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चेक बाउंस मामले में यदि दीवानी अदालत में ऋण साबित किया जाता है तो बकाया राशि के दावे को साबित करने की आवश्यकता नहीं : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network
17 Nov 2019 5:00 AM GMT
चेक बाउंस मामले में यदि दीवानी अदालत में ऋण साबित किया जाता है तो बकाया राशि के दावे को साबित करने की आवश्यकता नहीं  : सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चेक बाउंस मामले में एक शिकायतकर्ता को 'देय राशि' साबित करने की आवश्यकता नहीं है, यदि उसे दीवानी अदालत के समक्ष ऋण साबित किया जाता है।

शिकायतकर्ता का आरोप था कि अभियुक्त ने उससे सेब की फसल खरीदी थी तथा उसके और अभियुक्त के अधिकृत अभिकर्ता (एजेंट) के बीच अंतिम राशि का निर्धारण हुआ था, जिसके तहत शेष 5,38,856 रुपये उससे लेने थे। जब चेक बाउंस हुआ तो ट्रायल कोर्ट के समक्ष एक शिकायत दायर की गयी थी।

निचली अदालत ने शिकायत निरस्त की थी

निचली अदालत ने शिकायत इस आधार पर निरस्त कर दी थी कि जिस तारीख को चेक जमा कराया गया था उस दिन चेक पर अंकित राशि, बकाया राशि से अधिक थी। ट्रायल कोर्ट ने शिकायत उस वक्त खारिज कर दी थी जब शिकायतकर्ता की अर्जी में कार्टून की संख्या के मामले में किये गये दावे और बयान में बहुत ही अंतर था। हाईकोर्ट ने आरोपी को आरोपमुक्त करने का ट्रायल कोर्ट का फैसला बरकरार रखा।

शिकायतकर्ता की ओर से दायर अपील 'उत्तम राम बनाम देविन्दर सिंह हुडान मामला' का निपटारा करते हुए न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने कहा :

"दोनों ही अदालतों (निचली और हाईकोर्ट) ने न केवल कानून की व्याख्या में गलती की है बल्कि प्रतिकूल आदेश जारी किया है, जबकि कार्टून की संख्या या पैंकिंग में गड़बड़ी अथवा कुल देनदारी तय करने संबंधी दर के मद्देनजर बकाया राशि विवादित है, यद्यपि अपीलकर्ता अपने बकाया को दीवानी अदालत के समक्ष साबित कर रहा है। इसलिए यह समझा जाता है कि संबंधित चेक भुगतान के लिए जारी किये गये थे और अपीलकर्ता को यह चेक बकाया राशि के बदले दिया गया था। इसके बाद, संभावित बचाव के लिए इस पूर्वधारणा का खंडन करने का दायित्व अभियुक्त अपीलकर्ता पर चला जाता है, जिसे प्रतिवादी ने पूरा नहीं किया।"

पीठ ने कहा,

"एक बार जब आरोपी के एजेंट ने बकाया राशि के निपटारे की बात स्वीकार कर ली थी तो किसी अन्य साक्ष्य की गैर-मौजूदगी में ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट को केवल बकाया राशि के निर्धारण में खामियों या इससे संबंधित मौखिक साक्ष्य के अभाव के आधार पर अर्जी खारिज नहीं करनी चाहिए थी, खासकर तब जब लिखित दस्तावेज में राशि की स्पष्ट जानकारी दी गयी है और जिसके लिए चेक भी जारी किया गया था।"

बेंच ने कहा कि जब लिखित तौर पर खाता दुरुस्त कर दिया गया था तो कार्टूनों की संख्या में अंतर या उसकी दर प्रासंगिक नहीं होती है।

खंडपीठ ने अपील स्वीकार कर ली और आरोपी को दोषी मानते हुए निर्देश दिया कि वह बाउंस चेक की राशि 5,38,856 रुपये की दोगुनी राशि अर्थात 10,77,712 रुपये जुर्माने के तौर पर तथा एक लाख रुपये अतिरिक्त मुकदमे के खर्च के तौर पर तीन माह के भीतर अपीलकर्ता को भुगतान करे। यदि जुर्माने की राशि एवं मुकदमे पर हुआ खर्च तीन महीने के भीतर नहीं दिया गया तो अभियुक्त को छह माह की जेल की सजा भुगतनी पड़ेगी।

आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहांं क्लिक करेंं



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