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सुप्रीम कोर्ट ने IPS अफसर की जासूसी को लेकर जताई चिंता, छत्तीसगढ़ सरकार से मांगा जवाब

IPS अधिकारी मुकेश गुप्ता के फोन टैपिंग की घटना पर सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार को नोटिस जारी किया है और इस तरह के कदम उठाने के बारे में स्पष्टीकरण मांगा है।
पीठ ने सोमवार को छत्तीसगढ़ सरकार की खिंचाई की और एक नागरिक के निजता के अधिकार के उल्लंघन के तरीके पर चिंता व्यक्त की। जस्टिस अरुण मिश्रा ने फोन टैपिंग के आदेश को पारित करने के बारे में पूछताछ करते हुए टिप्पणी की, "इस देश में क्या हो रहा है? लगता है कोई निजता नहीं बची है।"
गुप्ता के लिए अपील करते हुए वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी ने आईपीएस अधिकारी की निजता भंग करने के खिलाफ जोरदार तर्क दिया और अदालत को यह भी सूचित किया कि वकील रवि शर्मा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है जो इस मामले में पेश हुए थे। पीठ ने वकील के खिलाफ जांच को भी रोक दिया। यह मामला अब 8 नवंबर को सूचीबद्ध किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, मुद्दे का राजनीतिकरण न करें
हालांकि पीठ ने वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी से कहा कि IPS अधिकारी मुकेश गुप्ता के मामले में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का नाम घसीटकर मुद्दे का राजनीतिकरण न करें। शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि याचिका में पक्षकारों की सूची से मुख्यमंत्री का नाम हटा दिया जाए। याचिका में IPS अधिकारी ने उत्तरदाताओं में से एक के रूप में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री का नाम दिया था।
दरअसल गुप्ता पर 2015 में नागरिक आपूर्ति घोटाले की जांच के दौरान गैरकानूनी फोन टैपिंग और भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने का आरोप है।
अदालत ने 25 अक्टूबर को राज्य सरकार को गुप्ता और उनके परिवार के टेलीफोन टैपिंग से रोक दिया था और उन्हें उनके खिलाफ दर्ज मामलों में गिरफ्तारी से सुरक्षा प्रदान की थी। शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार से यह भी कहा था कि गुप्ता के खिलाफ दर्ज दो एफआईआर में आगे की जांच पर रोक कर उसके पहले के अंतरिम आदेश अगले आदेश तक जारी रहेंगे।
हालांकि शीर्ष अदालत ने 1988 बैच के IPS अधिकारी के खिलाफ एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया था, जिसमें FCRA का उल्लंघन भी शामिल है जिसके तहत उनके पिता द्वारा स्थापित एक नेत्र अस्पताल चल रहा है।
यह था मामला
गौरतलब है कि इस साल 9 फरवरी को, विशेष पुलिस महानिदेशक मुकेश गुप्ता सहित छत्तीसगढ़ के दो IPS अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया था।
पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने 2015 नागरिक आपूर्ति निगम घोटाले की जांच के दौरान कथित आपराधिक साजिश और अवैध फोन टैपिंग के लिए उनके खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की थी। जिन अधिकारियों को निलंबित किया गया उनमें नारायणपुर के पुलिस अधीक्षक राजेश सिंह शामिल हैं।
पिछली भाजपा सरकार के दौरान हुए करोड़ों के नागरिक आपूर्ति घोटाले की जांच के लिए कांग्रेस सरकार द्वारा गठित एक विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा की गई जांच के आधार पर ये मामला दर्ज किया गया था।
गुप्ता और सिंह पर धारा 193 (झूठे सबूत), 201 (अपराध के सबूतों को गायब करने या गलत जानकारी देने ), 466 (जालसाजी), 471 (जाली कागजात को वास्तविक के रूप में उपयोग करना), 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र) और आईपीसी की अन्य संबंधित धाराओं और भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था।
हालांकि गुप्ता ने सभी आरोपों का खंडन किया था और कहा था कि घोटाले की जांच में सारी कार्रवाई कानून के अनुसार और सक्षम प्राधिकारी से उचित अनुमति के साथ की गई थी। इस घोटाले का खुलासा फरवरी 2015 में हुआ था जब एसीबी और ईओडब्ल्यू ने नागरिक आपूर्ति निगम के 25 परिसरों में एक साथ छापे मारे थे।
एसआईटी का गठन
भूपेश बघेल सरकार ने इस साल 8 जनवरी को पुलिस महानिरीक्षक, एसीबी और ईओडब्ल्यू, एसआरपी कल्लूरी की अगुवाई में 12-सदस्यीय एसआईटी का गठन कर करोड़ों के कथित घोटाले की जांच करने के लिए कहा गया था कि मामले में पिछली जांच में राजनीतिक भागीदारी सहित कुछ बिंदुओं को छोड़ दिया गया था।
पिछले हफ्ते बॉम्बे हाई कोर्ट ने गृह मंत्रालय द्वारा एक व्यवसायी के खिलाफ जारी किए गए फ़ोन टैपिंग आदेशों को इस आधार पर रद्द कर दिया था कि मामले में कोई सार्वजनिक आपातकालीन या सार्वजनिक सुरक्षा का मुद्दा नहीं था।