उन याचिकाओं पर लागू नहीं होता, जिन्हें गुण-दोष पर विचार किये बिना गलत तरीके से खारिज कर दी गईं, क्योंकि ये फैसले में बदलाव या उसकी समीक्षा के दायरे में नहीं आता। इसका एक अलग ही अर्थ है।

    नियम कहता है: प्रतिवादी को अपना पक्ष रखने का पर्याप्त मौका दिया जाना चाहिए

    कोर्ट ने इस मामले में आदेश जारी करते हुए कहा कि मौजूदा मामले का निपटारा करने से पहले दूसरे पक्ष की ओर से न तो कोई वकील पेश हुआ था, न ही उसे नोटिस जारी किये गये थे। कोर्ट के अनुसार, "मुकदमे का नियम कहता है कि किसी मामले में आदेश पारित करने से पहले संबंधित पक्ष को अपनी बात रखने का पर्याप्त अवसर दिया जाना चाहिए।"

    कोर्ट ने कहा,

    "विष्णु अग्रवाल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तथा जवाहर लाल मामले में हाईकोर्ट की एकल पीठ ने दोहराया है कि रिकॉल और रिव्यू में अंतर है। पंद्रह दिसम्बर 2016 के आदेश को वापस लेने की प्रतिवादी संख्या-दो की मांग आदेश की समीक्षा के लिए नहीं है और इस प्रकार सीआरपीसी की धारा 362 का निरोधात्मक प्रावधान इसमें लागू नहीं होगा। परिणामस्वरूप, मेरा सुविचारित मत है कि पार्टी न.-2 के अनुरोध पर 15.12.2016 का आदेश वापस लिये जाने लायक है, जिसे आदेश पारित किये जाने से पहले न तो कोई नोटिस दिया गया, न ही उसका पक्ष सुना गया।"

    सुप्रीम कोर्ट का मत : सीआरपीसी की धारा 362 रिकॉल पर रोक लगाती है

    सुप्रीम कोर्ट ने आदेश की समीक्षा, वापस लेने तथा संशोधित करने के एक आरोपी के अनुरोध को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा स्वीकार किये जाने के फैसले को निरस्त करते हुए कहा था कि धारा 362 के खास निरोधात्मक प्रावधान के मद्देनजर हाईकोर्ट का फैसला त्रुटिपूर्ण था।

    शीर्ष अदालत ने 'मोहम्मद ज़ाकिर बनाम शबाना' मामले में व्यवस्था दी थी कि आपराधिक मामलों की सुनवाई करने वाली निचली अदालत तथा हाईकोर्ट धारा 362 की आड़ में किसी भी आदेश को त्रुटिपूर्ण करार दिये जाने के आधार पर वापस नहीं ले सकते।


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