एनआई एक्ट की धारा 138 : चेक बाउंस के मामलों में बही-खाता पेश करना प्रासंगिक नहीं : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

6 Feb 2020 3:15 AM GMT

  • एनआई एक्ट की धारा 138 : चेक बाउंस के मामलों में बही-खाता पेश करना प्रासंगिक नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    " दीवानी अदालत में बही-खाता/नकदी बही प्रस्तुत करना प्रासंगिक हो सकता है, लेकिन नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट (एनआई) एक्ट की धारा 138 के तहत आपराधिक मामले में यह प्रांसगिक नहीं हो सकता है।”

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट (एनआई) एक्ट की धारा 138 के तहत दर्ज आपराधिक मामले में बही-खाता/ नकदी बही प्रस्तुत करना प्रांसगिक नहीं हो सकता है।

    इस मामले में, प्रथम अपीलीय अदालत ने आरोपी को दोषी ठहराये जाने संबंधी ट्रायल कोर्ट के आदेश को पलटते हुए कहा था कि शिकायतकर्ता ने नकदी बही और खाते को प्रस्तुत नहीं किया था, जिससे यह साबित हो सके कि आरोपी के यहां कोई बकाया था, जिसका भुगतान आरोपी द्वारा किया जाना था।

    शिकायत यह थी कि आरोपी ने कंपनी से उधारी पर कीटनाशक खरीदे थे और एक चेक के जरिये कुल राशि का कुछ हिस्सा भुगतान (पार्ट पेमेंट) किया था। चेक को जब बैंक में प्रस्तुत किया गया तो वह संबंधित बैंक खाते में 'पर्याप्त राशि न होने' के कारण बाउंस हो गया।

    ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि यदि दीवानी मुकदमा होता तो नकदी बही या ऑर्डर बुक आदि न प्रस्तुत करने संबंधी निचली अपीलीय अदालत की दलील मानी जा सकती है, लेकिन एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत दायर आपराधिक मामले में अपीलीय अदालत का संबंधित आदेश विरोधाभासी है।

    हाईकोर्ट के इस विचार को मानते हुए न्यायमूर्ति आर भानुमति और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने कहा :

    " जैसा कि ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने कहा है कि बकाया राशि के एवज में चेक जारी किया गया था और कीटनाशकों की खरीद के लिए अपीलकर्ता को इसका भुगतान करना था। हाईकोर्ट ने सही ही कहा है कि बही खाते/नकदी बही को पेश किया जाना दीवानी अदालत में प्रासंगिक हो सकता है, लेकिन एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत दर्ज आपराधिक मामले में यह उचित नहीं है।

    ऐसा चेक धारक के पक्ष के नजरिये से माना गया है। ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट के समान निष्कर्षों को ध्यान में रखकर हमें एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत अपीलकर्ता को दोषी ठहराये जाने के निर्णय में हस्तक्षेप करने का कोई उचित कारण नजर नहीं आता।"

    केस का नाम : डी. के. चंदेल बनाम मेसर्स वॉकहार्ट लिमिटेड

    केस नं. – क्रिमिनल अपील नं 132/2020

    कोरम : न्यायमूर्ति आर भानुमति और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना

    अपीलकर्ता का वकील : एडवोकेट यादव नरेन्द्र सिंह

    प्रतिवादी का वकील : एडवोकेट समां अहसान

    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




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