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सुप्रीम कोर्ट ने उस मजिस्ट्रेट की बर्ख़ास्तगी को जायज़ ठहराया जिसने एक महिला वक़ील के पक्ष में फ़ैसला दिया था, पढ़िए फैसला

LiveLaw News Network
22 Sep 2019 4:17 AM GMT
सुप्रीम कोर्ट ने उस मजिस्ट्रेट की बर्ख़ास्तगी को जायज़ ठहराया जिसने एक महिला वक़ील के पक्ष में फ़ैसला दिया था,  पढ़िए फैसला
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एक क्लाइंट और एक महिला वक़ील के रिश्तेदारों के पक्ष में फ़ैसला देने के आरोप में नौकरी से हटाए गए मजिस्ट्रेट को कोई भी राहत देने से सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया। ऐसा माना जाता है कि इस महिला के साथ उनका कथित रूप से नज़दीकी संबंध था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक और निजी जीवन में एक न्यायिक मजिस्ट्रेट की ईमानदारी संदेह से परे होनी चाहिए।

मजिस्ट्रेट की अपील को ख़ारिज करते हुए न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि 'परितोषण' का मतलब सिर्फ़ मौद्रिक परितोषण ही नहीं होता है बल्कि इसमें ताक़त का परितोषण और लिपसा आदि भी शामिल है। श्रीरंग यादव राव वाघमारे को किसी भी तरह का राहत नहीं देते हुए पीठ ने कहा,

"इस मामले में अधिकारी ने इस मामले का निर्णय इसलिए किया क्योंकि उसका एक महिला वक़ील से निकट का संबंध था और इसलिए नहीं कि क़ानून के तहत ऐसा करना ज़रूरी था। यह भी एक अलग तरह का परितोषण है…

…न्यायिक अधिकारी ईमानदारी, व्यवहार और सत्य निष्ठा की उम्मीद पर खड़ा नहीं उतरा। उसका व्यवहार ऐसा रहा है कि उसे किसी भी तरह की राहत नहीं दी जा सकती और उसको कम सज़ा नहीं दी जा सकती।"

पीठ ने कहा कि एक जज को सिर्फ़ तथ्यों के आधार और उस पर लागू होने वाले क़ानून के आधार पर ही मामले का निर्णय करना चाहिए। अगर कोई जज मामले का निर्णय किसी भी बाहरी कारणों से करता है तो वह क़ानून के अनुरूप अपना काम नहीं करता है। न्यायिक पद पर मौजूद व्यक्ति में ज़रूरी गुणों के बारे में पहले दिए गए फ़ैसलों का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा,

"एक जज का सबसे बड़ा गुण उसकी ईमानदारी होनी चाहिए। अन्य संस्थानों की तुलना में न्यायपालिका में इसकी ज़रूरत काफ़ी ज़्यादा है। न्यायपालिका एक ऐसी संस्था है जिसकी बुनियाद ईमानदारी और सत्य निष्ठा पर टिकी है। इसलिए, यह ज़रूरी है कि न्यायिक अधिकारी ईमानदारी का गुण भरा हो। जज का व्यवहार कोर्ट के अंदर और बाहर बहुत ही उच्च श्रेणी का होना चाहिए।

जज भी जनता के नौकर होते हैं। एक जज को यह हमेशा ही याद रखना चाहिए उसका काम जनता की सेवा करना है। एक जज की परख सिर्फ़ इस बात से ही नहीं होता है कि वह कैसा फ़ैसला देता है, बल्कि चरित्र की पवित्रता से भी होता है। उसे आम और निजी दोनों ही जीवन में उच्च दर्जे की ईमानदारी दिखानी चाहिए। जो फ़ैसलों में दूसरों से ऊँचा दिखते हैं उन्हें बेदाग़ होना चाहिए। इस तरह के ऊँचे आदर्शों की उम्मीद जजों से की जाती है।

जजों को यह याद रखना चाहिए कि वे सिर्फ़ कर्मचारी भर नहीं हैं बल्कि ऊंचे सार्वजनिक पद पर बैठे हैं और एक जज से जिस तरह के व्यवहार की उम्मीद की जाती है वह आम लोगों की तुलना में काफ़ी ऊंचा होता है।"



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