Begin typing your search above and press return to search.
ताजा खबरें

NLU दिल्ली के एससी, एसटी छात्रों की शिकायत, हमारे साथ हो रहा है संस्थागत भेदभाव

LiveLaw News Network
27 Aug 2019 3:10 AM GMT
NLU दिल्ली के एससी, एसटी छात्रों की शिकायत, हमारे साथ हो रहा है संस्थागत भेदभाव
x

नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (NLU),दिल्ली में संस्थागत भेदभाव का आरोप लगाया गया है। लाइव लॉ को भेजे गई एक ई-मेल में एससी/एसटी के अंतर्गत आने वाले कुछ छात्रों के ग्रुप ने शिकायत की है कि उनको नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (NLU),दिल्ली में संस्थागत भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। इस ई-मेल के साथ दलित आदिवासी पृष्ठभूमि से संबंध रखनेवाले 41 छात्रों का बयान भी भेजा गया है, जिन्होंने पहचान के आधार पर भेदभाव की शिकायत की है।

ई-मेल में कहा गया है कि-

"भेदभाव सिर्फ यूनिवर्सिटी प्रशासन के व्यवहार में ही नहीं बल्कि छात्रों के बीच बातचीत में भी प्रकट होता है। जब एक दलित छात्र पर उसकी पहचान के कारण हमला किया और प्रताड़ित किया गया तो यूनिवर्सिटी प्रशासन ने मामले को दबाने की कोशिश की और पीड़ित पर भी दोष लगाने का प्रयास किया। जब इस छात्र ने पुलिस को शिकायत की तो यूनिवर्सिटी प्रशासन ने जांच में बांधा ड़ाली और इस वजह से कोई कार्रवाई नहीं हो पाई।

यह यूनिवर्सिटी की तरफ से किया गया घिनौना काम ही नहीं बल्कि अपने आप में एक अपराध है। पिछले कुछ समय में कई दलित छात्र आत्महत्या का प्रयास कर चुके हैं। यह इस तरह की हरकत है जैसे विश्वविद्यालय अपने छात्रों की आबादी के साथ मिलकर पिछड़े समुदायों के अपने छात्रों पर अत्याचार कर रही हो।''

इन बयानों पर 41 छात्रों ने हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें कहा गया है कि-

"आज मैं असुरक्षित महसूस कर रहा हूं, क्योंकि कॉलेज प्रशासन यूजीसी के सभी नियमों का अनादर कर रहा है। विशेषतौर पर उस नियम का जिसके तहत एससी/एसटी सेल का गठन किया जाना चाहिए। मेरी सुरक्षा के लिए प्रक्रिया तय नहीं की गई है। आज में बहुत असहाय महसूस कर रहा हूं और प्रताड़ना,फब्तियां,पक्षपात व यातना का सामना कर रहा हूं।''

इन छात्रों के आग्रह पर इनकी पहचान को गोपनीय रखा जा रहा है। यूनिवर्सिटी ने शिकायत निवारण के एससी/एसटी सेल का गठन नहीं किया है, जबकि यूजीसी के नियमों के तहत ऐसा किया जाना जरूरी है। यूजीसी ने सभी यूनिवर्सिटी से कहा था कि वे एससी/एसटी सेल का गठन करें, ताकि इन समुदाय के सदस्यों की शिकायतों पर कार्रवाई हो सके।

ईमेल में कहा गया है कि एससी/एसटी पृष्ठभूति के छात्र कैंपस में गंभीर अवसाद और अलगाव से गुजरते हैं और उनमें से कई कोर्स को छोड़कर चले गए हैं। वहीं कई छात्रों ने तो आत्महत्या का प्रयास भी किया है।

यह भी पढ़ें

बलात्कार के अपराध को साबित करने के लिए सेमिनल डिस्चार्ज महत्वपूर्ण नहीं, दिल्ली हाईकोर्ट ने अभियुक्तों की सजा रखी बरक़रार, पढ़ें निर्णय

ई-मेल में कहा गया है कि-

"दलित-आदिवासी पृष्ठभूमि के छात्रों को उतनी सुविधा नहीं मिलती है,जितनी सर्वण वर्ग के छात्रों को दी जाती है। यह समस्या स्कूल के समय से ही शुरू हो जाती है और कई तरीकों से विश्वविद्यालय में भी जारी रहती है। वर्ष 2008 के बाद से जो छात्र कोर्स छोड़कर गए हैं,उनमें एससी/एसटी पृष्ठभूमि से संबंध रखने वाले छात्रों की संख्या ज्यादा है। यह दर हमेशा से ही ज्यादा रही है।

वहीं हिरासत में लिए गए छात्रों में से भी इन समुदायों के छात्रों की संख्या ज्यादा रही है। यूनिवर्सिटी ने छात्रों के पलायन को रोकने के लिए फैकल्टी के सदस्यों से बातचीत का प्रयास किया गया और सुझाव दिया गया कि यूजीसी द्वारा निर्धारित अनिवार्य शिक्षण आवश्यकताओं के तहत उपचारात्मक कक्षाओं की व्यवस्था की जाए, परंतु फैकल्टी की तरफ से इन सुझावों का उपहास व तिरस्कार किया गया और कॉलेज प्रशासन भी इसके प्रति उदासीन रहा है।"

अंग्रेज़ी का प्रशिक्षण देने के नाम पर हो रही है खानापूर्ति

ईमेल में यह भी कहा गया कि "इतना ही नहीं अंग्रेजी भाषा का प्रशिक्षण देने के मामले में भी यूनिवर्सिटी ने सिर्फ खानापूर्ति की है और असल में इस दिशा में कोई प्रयास नहीं किया। अधिक्तर एससी/एससीटी छात्रों की स्कूल की पढ़ाई मातृभाषा में हुई है। ऐसे में उनको दिक्क्तों का सामना करना ही पड़ता है। पिछले दस साल में इस समस्या को सुलझाने के लिए यूनिवर्सिटी प्रशासन ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। इससे साफ पता चलता है कि कैंपस में संस्थागत भेदभाव किस गहराई तक बना हुआ है। जब एससी/एसटी छात्रों के साथ मारपीट और बदसलूकी नहीं की जा रही है तो उन्हें भेदभावपूर्ण शैक्षणिक प्रथाओं के द्वारा बाहर किया जा रहा है।''

ई-मेल में यह भी कहा गया है कि यूनिवर्सिटी हॉस्टल में कमरे अलॉट जाति पहचान के आधार पर करती थी, जिसका विरोध किया गया और उसके बाद इस प्रक्रिया को खत्म किया गया।

एनएलयूडी ने दिए आरोपों पर जवाब

जब इन आरोपों के बारे में एनएलयूडी के वाइस चांसलर प्रोफेसर डॉक्टर रणबीर सिंह से बात की गई तो उन्होंने ई-मेल से जवाब देते हुए इन सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया।

उन्होंने छात्रों की शिकायत के विवरण को सामान्य व आधारहीन बताया और वीसी ने कहा कि हॉस्टल में कमरे अलॉट करते समय कोई जातिगत भेदभाव नहीं किया जाता है। वीसी ने इस बात को स्वीकर किया कि कैंपस में एक दलित छात्र पर हमला किया गया था, परंतु यह भी कहा कि आपसी झगड़े का यह एक मात्र ऐसा मामला है,जो पिछले पांच साल में सामने आया है। वहीं इस मामले में हमला करने वाले छात्र को यूनिवर्सिटी के अनुशासनात्मक नियमों के अनुसार दंडित भी किया गया था। वहीं एससी/एसटी सेल न बनाने के आरोपों को भी नकार दिया गया।

वीसी ने बताया कि तीन सेल हैं जो इस तरह के मामलों पर विचार करती हैं, जिनमें यूजीसी के नियमों के अनुसार समान अवसर सेल, छात्र शिकायत सेल व एससी/एसटी सेल शामिल हैं। इन तीनों सेल के संबंध में जारी अधिसूचना को एनएलयू दिल्ली की वेबसाइट पर देखा जा सकता है।

वीसी ने कहा कि- "सामाजिक बहिष्कार से संबंधित मामलों के बारे में एक बहुत की प्रगतिशील और अग्रगामी संस्था होने के कारण यूनिवर्सिटी की साफ छवि है।"

जब अधिकारिक बयान के बाद छात्रों से स्पष्टीकरण मांगा गया तो छात्रों ने दावा किया कि यूनिवर्सिटी में कोई एससी/एसटी सेल नहीं है। उन्होंने कहा कि समान अवसर सेल है परंतु एससी/एसटी सेल नहीं है। वेबसाइट पर जारी जिस अधिसूचना की बात की जा रही है, उसमें समान अवसर सेल का ही जिक्र है।

"कॉलेजो के लिए समान अवसर केंद्र की योजना के लिए यूजीसी के दिशा-निर्देश एक्सआईआई(2012-2017)'' यूनिवर्सिटी के लिए अलग-अलग एसीसी/एसटी सेल के अस्तित्व पर विचार करता है।

छात्रों की तरफ से मेल के दिए जवाब में बताया गया है कि-

"इन प्रावधानों के अनुसार संपर्क अधिकारी के अलावा एक अलग से भेदभाव विरोधी अधिकारी की नियुक्ति की भी बात कही गई है। नियमों के अनुसार भेदभाव विरोधी अधिकारी की शिक्षा एक प्रोफेसर जितनी होनी चाहिए, परंतु अब तक यूनिवर्सिटी ने किसी ऐसे अधिकारी की नियुक्ति नहीं की है।''

इतना ही नहीं समान अवसर सेल भी एडहॉक तरीके से उस समय नियुक्त की गई थी जब एक उच्च जाति के छात्र ने एक दलित छात्र पर हमला कर दिया था।

उन्होंने आरोप लगाया कि यूनिवर्सिटी केवल समावेशीता और प्रगतिशीलता का दिखावा बनी हुई है और उस समय यह केवल प्रतीकवाद में लिप्त पाया जाता है जब यह दलित पृष्टभूमि के छात्रों की मदद करने की बात आती है।

उन्होंने संस्थागत भेदभाव और फैकल्टी से मिलने वाले तिरस्कार व उपहास का सामना करने की भी बात है। इतना ही नहीं उन्होंने हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के रोहित वेमुला और बीवाईएल नायर अस्पताल, मुम्बई की डॉक्टर पायल ताडवी से अपने मामले की तुलना की।

"यूनिवर्सिटी ने इन सभी वर्षो में अपने परिसर में जातिवादी भावनाओं को पनपने दिया है। इस संबंध में की गई हर शिकायत की ओर उन्होंने आंख बंद कर रखी है। छात्रों को इन वर्षो के दौरान प्रशासन द्वारा कई बार चुप रहने को मजबूर किया गया है।"

नोट: लेखक को एनएलयूजी की आधिकारिक वेबसाइट पर एससी/एसटी सेल के बारे में कोई अधिसूचना नहीं मिली।

Next Story